कुसुम चोपड़ा
पूरी दुनिया में इन दिनों कोरोना महामारी के दौरान अफरा-तफरी और दहशत का माहौल है। हर किसी के पास इस भयावह दौर की तकरीबन जैसी स्याह तस्वीर है- अपनों को खोने का दर्द, अस्पतालों में बेड के लिए दौड़-भाग, ऑक्सीजन की कमी के चलते जान गंवाते लोग। हर किसी को अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता है। लेकिन इसी बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी परवाह न कर कोरोना पीड़ितों की मदद में लगे हैं। बहुत-सी धार्मिक संस्थाएं, एनजीओ के अलावा व्यक्तिगत तौर पर भी काफी लोग मदद के लिए बढ़-चढ़कर आगे आ रहे हैं। इन सबके बीच एक समुदाय ऐसा है, जो निःस्वार्थ भाव से निरंतर पीड़ितों की मदद में लगा है।
हम बात कर रहे हैं सिख धर्म की। वह धर्म, जिसकी नींव ही सेवा परमो धर्म: के मंत्र से पड़ी है। सिख धर्म का नाम आते ही जहन में सबसे पहले जो बात आती है वह गुरुद्वारा साहिब और इनमें चलाए जाने वाले अटूट लंगर। सभी धर्मों के लोग गुरुद्वारा जाते हैं और यहां बनने वाले स्वादिष्ट गुरु के लंगर का आनंद लेते हैं। इसके आगे शायद ही आपने कभी जानने की कोशिश की हो कि आखिर सिखों में परोपकार की इतनी भावना क्यों है। क्यों हर आपदा की घड़ी में यह समुदाय सबसे आगे खड़ा मिलता है, फिर चाहे अपना देश हो या दुनिया का कोई भी कोना। क्यों ये लोग अपना स्वार्थ न देखकर दूसरों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरू नानक देव जी के मूल सिद्धांत सेवा, विनम्रता और समानता है। पंजाबी भाषा में ‘सिख’ शब्द का अर्थ ‘शिष्य’ होता है। सिख ईश्वर के वे शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं। सिख एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। इनका मानना है कि अपने हर काम में ईश्वर को याद करना चाहिये। इसे सिमरन या सुमिरण कहा जाता है। सिख मानते हैं कि सभी 10 धर्मगुरुओं में एक ही आत्मा का वास था। 10वें श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने (1666-1708) ने खालसा पंथ को पवित्र ग्रंथ श्रीगुरुग्रंथ साहिब को ही अपना सबकुछ मानने की हिदायत दी थी, जिसके बाद सिख समुदाय श्रीगुरुग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानते हैं।
श्री गुरुनानक देव जी का मुख्य उपदेश था- ईश्वर एक है, उसी ने सबको बनाया है। हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं। गुरु साहिब ने अपने शिष्यों को तीन बड़ी शिक्षाएं दीं- किरत करो नाम जपो और वंड छको (मेहनत करें, नाम जपें, और बांट कर खाएं)। कार सेवा इन्हीं शिक्षाओं का ही अंश है, जिसका अर्थ है दूसरों की निःस्वार्थ सेवा। सिख धर्म आज भी इन्हीं शिक्षाओं पर कायम है और इसका अनुशरण करते हुए वह चुपचाप से लोगों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता है।
कोरोना महामारी के इस मुश्किल दौर में दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारा साहिब की 400 ऑक्सीजन बेड वाला एक कोविड केयर सेंटर तैयार किया गया है। इसकी खास बात यह है कि इस सेंटर में बिलिंग काउंटर नहीं बनाया गया अर्थात यहां कोरोना पीड़ित लोगों की निःशुल्क देखभाल की जाती है। इस सेंटर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के साथ अटैच किया गया है। अगर किसी मरीज कि तबियत ज्यादा बिगड़ती है तो उसे तुरंत लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में शिफ्ट किया जाएगा।
