रांची । झारखंड (Jharkhand) में नई तकनीक से रेशम की खेती (Sericulture) ने 18 हजार से ज्यादा परिवारों (18,000 Families) की जिंदगी में नई उम्मीदों की चमक (New Glimmer of Hope) बिखेरी है (Scattered) । राज्य सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत संचालित झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस)ने पिछले 2017 से लेकर अब तक 8 जिलों के 20 प्रखंडों में रेशम की वैज्ञानिक खेती से हजारों परिवारों को जोड़ा है। सुखद यह है कि रेशम की खेती की कमान मुख्य तौर पर महिलाओं के हाथों में है।
जेएसपीएलएस ने प्रोजेक्ट रेशम के तहत इन गांवों में उत्पादक समूह बनाये हैं। इन समूहों को तकनीकी मदद के साथ जरूरी यंत्र एवं उपकरण भी कराये जा रहे हैं। नई तकनीक के अनुसार किसानों को रेशम के धागे बनाने के लिए कुकून की टेस्टिंग माइक्रोस्कोप के जरिए की जाती है। चक्रधरपुर के मझगांव के सुदूरवर्ती गांव की निवासी इंदिरावती तिरिया भी उन किसानों में हैं, जिन्होंने इस तकनीक का प्रशिक्षण लेकर सफल तसर उत्पादक के रूप में इलाके में अपनी खास पहचान बनायी है।
इंदिरावती कहती हैं, मैंने तो कभी माइक्रोस्कोप का नाम भी नहीं सुना था, लेकिन आज मैं उसका बखूबी टेस्टिंग में इस्तेमाल कर लेती हूं। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। तसर खेती के अलावा हमारे परिवार के पास कमाई का और कोई साधन नहीं है। हम रेशम की खेती पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं। मुझे कभी लगा नहीं था कि तसर मेरे लिए इतना फायदेमंद साबित होगा। मुझे सरकार द्वारा प्रशिक्षण मिला। बीते साल हमारे परिवार को 1 लाख 69 हजार रुपये की आय हुई।
जेएसएलपीएस की सीईओ नैन्सी सहाय बताती हैं कि प्रोजेक्ट रेशम के तहत करीब 482 सखी मंडल की बहनों को आजीविका रेशम मित्र और 602 महिलाओं को टेस्टर दीदी के रूप में मास्टर ट्रेनर बनाया गया है, जो अपनी सेवा गांव में किसानों को प्रशिक्षण एवं तकनीकी मदद के लिए दे रही हैं। टेस्टर दीदियां कुकून की टेस्टिंग माइक्रोस्कोप के जरिए स्वयं करती हैं, वहीं रेशम मित्र तसर की वैज्ञानिक खेती से ग्रामीणों को जोड़ने एवं प्रशिक्षत करने का काम करती हैं।
वनों से भरपूर झारखंड के सुदूर जंगली इलाकों में वनोपजों को ग्रामीण परिवार की आजीविका से जोड़ने की यह पहल रंग ला रही है। नैन्सी सहाय के मुताबिक आनेवाले दिनों में दीदियों को यार्न उत्पादन से लेकर रेशम के उत्पाद बनाने तक से जोड़ने की योजना है।
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