जरूरत ही नहीं तो जहमत कौन उठाए… विपक्षी चीखें-चिल्लाएं…. घर जाएं… जिन्होंने इन्हें चुना है वो मातम मनाएं… दिमाग के फकीर इतना भी नहीं समझते कि संसद में वो नहीं बैठेेंगे… मुद्दों पर बहस नहीं करेंगे… विकास और योजनाओं की बात नहीं करेंगे… सरकार की गलतियों और खामियों पर नहीं लड़ेंगे… उनकी मनमानियों और नीतियों पर सवाल नहीं उठाएंगे तो सरकार को जो करना है वो करती जाएगी… जब विरोध ही नहीं होगा तो कोई भी फैसला कैसे रुकेगा… वो अपने शहरों को सौगात दिलाएंगे… वो अपने लोगों को फायदा पहुंचाएंगे… वो बिना रोक-टोक अपने शासित राज्यों को अनुदान भिजवाएंगे… वहां विकास होते जाएंगे और आप अडानी-अंबानी की रट लगाकर वक्त गंवाते चले जाएंगे… पांच साल बाद जब जनता के बीच जाएंगे तो सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे और जीत को हार में बदलकर घर लौट जाएंगे… यह सच कुछ लोग समझते हैं… मगर अडानी फीवर के बीमार राहुल गांधी और उनकी खड़ाऊ बने खडग़े हंटर मार-मारकर सांसदों को सनक का शिकार बना रहे हैं… उनके अपने सहयोगी आंख दिखा रहे हैं… बेचारी ममता समझा-समझाकर परेशान हैं… संसद से भागने के चलते बढ़ती मुसीबतों से हैरान हैं… समाजवादी इधर जाएं या उधर जाएं के रास्ते से भटककर परेशान हैं और जनता बिना लगाम के घोड़े के ढाए जाने वाले सितम से परेशान है…सरकार नाम का यह घोड़ा पता नहीं किन मंसूबों को रौंद डालेगा… किन मनमानियों का हंटर पीठ पर मारा जाएगा…नए-नए टैक्सों… नीतियों और नियमों के खौफ से सहमी जनता विपक्ष का विरोध चाहती है… हर मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष की तकरार से उपजी बहस सुनना चाहती है… अपने चुने हुए लोगों को परखना चाहती है, मगर विपक्षी हैं कि संसद का कीमती समय और सांसदों पर होने वाला खर्च डकारकर अपनी चवन्नी राजनीति मेें जरूरत और जिम्मेदारी दोनों गंवा रहे हैं… सरकार को चाहिए वो ऐसा प्रस्ताव लाए कि सांसद हो या विधायक यदि संसद और विधानसभा से वाकआउट कर अपनी ताकत दिखाए तो उसके वेतन से लेकर तमाम भत्ते रोक दिए जाएं… ऐसे लोगों के नाम पटल पर लाए जाएं… अखबारों में ऐसे सांसदों के नाम छपवाए जाएं… लोगों को यह बताया जाए कि उनका चुना हुआ प्रतिनिधि रणछोड़दास है, जो मैदान में मुकाबला नहीं कर पाता…जो मैदान छोडक़र भागने का नुस्खा आजमाता है…जिसमें बहस करने की शक्ति नहीं है…जिसके मन में लोकतंत्र की भक्ति नहीं है…जो जनता की जरूरतों को नहीं समझता है…सही-गलत में अंतर नहीं कर सकता है…अपने इलाके की समस्या और विकास दोनों से दूर रहने में अपनी शान समझता है…उसे भगोड़ा करार दिया जाना चाहिए और ऐसे भगोड़ों को शहरों में भी नहीं घुसने देना चाहिए…तब जाकर संसद में सांसद टिकेंगे… राज्यों में भी विधायक हल्ले-गुल्ले से दूर रहेंगेे…जनता के चयन की कीमत का मोल समझेंगे…वरना आज जैसे हैं… कल तो वैसे भी नहीं रहेंगे…संसद छोडक़र संभल का कूच करेंगे… वहां हंगामा मचाएंगे… धरने पर बैठकर ताकत दिखाएंगे… अक्ल के अंधे इतना भी नहीं समझ पाएंगे कि जिस संसद में उन्हें आवाज उठाना चाहिए… संभल का सच जहां जानना चाहिए वहां कान और दिमाग लगाने के बजाय हुड़दंग में समय गंवा रहे हैं और उन्हें वोट देने वाले माथा पीटकर मातम मना रहे हैं….
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved