नई दिल्ली। बुलडोजर एक्शन (Bulldozer action) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महीनेभर में दूसरी बार कड़ी टिप्पणी की है। उसने बुलडोजर चलाने की धमकी (Threat bulldozer) नहीं देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि किसी अपराध में कथित संलिप्तता संपत्तियों को ध्वस्त (Demolished properties) करने का आधार नहीं है। शीर्ष अदालत ने गुजरात के एक नगर निकाय को आदेश दिया कि वह यथास्थिति बनाए रखे और एक आपराधिक मामले के आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाने की धमकी न दे। कोर्ट ने कहा कि ऐसे देश में जहां कानून सर्वोच्च है, इस तरह ध्वस्त करने की धमकियां अकल्पनीय हैं।
कोर्ट ने कहा कि वह ऐसी कार्रवाइयों से बेखबर नहीं रह सकता, जिन्हें देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने के रूप में देखा जा सकता है। जस्टिस हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा, ”ऐसे देश में जहां सरकार की कार्रवाई कानून के शासन द्वारा शासित होती है, परिवार के किसी सदस्य द्वारा किया गया अपराध परिवार के अन्य सदस्यों या उनके कानूनी तौर पर निर्मित घर के खिलाफ कार्रवाई को आमंत्रित नहीं करता है। अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं है।”
कोर्ट ने कहा, ”इसके अलावा कथित अपराध को अदालत में उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से साबित किया जाना चाहिए। जिस देश में कानून सर्वोच्च है, वहां ध्वस्त करने की ऐसी अल्कपनीय धमकियों को न्यायालय नजरअंदाज नहीं कर सकता। अन्यथा इस तरह की कार्रवाइयों को देश के कानून पर बुलडोजर चलाने के रूप में देखा जा सकता है।”
बेंच ने प्रस्तावित तोड़फोड़ की कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध करने वाली जावेद अली एम सैयद की याचिका पर गुजरात सरकार और राज्य के खेड़ा जिले के कठलाल के नगर निकाय को नोटिस जारी किया। अदालत ने राज्य और नगर निकाय से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एक सितंबर को परिवार के एक सदस्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
वकील ने दावा किया कि नगर निगम के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के परिवार के घर पर बुलडोजर चलाने की धमकी दी है। शीर्ष अदालत मामले की समीक्षा करने पर सहमत हुई और इसे एक महीने के बाद सूचीबद्ध किया। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए बुलडोजर ऐक्शन पर जल्द गाइडलाइंस बनाने की बात कही थी। कोर्ट ने इसे गंभीर और चिंताजनक बताते हुए कहा था कि कुछ राज्यों में जिस तरह से कार्रवाई हो रही है, वह नियमों के खिलाफ है।
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