द कश्मीर फाइल्स और द केरल स्टोरी के बाद अजमेर 92 एक ऐसी फिल्म है, जो अपने खास मकसद से चर्चा में आई है। फिल्म का एक डायलॉग है- आप इतना ही जानते हैं, जितना पढ़ा या सुना है, लेकिन 1992 में आखिर हुआ क्या था, हकीकत हम बताते हैं! अजमेर में 1987 से 1992 तक लगातार पांच साल हुए गैंगरेप पर आधारित है यह फिल्म! आरोपी धार्मिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोग थे और उन्होंने करीब 250 लड़कियों के साथ बलात्कार किया था। उनमें से कुछ जेल में सलाखों के पीछे भी गए और कुछ सजा पूरी करके अब जेल से बाहर भी आ चुके हैं। इस दौरान कई लड़कियों ने आत्महत्या कर ली थी।
इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला यह बलात्कार कांड सूफी संत मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्माजी के पुष्कर धाम के लिए विश्व विख्यात अजमेर में हुआ था। लगातार 5 साल तक ऐसी घिनौनी हरकत की जाती रही। हालत यह हो गई कि विवाह के पहले होने वाली बहू की तफ्तीश की जाती थी कि कहीं वह भी बलात्कार कांड की शिकार तो नहीं! जिन लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे थे, उनमें से अधिकांश इज्ज़तदार परिवारों की थीं। कई के पिता तो प्रशासनिक पदों पर बड़े पदों पर भी थे, लेकिन फिर भी वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। अंत में जब स्थानीय अखबार में खबर छपी और उस खबर की प्रतिध्वनि राष्ट्रीय अखबारों में भी हुई और लोगों ने जमकर प्रदर्शन किए, लोग सडक़ों पर उतर आए, तब जाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई। जिन लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ, उनमें से अधिकांश 11 से 20 साल की ही थी। उनकी अश्लील तस्वीरें खींच ली गई थीं। उसी के आधार पर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था। दबाव डालकर उन लड़कियों को फार्म हाउस पर पहुंचाया जाता, वहां उनके साथ हैवानियत होती और गाडिय़ां वापस उन लड़कियों को उनके घरों पर छोड़ देतीं। वह भी इस धमकी के साथ कि जब भी बुलाएं, तुम्हें आना होगा और अपनी दूसरी सहेलियों को भी फंसाना होगा, वरना तुम्हारी असली तस्वीरें सार्वजनिक कर दी जाएंगी। इंटरनेट के घर-घर आने के पहले के युग की कहानी रोंगटे खड़े कर देती है।
5 साल तक चले इस घिनौने कांड के मास्टरमाइंड फारुक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती बताए गए। इन तीनों के तार यूथ कांग्रेस से जुड़े थे। इनकी पहुंच ऊपर तक थी और दरगाह के केयरटेकर तक उनकी अच्छी पहुंच थी। जब गैंगरेप का भांडा फूटा, तब 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद यह मामला जिला कोर्ट, हाईकोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और पॉक्सो के बीच घूमता रहा था। 1994 में इनमें से एक ने आत्महत्या कर ली थी। कोर्ट में 8 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 2001 में 4 आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा और तमाम जांच और बाकी पक्ष को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बचे हुए 4 आरोपियों की सजा को 10 साल तक सीमित कर दिया। इस कांड का एक मुख्य मास्टरमाइंड फारुख दिमागी रूप से पागल बताया गया और 2012 आते-आते बाकी आरोपी भी जेल से बाहर आ गए। इस कांड को अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड कहा जाता है।
यह फिल्म दर्शकों का मनोरंजन नहीं करती, बल्कि उन्हें उत्तेजित करती है। फिल्म देखने के बाद दर्शक गंभीर चेहरा लेकर बाहर आते हैं। फिल्म में कई पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। किसी धार्मिक स्थल या धर्म विशेष के लोगों को टारगेट करना, इस फिल्म में नहीं दिखाया गया। पीडि़तों की तकलीफ दिखाने की कोशिश की गई है। लड़कियों को इस फिल्म से संदेश देने की कोशिश की गई है कि अगर कोई उनके साथ गलत करे तो डरने के बजाय साहस से काम लें और ऐसे ब्लैकमेलर के खिलाफ अभियान चलाएं। पूरा समाज उनके साथ है। इस कांड के दौरान अनेक लड़कियों ने आत्महत्या कर ली थी। उनके परिजनों के बारे में भी फिल्म में दिखाया गया है। इस कांड के दौरान पांच साल तक अजमेर और आसपास के इलाकों में महिलाओं में किस तरह की घबराहट थी, यह भी दिखाने की कोशिश की गई है। जब इस मामले की जांच चल रही थी, उसके पहले ही कई पुलिस अधिकारियों को कांड का पहले से ही पता था, लेकिन दबाव के कारण वे इस मामले में संज्ञान लेने में असमर्थ थे।
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