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SC का ऐतिहासिक फैसला, 31 साल पुराने नियम को किया निरस्त.. अब दृष्टिहीन भी बन सकेंगे जज

  • March 04, 2025

    नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि दृष्टिहीन लोग (Blind people.) भी जज बन सकते हैं। दिव्यांगों के अधिकारों (Disabled rights) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि न्याय व्यवस्था (Judicial system) को ज्यादा समावेसी और सहज बनाना है। ऐसे में दृष्टिहीन लोगों को जज बनने से रोका नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक कानून को रद्द करते हुए कहा कि दृष्टिहीन लोग भी न्यायिक परीक्षा में हिस्सा लेने के हकदार हैं। इस प्रोफेशन में अक्षमता प्रतिभा के आगे बाधा नहीं बन सकती।


    जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर माहेदवन की बेंच ने कहा कि मेडिकल एक्सपर्ट द्वारा किया गया क्लीनिकल असेसमेंट किसी दिव्यांग शख्स को उसके अधिकारों से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता। पीठ ने दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन अभ्यार्थियों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखने वाले मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम की शर्तों के उस भाग को निरस्त करते हुए कहा कि वे (दृष्टिहीन और दृष्टिबाधित) भारत की न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति के आवेदन के पात्र हैं। पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा, “मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम 1994 के नियम 6ए को निरस्त किया जाता है, क्योंकि यह दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखता है।’

    पीठ ने कई पहलुओं पर गौर करने के बाद कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुसार उनकी (दिव्यांग व्यक्तियों की) पात्रता का आकलन करते समय उन्हें उचित सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा की भर्ती में किसी भी तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए और राज्य को समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सकारात्मक कार्रवाई प्रदान करनी चाहिए। पीठ ने फैसले में आगे कहा कि वह संवैधानिक ढांचे और संस्थागत अक्षमता ढांचे से निपटता है और इस मामले को सबसे महत्वपूर्ण मानता है।

    शीर्ष अदालत के समक्ष एक दृष्टिबाधित अभ्यर्थी की मां ने पिछले साल मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम में शामिल उक्त नियम के खिलाफ पत्र याचिका दी थी, जिस पर अदालत ने स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद तीन दिसंबर, 2024 को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

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