नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (6 सितंबर) को बिहार में आरक्षण बढ़ाकर 65% करने के पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई है. दरअसल, बिहार में मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने आरक्षण बढ़ाने के बिहार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसके लिए पिछले साल जाति सर्वेक्षण के बाद कानून पारित किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार (6 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बिहार सरकार और केंद्र को नोटिस जारी किए थे. जिसमें आरजेडी की ओर से दायर याचिका राज्य सरकार की लंबित अपील के साथ शामिल कर दिया.
याचिकाकर्ताओं द्वारा संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के बाद हाई कोर्ट ने 20 जून को फैसला सुनाया था कि ये संशोधन संविधान के “अधिकार के बाहर समानता के प्रावधान का उल्लंघन” हैं. इस पर पीठ ने कहा कि उसे 1992 के इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करने के लिए राज्य को सक्षम करने वाली कोई परिस्थिति नहीं दिखती. बिहार सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था और जुलाई में एक पीठ ने रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी का कहना है कि वह आरक्षण और “वंचितों के अधिकारों” के लिए लड़ाई जारी रखेगी. आरजेडी ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, “बिहार आरक्षण संशोधन अधिनियम को रद्द करने के पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राजद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया. राजद आरक्षण और वंचितों व उपेक्षितों के अधिकार के लिए सड़क, सदन और अदालतों में लड़ता रहेगा.
इसके साथ ही राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी पर निशाना साधा. 43 सीट वाले सीएम नीतीश कुमार आरएसएस की गोद में बैठ बीजेपी को लाड़-प्यार करते रहे, लेकिन हम पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों के लिए अपनी वैचारिक लड़ाई आमने-सामने से लड़ते रहेंगे.
बताते चलें कि आरक्षण कानून में संशोधन के माध्यम से पिछड़े वर्गों, अत्यंत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए कोटा 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया गया है. इस संशोधनों का प्रस्ताव करने वाले विधेयक बिहार विधानसभा और विधान परिषद में सर्वसम्मति से पारित किए गए. वहीं, आरक्षण में बढ़ोतरी का मतलब राज्य में शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ सरकारी नौकरियों पर भी लागू होना था.
दरअसल, बिहार जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि बिहार की 36 प्रतिशत आबादी अत्यंत पिछड़ी जातियों से है, 27.1 प्रतिशत पिछड़ी जातियों से, 19.7 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से और 1.7 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों से हैं. तथाकथित उच्च जातियों सहित सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 15.5 प्रतिशत है. इसके बाद राज्य में आरक्षण को बढ़ाकर 65% करने के लिए बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए) संशोधन अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 लाया गया.
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