देश में सरकार और सेना के बाद 10 दिनों में बनाया गया ये पहला सेमी-हॉस्पिटल है। आईसीयू को छोड़कर यहां इलाज, एम्बुलेंस, दवा हर तरह की सुविधाएं हैं । 5 लीटर से लेकर 20 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीज के लिए भी यहां उचित व्यवस्था की गई है। बीते दिनों जब देश की राजधानी दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी के चलते कई लोगों की जान पर बन आई थी तो सिख समुदाय के हर छोटे-बड़े गुरुद्वारा साहिब में ऑक्सीजन का ही लंगर लगा दिया गया। मरीजों को गुरुद्वारा साहिब के आंगन में बिठाकर ऑक्सीजन दी गई, ताकि अस्पताल पहुंचने से पहले उनकी हालत स्थिर हो सके।
इन दिनों कोरोना की रफ्तार को रोकने के लिए लगभग हर राज्य में लॉकडाउन और अन्य कई तरह की पाबंदियां लगाई गईं हैं, जिसकी वजह से दिहाड़ी मजदूर व अन्य गरीब तबका बेरोजगार हो गया है। इन लोगों को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सिख धर्म के लोग इन सबके लिए मसीहा बनकर आगे आए हैं। देश के हर गुरुद्वारा साहिब में ऐसे लोगों के लिए अटूट लंगर की सेवा की जाती है। दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में सुबह तीन बजे से लंगर की तैयारी शुरू हो जाती है। यहां करीब एक लाख लोगों के लिए खाना पकाया जाता है। हर रोज दाल, रोटी और चावल तैयार किया जाता है। इसके लिए पैसे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी और लोगों के चढ़ावे से आते हैं। दिल्ली और एनसीआर में कई जगहों पर यह लंगर बांटा जा रहा है।
गुरुद्वारा साहिब के सेवक या वॉलंटियर पता लगाते हैं कि किन इलाकों में भोजन की ज्यादा जरूरत है। कई बार स्थानीय एनजीओ और सरकार भी इन्हें इसकी जानकारी देते हैं। वहीं सिखों का मक्का कहे जाने वाले अमृतसर के श्री हरिमंदिर साहिब में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है, जहां हर दिन एक लाख से भी ज्यादा लोग लंगर छकते हैं। इस मुश्किल समय में जो लोग अपना पेट भरने में असमर्थ हैं, उनके लिए गुरुद्वारा साहिब की ओर से करवाया जा रहा लंगर जीवनदान देने से कम नहीं है।
केवल देश में ही नहीं, विदेशों में भी सिखों ने अपने सेवाभाव से लोगों का दिल जीत लिया है। पिछले साल अमेरिका में जब कोरोना का प्रकोप चरम पर था तो उस समय भी सिख धर्म के लोगों ने आम लोगों के साथ-साथ मरीजों की देखभाल में लगे डॉक्टरों और अन्य हेल्थ वर्कर्स तक को भी भोजन मुहैया करवाया। कोरोना से लड़ाई में सिख समुदाय के योगदान को देखते हुए न्यू जर्सी के गवर्नर फिल मर्फी ने वैशाखी के मौके पर सिख धर्म की जमकर तारीफ की। उन्होंने सिख समुदाय को दिए अपने संदेश में कहा कि सिख धर्म में सेवा, समानता एवं गरिमा के मूल्य कूट-कूट कर भरे हैं। इस समय जब दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है तो ऐसे में ये मूल्य बहुत महत्व रखते हैं।
वहीं ब्रिटेन में बसे पंजाबी मूल के बीस सिखों ने सद्भावना और समानता की ऐसी मिसाल पेश की कि दुनिया इनकी कायल हो गई। बीती 21 अप्रैल को महारानी एलिजाबेथ-2 के जन्मदिन पर इन सभी को ब्रिटिश एम्पायर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। कहने का मतलब यह कि सिख समुदाय के लोग दुनिया के किसी भी कोने में हो, अपना धर्म और सेवा कभी नहीं छोड़ते। खासतौर से जब कोई संकट की घड़ी आती है तो सिख ही सबसे आगे खड़े मिलते हैं और दूसरों की सेवा से कभी पीछे नहीं हटते। सेवा से ना सिर्फ लोगों को उस संकट की घड़ी से उबारते हैं, बल्कि उनके दिलों में भी हमेशा के लिए अपनी एक खास जगह बना लेते हैं। इन मुश्किल हालातों में एक तरफ जहां कुछ लोग जीवनरक्षक उपकरणों और दवाइयों की कालाबाजारी और जमाखोरी में जुटे हैं, वहीं सिखों की यही सेवा भावना हर किसी का दिल जीत रही है। श्रीगुरुग्रंथ साहिब में लिखा है-
विच दुनिया सेव कमाईये
तां दरगह बैसण पाईए
अर्थात, दुनिया में आकर सेवा करेंगे, तभी उस परमात्मा की हुजूरी में बैठने की जगह मिलेगी।
(लेखिका, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)