नई दिल्ली। पेटीएम के प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) में निवेशकों को भारी घाटा लगने के बाद इससे सबक लेते हुए सेबी ने आईपीओ से जुड़े नियम सख्त कर दिए हैं। अब नियामक ने आईपीओ को मंजूरी देने के मामले में सावधानी बरतना शुरू कर दिया है। इसने दो माह में छह कंपनियों के इश्यू को वापस लौटाया है। साथ ही कहा, कंपनियां फिर से सारी जानकारियों को अपडेट कर मसौदा जमा कराएं।
सेबी ने जिन कंपनियों के मसौदों (DRHP) को वापस लौटाया है, उसमें ओयो चलाने वाली ओरावेल, गो डिजिट इंश्योरेंस, पेमेंट इंडिया, लावा इंटरनेशनल, फिनकेयर स्मॉल फाइनेंस बैंक और बीवीजी इंडिया हैं। इन सभी ने सितंबर, 2021 से मई, 2022 के बीच मसौदा जमा कराया था। इनके कागजात इस साल जनवरी से मार्च के बीच वापस लौटाए गए हैं। ये कंपनियां आईपीओ से 12,500 करोड़ जुटाने वाली थीं। 2021 में कुछ बड़े आईपीओ में निवेशकों के पैसे गंवाने के बाद सेबी आईपीओ को मंजूरी देने में सख्त हो गया है।
59,000 करोड़ रुपये जुटाए थे 38 कंपनियों ने 2022 में आईपीओ के जरिये
इस साल में अब तक केवल 9 कंपनियों ने ही मसौदा जमा कराया है। दो कंपनियां ही निर्गम लाई हैं और इनसे 730 करोड़ जुटाई हैं। 2022 में 38 कंपनियों ने 59,000 करोड़ और 2021 में 63 कंपनियों ने 1.2 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे।
जोमैटो-नायका ने भी दिया घाटा
पेटीएम, जोमैटो और नायका जैसी नए जमाने की डिजिटल कंपनियों के आईपीओ की लिस्टिंग की गड़बड़ी के बाद निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रमुख वीके विजय कुमार ने कहा कि पूंजी बाजार नियामक सेबी का फैसला निवेशकों के हित में है। निवेशकों को आईपीओ के लिए आवेदन करते समय दिमाग का इस्तेमाल करना होगा और उनकी ऊंची कीमत से भी बचना होगा।
पेटीएम की मूल कंपनी वन97 कम्युनिकेशन नवंबर, 2021 में शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हुई थी। 2010 में कोल इंडिया के 15,300 करोड़ रुपये के बाद 18,300 करोड़ रुपये जुटाने वाली पेटीएम का आईपीओ सबसे बड़ा था। कभी भी इसका शेयर मूल भाव पर नहीं पहुंच पाया। अभी भी इसका शेयर इश्यू भाव से 72 फीसदी नीचे पर कारोबार कर रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि सेबी का हालिया कदम मर्चेंट बैंकरों को मसौदा जमा करने के लिए जरूरी सूचनाओं का पूरी तरह से पालन करने के लिए एक मजबूत संदेश देता है। इससे मर्चेंट बैंकरों को भी अब ज्यादा से ज्यादा सूचनाओं को मिलाकर काम करना होगा। इससे पहले सेबी आईपीओ लाने वाली कंपनियों को चार महीने का अतिरिक्त समय देता था।
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