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सुरक्षा में चूक: लापरवाही से आगे के निहितार्थ

January 10, 2022

– डॉ. राघवेंद्र शर्मा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में जोखिम पूर्ण लापरवाही देखकर मन व्यथित ही नहीं, अपितु आश्चर्यचकित भी है। अबतक अनेक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति हुए, लेकिन उनकी सुरक्षा व्यवस्था में ऐसी गंभीर चूक देखने में नहीं आई। यह क्षोभ केवल इसलिए नहीं है कि मोदी भाजपा के स्थापित नेता हैं। बल्कि इसलिए भी है, क्योंकि वे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री, वैश्विक पटल पर तेजी से उभर रहे अंतरराष्ट्रीय नेता भी हैं।

यह लिखने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं है कि मोदी के नेतृत्व में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जो धाक जमाई है, वह अप्रतिम है। स्वयं को विश्व का स्वयंभू मुखिया मानने वाले देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी मोदी की कार्यप्रणाली के चलते यह ध्यान रखने लगे हैं कि उनके क्रियाकलापों से कहीं भारत की भावनाएं आहत तो नहीं हो रहीं! यह भी पहली बार देखने को मिल रहा है कि भारत अपने पड़ोसी देशों की ज्यादतियों को लेकर सुरक्षात्मक नहीं बल्कि आक्रामक मुद्रा के साथ अपनी संप्रभुता की रक्षा करने हेतु पूर्व की अपेक्षा कहीं अधिक दृढ़ संकल्पित दिखाई देता है। फलस्वरूप भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समूचा विश्व नए नेतृत्व कर्ता के रूप में देखने लगा है। ऐसे में शत्रु देशों की आंखों में हमारे प्रधानमंत्री का खटकना स्वाभाविक है।

जाहिर है इससे उनकी जान का और भारत में राजनीतिक अस्थिरता का जोखिम बढ़ जाता है। यह सब जान समझ कर उनकी सुरक्षा के प्रति सभी राजनीतिक दलों, उनके नेताओं और विभिन्न प्रांतों की सरकारों का दायित्व और बढ़ जाता है। फिर भी पंजाब के दौरे पर उनके काफिले का तथाकथित आंदोलनकारियों के बीच घिर जाना, वहां की सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है। यह कितनी घातक स्थिति थी कि प्रधानमंत्री का काफिला एक ओवरब्रिज पर ऐसी जगह घेरा गया, जहां से उन्हें तत्काल ना निकाला गया होता तो वहां से ना आगे बढ़ना संभव था और ना पीछे लौटना।

सबसे बड़ी जोखिम पूर्ण स्थिति तो यह रही कि जहां यह विसंगति पूर्ण घटना घटित हुई, वहां से पाकिस्तान की सीमा बमुश्किल 35 किलोमीटर दूर रह जाती है। अतः इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि जो कुछ भी हुआ, कहीं उसमें शत्रु देशों द्वारा रचित षड्यंत्र के तहत स्थानीय राष्ट्र विरोधी तत्वों का हाथ तो नहीं? क्योंकि राष्ट्रीय स्तर के समाचार चैनलों में यह स्पष्ट रूप से दिखाया गया कि मोदी के पंजाब दौरे से ठीक पहले वहां खालिस्तान समर्थकों ने दुपहिया वाहन रैली निकाली और उसमें खुलकर खालिस्तान जिंदाबाद तथा देश के प्रधानमंत्री के लिए मुर्दाबाद के नारे लगाए गए। कौन नहीं जानता कि इन्हीं खालिस्तानियों के हाथों पूर्व में देश के एक प्रधानमंत्री की जान ली जा चुकी है। ये और बात है कि उसके बाद कांग्रेसियों ने पूरे मुल्क में सिखों के खिलाफ आतंक का जो नंगा नाच किया, उसने खालिस्तानियों की नृशंस करतूतों को भी शर्मिंदा कर दिया था। उक्त बेहद शर्मनाक वाकये के बाद देशभर के सिखों का कांग्रेस से मोहभंग हुआ, जो अब तक बना हुआ है।

इस नजरिए से देखा जाए तो संदेह उत्पन्न होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले का घेराव उनका अनिष्ट किए जाने के षड्यंत्र का भाग तो नहीं था। कहीं यह घेराव उस षड्यंत्र का भाग तो नहीं था, जिसके तहत बड़ी अप्रिय वारदात घटित कर भाजपा के खिलाफ सिखों को, या फिर सिखों के खिलाफ दूसरे वर्गों को आक्रोशित किया जा सके। यह सारे सवाल इसलिए भी महत्व रखते हैं, क्योंकि केंद्र में स्थापित मोदी सरकार के राजनीतिक विरोधियों में सैद्धांतिक विरोध का सामर्थ्य कम, शत्रुता का भाव ज्यादा देखने में आता है। इनके द्वारा आयोजित अनेक राजनैतिक विरोध प्रदर्शनों में वर्तमान प्रधानमंत्री की मृत्यु तक की कामना की जाती है।

यही नहीं, विभिन्न राज्यों में स्थापित गैर भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों और उनसे संबंधित मंत्रियों, नेताओं द्वारा वहां के राज्यपालों के साथ आए दिन दुर्व्यवहार किया जाता रहता है। अनेकों बार उनके समक्ष अप्रिय और जोखिम पूर्ण स्थितियां निर्मित की जाती रहती हैं। वह भी केवल इसलिए, क्योंकि उपरोक्त सरकारों और उनके नेताओं को महामहिम में निहित एक वैधानिक शख्सियत की बजाय उनके भीतर केवल एक विरोधी दल का राजनेता दिखाई देता है। इस तरह के आचार-विचार और व्यवहार, देश के लोकतांत्रिक संघीय ढांचे के लिए मंगलदायक तो कतई नहीं हैं।

अतः आवश्यकता इस बात की है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई गंभीर चूक में निहित साजिशों का पर्दाफाश होना चाहिए। उन चेहरों को बेनकाब करते हुए उनके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई अपेक्षित है, जिनके द्वारा देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में व्यवधान पैदा किया गया। यह भी जरूरी है कि भारत जैसे विश्व के महान लोकतांत्रिक देश में संकीर्ण राजनीतिक मंशाओं का त्याग किया जाना चाहिए। सियासी विरोधियों के प्रति विरोध कायम रखते हुए उसके प्रति मन में स्थापित शत्रुता का भाव खत्म होना आवश्यक है। यदि हम ऐसा कर पाए, तभी देश की महान सौहार्दपूर्ण परंपराओं को बचा कर रख पाएंगे।

(लेखक, मप्र बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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