अपनी मर्जी से कहां अपने सफऱ के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।
आंखों पे रेबन का चश्मा, पैरों में रिबॉक के स्पोट्र्स के जूते, लिवाइस की जीन्स और पोलो टी शर्ट पहनने वाले इस फुलटू ब्रांडेड अंग्रेज़ी सहाफी (पत्रकार) का नाम है शाहरोज़ आफरीदी। हालफिलहाल मियां खां दो कम पचास हेंगे। बाकी सर पे एक बाल नईं हेगा। अपनी तामड़ी खोपड़ी को इत्ता चमका के रखते हैं के उसे देख के चाँद मियां बी फीके पड़ जाएं। आफरीदी मियां रेने वाले ओरिजनल लखनऊ के हेंगें। बाकी बीस बरस पेले भोपाल आये तो झईं के होक रे गए। इस लखनवी बंदे में ज़ुबान की शाइस्तगी, मिज़ाज में नफासत और किरदार में कऱार कूट कूट के भरा हेगा। अपनी बीस बरस से ज़्यादा की सहाफत में भाई मियां ने भोपाल के दैनिक जागरण, हिंदुस्तान टाइम्स, डीबी पोस्ट, फ्रीप्रेस जर्नल में काम किया। बाकी इनकी फ्रीलांस सहाफत बदस्तूर जारी है। फ्रीलांसर के तौर पे शाहरोज़ आफरीदी ने बीबीसी, टेलीग्राफ, फस्र्ट पोस्ट और एक इंटरनेशनल वेबसाइट के लिए लपक काम किया। ये तो हुई इनकी पर्सनेल्टी और सहाफत की बात। बाकी आज यहां इनका जि़कर जिस खास वजे से किया जा रहा है वो है इनकी यायावरी और घुमक्कड़ी। शाहरोज़ ने तकऱीबन पूरा हिंदुस्तान ही घूम डाला है। जब सूरमा ने इस कालम में छपने के बारे में बात करी तब भी भाई मियां रात 11 बजे अपनी गाड़ी से कुछ दोस्तों के साथ इंदौर हाइवे के किसी ढाबे पे खाना खा रहे थे। इत्तफाकन इने इनकी शरीके हयात भी घूमने फिरने के शौक वाली मिलीं। कुछ ख़तरनाक रास्तों पर ही ये अकेले गए हैं बाकी अक्सर इनका सफर अपनी हमसफर के साथ ही होता है। हिमाचल के दुनिया के सबसे खतरनाक रास्ते टच पास को इन्होंने बाइक से नापा है। माइनस बीस से तीस डिग्री टेम्परेचर पे ये कश्मीर घाटी के उन गुमनाम ठियों तक हो आये हैं जहां आम टूरिस्ट नहीं जा पाता।
कारगिल, लद्दाख, लूबरा वेली, द्रास, सियाचिन से लेके सोनमर्ग और गुलमर्ग को इंन्ने पेट भर भर के घुमा है। शाहरोज़ केते हैं – मियां अपन टूरिस्ट स्पॉट्स के जनरल होटलों वगेरह में नहीं रुकते। इसके बरक्स हम सूदूरवर्ती गांवों में होम स्टे करते हैं। जिससे हमें इलाके के ऑरिजनल खानपान, कल्चर, पहनावा और ज़बान के बारे में ज़्यादा जानकारी मिलती है। कई जगह टेंट में भी ये रुकते हैं। शाहरोज़ ने पूरा नॉर्थ ईस्ट भी छान मारा है। असम, अरुणाचल, मेघालय में चेरापूंजी नाथूला पास, खारदुंगला जैसे भयंकर इलाकों में इंन्ने लंबी ट्रेकिंग करी। पूरे दक्षिण भारत, गुजरात, गोआ, तमिलनाडू, तेलंगाना, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के चप्पे चप्पे को ये अपनी कार से घूम चुके हैं। इनका मानना है कि हिंदुस्तान को आप जितना गैर रिवायती तरीके से घूमेंगे उतना ही मज़ा आएगा। हर सिम्त अलग पहनावे और ज़बान बोलने वाले लोग कितने अच्छे हैं ये आप उनसे मिल के ही जान पाएंगे। अपनी गाड़ी में घूमने का मज़ा ही अलग होता है। आप कुदरत के ज़्यादा नज़दीक जा सकते हैं। मुल्क के सभी नेशनल पार्क की जिय़ारत भी ये कर चुके हैं। मानसून सीजऩ में शाहरोज़ मियां भोपाल के अतराफ़ में किसी भी सिम्त निकल पड़ते हैं। इस दौरान बुदनी घाट से लेके, मढ़ई, तामिया और पातालकोट की बात ही अलग होती है। अपनी गाड़ी में ये मय अहलोअयाल या किसी दोस्त के साथ इंदौर खंडवा वाले खूबसूरत जंगल के रास्ते पर निकल जाते हैं। मूड हुआ तो कहीं नाईट स्टे किया नहीं तो रात तक बैक टू द पैवेलियन। शाहरोज़ भाई बताते हैं कि इन्होंने अपने सफर की खट्टी मीठी यादों को लफ्जों में समेटा है। बहुत जल्द उसे एक किताब की शक्ल देंगे। इनका मानना है जि़न्दगी बहुत छोटी है। उसे घूम फिर के हंसते गाते हुए गुज़ारना चाहिए। उम्दा फलसफा है जनाब आपका। बाकी मियाँ आप जैसी सनक सबके कने कां होती हेगी। झां तो जि़न्दगी के मरहलों से फुर्सत मिले तो घूमने की सोचें। बहरहाल मुबारक हो आपको ये सुहाना सफर।