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    देखिए, अब क्या गुल खिलाते हैं कन्हैया ?

  • October 01, 2021

    – आर.के. सिन्हा

    कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इसी के साथ एक बात तो समझ आ ही गई कि जब हर तरह से खैरख्वाही करने के बाद उनकी कम्युनिस्टों में नहीं चली तो वे अपने को दल-बदलू के रूप में स्थापित करने लगे हैं। कुछ साल तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) में जी-जान लगाने के बाद वे कांग्रेस में चले गए। अब भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। बिहार में जो स्थिति कम्युनिस्ट पार्टी की है, कमोबेश वैसी ही स्थिति बिहार में कांग्रेस की भी बन चुकी है। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव बेगूसराय से भाकपा के टिकट पर लड़ा था। वे भाजपा के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह से बुरी तरह हार गए थे।

    अब जब वे कांग्रेस में शामिल हो ही गए हैं तो कांग्रेस और सोनिया-राहुल-प्रियंका को जवाब देना होगा कि क्या कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार की इस राय से सहमत है कि भारतीय सेना के जवान कश्मीर में बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य कर रहे हैं ? कन्हैया कुमार तो भारतीय सेना को बार-बार बलात्कारी कहते ही रहे हैं। उन्होंने न जाने कितनी बार कहा कि भारतीय सेना कश्मीर में मासूम कश्मीरी औरतों के साथ रेप कर रही है।

    भारतीय सेना पर इतने ओछे आरोप लगाने वाले कन्हैया कुमार के आरोपों को देखने के लिए कोई भी यूट्यूब पर जा सकता है। क्या कांग्रेस भी कन्हैया कुमार के बेतुके, बेहूदगी भरे और निहायत बेबुनियाद आरोपों के साथ खड़ी है ? अगर हां तो वह देश को सुबूत दे। कन्हैया कुमार और उसे कांग्रेस में लाने वाले नेताओं से यह पूछा जाना चाहिए कि कन्हैया कुमार किस आधार पर सरहदों की रक्षा करने वाली भारतीय सेना पर आरोप लगाते रहे हैं ? कन्हैया कुमार ने सेना पर आरोप तो लगा दिए पर उसे तब सेना का अदम्य साहस और कर्तव्य परायणता दिखाई नहीं दी जब सेना के जवानों ने जान पर खेलकर कश्मीरी अवाम को बाढ़ के समय उनकी रक्षा करके सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया था।

    कन्हैया कुमार को लिट फेस्टिवलों में बुलाया जाता था। कुछ साल पहले लखनऊ लिट फेस्टिवल में कन्हैया कुमार को बुलाया गया था। हालाँकि कन्हैया कुमार का लिटरेचर या साहित्य से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। तब उनके वहां बुलाए जाने पर कसकर हंगामा भी हुआ था और वहां ‘’कन्हैया कुमार वापस जाओ’’ के नारे लगे थे।

    कन्हैया कुमार ने 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के दिल-दहलाने वाले सिख विरोधी दंगों और हजारों सिखों के बर्बरतापूर्ण नरसंहार के लिए कांग्रेस को क्लीन चिट दे दी थी। कन्हैया कुमार कह चुके हैं कि 1984 के दंगे भीड़ के उन्माद के कारण ही भड़के। इस तरह से उन्होंने कांग्रेस को प्रमाणपत्र दे दिया था कांग्रेस की 1984 के दंगों में कोई भूमिका ही नहीं थी। लेकिन, भीड़ को उन्मादी बनाया किसने ? क्या कन्हैया कुमार को पता नहीं है कि कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार जी 1984 के दंगों को भड़काने के आरोप सिद्ध होने के बाद ही उम्रकैद की सजा झेल रहे हैं ? अब वे चाहें तो सज्जन कुमार से कभी राजधानी की मंडोली जेल में जाकर मिल भी सकते हैं। सज्जन कुमार के अलावा और भी कई कांग्रेसियों पर 1984 के दंगे भड़काने के आरोप सिद्ध हो चुके हैं। कन्हैया कुमार जब जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे, उस दौरान वहां उन्हीं के नेतृत्व में संसद हमले के गुनाहगार अफजल गुरू का जन्मदिन मनाया गया था। यह बात सारी दुनिया को पता है। क्या कांग्रेस भी अब अफजल का जन्मदिन मनाएगी ?

