5 दिन पहले से समर्थकों को पहुंचा दिया था दिल्ली, मंत्री बनने के चक्कर में स्वागत की तैयारियां हो गई थीं शुरू
इंदौर। अलग सिंधी भाषी राज्य (Sindhi-speaking states) और फिर एकला चलो (walk alone) की नीति पर चलने वाले इंदौरी सांसद शंकर लालवानी (Indori MP Shankar Lalwani) साढ़े 11 लाख वोटों से जीतने के बाद भी आलाकमान की निगाह में कंकर (kankar) ही बने रहे, जबकि धार (Dhar) की सांसद सावित्री ठाकुर (Savitri Thakur) मात्र 2 लाख 18 हजार 665 वोटों से जीतने के बाद भी मंत्री (Minister) बनने में कामयाब हो गई। लालवानी ने अपने कुछ समर्थकों को पहले ही दिल्ली भेज दिया था और इंदौर में भी कुछ समर्थक जश्न की तैयारी कर रहे थे, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी।
सांसद शंकर लालवानी पार्षद रहते हुए पहले सुमित्रा महाजन के साथ रहे, फिर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से जुड़ गए और बाद में इंदौर भाजपा के अध्यक्ष पद पर रहते हुए वे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के करीब आए और उनके खेमे में चले गए। इसका फायदा भी उन्हें मिला और वे इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर लगातार दो बार तक रहे। हालांकि इसके बाद वे शिवराज खेमा छोडक़र कहीं नहीं गए, लेकिन 2023 के चुनाव में चौहान के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वे अपना राजनीतिक मुकाम तलाश रहे थे, लेकिन सिंधी समाज की आला संस्थाओं से जुड़े रहने का फायदा उन्हें मिला और इस बार फिर लोकसभा का टिकट पाने में वे कामयाब हो गए। हालांकि इसमें शिवराज की भी चली। इंदौर में बदले राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर वे साढ़े 11 लाख से अधिक वोटों से पूरे देश में दूसरे नंबर पर अपनी जीत दर्ज कराने में कामयाब भी हो गए। उन्हें लगा था कि अब पार्टी एकमात्र सिंधी सांसद और पूरे देश में दूसरे नंबर पर जीत का रिकार्ड बनाकर उनका नाम राज्यमंत्री के रूप में तो तय कर दिया जाएगा, लेकिन उन्हें तब निराशा हाथ लगी, जब मालूम पड़ा कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक लालवानी ने तो अपने कुछ समर्थकों को 4 तारीख को परिणाम आने के दूसरे ही दिन दिल्ली भेज दिया था। उन्होंने बड़े नेताओं से संपर्क भी करना शुरू कर दिया था। शिवराजसिंह चौहान से भी वे लगातार चर्चा कर रहे थे। 7 जून को वे इंदौर से अपने समर्थकों के साथ दिल्ली रवाना हुए थे, वहीं इंदौर में उन्होंने कुछ समर्थकों को रुकने की सलाह दी थी। लालवानी के नजदीकी तो उनके मंत्री बनने के नाम पर जश्न की तैयारी में जुट गए थे, लेकिन कल दोपहर जैसे ही उन्हें मालूम पड़ा कि शंकर लालवानी को इतनी बड़ी जीत के बावजूद कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है तो वे निराश हो गए। उन्हें ढांढस बंधाया गया कि एनडीए की सरकार बनने के कारण लालवानी का नंबर नहीं लग पाया है, नहीं तो उनका नाम भी राज्यमंत्री के रूप में आ जाता। दूसरी ओर भाजपा के ही नेता बता रहे हैं कि लालवानी अपनी ही गलतियों के कारण नई भूमिका में आने से रह जाते हैं। उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में अलग से सिंधी प्रांत की मांग की थी, जिसको लेकर उनका खूब विरोध हुआ था, वहीं इंदौर में भी एकला चलो कि नीति अपनाते हैं। उनके बारे में जाहिर है कि जिस तरह की राजनीति ताई करती थी, वे उसी राह पर चल पड़े हैं और अपने 8-10 समर्थकों में ही वे घिरे रहते हैं, जिसके कारण ने जनता का चेहरा नहीं बन पाए।
बिल्ली के भाग से टूटा है छींका
शंकर लालवानी के बारे में चुनाव के पहले माना जा रहा था कि उन्हें इस बार टिकट मिलना मुश्किल है, लेकिन शिवराज खेमे से जुड़ा होने का फायदा उन्हें मिला और वे टिकट लाने में कामयाब हो गए। रही-सही कसर अक्षय बम ने पूरी कर दी और बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया। लालवानी साढ़े11 लाख वोटों से जीत गए, लेकिन ये जीत भी उनके लिए गौण साबित हुई और रिकार्ड बनाने के बावजूद वे पीछे रह गए।
महू में अब राजनीति के तीन बड़े ध्रुव
महू विधानसभा की राजनीति में अब तीन बड़े ध्रुव हो गए हैं। एक तो यहां से उषा ठाकुर विधायक हैं ही जो पिछली बार कैबिनेट मंत्री थीं। उनके समर्थक भी यहां बड़ी संख्या में हैं, वहीं दूसरे नंबर पर राज्यसभा सांसद कविता पाटीदार हैं, जो महू की ही निवासी हैं। प्रदेश कार्यकारिणी में महामंत्री और फिर राज्यसभा सांसद बनने के बाद वे दूसरी शक्ति के रूप में महू में उभरीं और अब सांसद सावित्री ठाकुर, जो केन्द्र में राज्यमंत्री बन गई हैं तीसरा शक्ति केन्द्र बन गई हैं। ऐसे में उनके साथ के कार्यकर्ताओं का कद भी बढ़ेगा। महू विधानसभा धार लोकसभा क्षेत्र में आने के कारण कई नेता अब ठाकुर के पास जगह बनाने में लग जाएंगे।
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