    कन्हैया कुमार की राजनीति “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह” के इर्द-गिर्द घूमती रही है। कन्हैया कुमार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने राजद्रोह के मामले को लेकर विगत 15 मार्च को तलब किया था। दिल्ली पुलिस को 2016 में जेएनयू में हुई नारेबाजी के मामले में राष्ट्रद्रोह के आरोप में चार्जशीट दायर करने की इजाजत मिल चुकी है। पुलिस ने अपनी चार्जशीट में दावा किया है कि 9 फरवरी 2016 को संसद हमले के आरोपी अफजल गुरू की बरसी पर कन्हैया कुमार के नेतृत्व में जेएनयू कैंपस में देशद्रोही नारे लगे थे।

    कन्हैया कुमार ने कभी जनता के जमीनी सवालों को नहीं उठाया है। वे बेरोजगारी, महंगाई और बेहतर शिक्षा के लिए कभी नहीं लड़े। उनकी सारी क्रांति जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी कैंपस से शुरू होकर जंतर मंतर या किसी खबरिया टीवी चैनल के दफ्तर पर जाकर खत्म होती रही है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने तो कन्हैया कुमार में भगत सिंह का अक्स ही देख लिया था। इससे शर्मनाक बयान कुछ हो ही नहीं सकता था। भगत सिंह को आज भी सारा देश परम आदरणीय मानता है। उनकी तुलना कन्हैया कुमार से करना घोर शर्मनाक माना जाएगा।

    कन्हैया कुमार जब पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता गिरिराज सिंह के खिलाफ बेगूसराय में लड़ रहे थे तो कुछ लोग यह भी कहने लगे थे कि वे जीत जाएँगे। पर हुआ इसके विपरीत। वे गिरिराज जी के हाथों चार लाख मतों से हारे। कन्हैया कुमार के लिए उनके टुकड़े-टुकड़े गैंग के सैकड़ों दोस्त भी बेगूसराय में डेरा डाले हुए थे। जावेद अख्तर भी कन्हैया कुमार के हक में बेगूसराय में घनघोर प्रचार कर रहे थे। उन्हीं 76 वर्षीय कवि, गीतकार, पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने हाल ही में कहा था, ‘तालिबान एक इस्लामी देश चाहता है। ये लोग हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं।’ यानी अख्तर साहब अब तालिबानियों की तुलना हिन्दुत्वादियों से करने लगे हैं।

    कन्हैया कुमार और दिल्ली दंगों को भड़काने के आरोपी उमर खालिद जैसों के कारण ही जेएनयू जैसा उच्च कोटि का शिक्षा संस्थान बदनाम हुआ। काश, जेएनएनयू में रहते हुए इन्होंने यहां के पूर्व छात्र सुनील के बारे में भी कुछ जाना होता। सुनील 1978 से 1984 तक जेएनयू में रहे और इस बीच उन्हें जेएनयू का गांधी तक कहा जाने लगा। सदैव खादी का कुर्ता-पायजामा पहनने वाले सुनील ज्ञान का भंडार थे। जब जेएनयू के पूर्व छात्र अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिला तो सुनील के मित्र और जेएनयू में उनके समकालीन उन्हें बड़ी शिद्दत के साथ याद कर रहे थे। वे भी जेएनयू में इकोनॉमिक्स के ही छात्र थे। वे मध्य प्रदेश से आए थे। उन्होंने एमए की परीक्षा में पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। वे जेएनयू में प्रोफेसर कृष्णा भारद्वाज और डॉक्टर सतीश जैन जैसे गुरुजनों के सबसे प्रिय छात्रों में थे।

    सुनील के ज्ञान, सादगी और विनम्रता का लोहा सब मानते थे। सबको लग रहा था कि वे आने वाले समय में दुनिया के सबसे आदरणीय अर्थशास्त्री बन जाएंगे। पर उन्होंने मध्य प्रदेश के आदिवासियों के बीच जाकर कुछ सृजनात्मक काम करने का मन बनाया। सुविधाभोगी कन्हैया कुमार से किसी तरह के आदर्शों की उम्मीद करने को कोई मतलब नहीं है। अब वे कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। देखिए अब वे राहुल गाँधी से मिलकर क्या गुल खिलाते हैं।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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