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    SC का फैसला बहुओ के हक में, सास-ससुर के घर में भी रहने का हक

  • October 16, 2020

    नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी समाज की प्रगति उसकी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करती है। भारत के संविधान द्वारा महिलाओं को समान अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान करना, इस देश में महिलाओं की स्थिति के परिवर्तन की दिशा में कदम को दर्शाता है।

    जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा है कि इस देश में घरेलू हिंसा बड़े पैमाने पर हो रहे हैं और कई महिलाएं किसी न किसी रूप में लगभग हर दिन हिंसा का सामना करती हैं। हालांकि, इस हिंसा के मामले बेहद कम दर्ज होते हैं।

    शीर्ष अदालत ने कहा है कि एक महिला अपने जीवनकाल में एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी, एक मां, एक साथी या एक महिला के तौर पर हिंसा और भेदभाव का सामना करती हैं और उसे अपने भाग्य का हिस्सा मान लेती हैं। सामाजिक कलंक के डर से घरेलू हिंसा के ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट कभी नहीं की जाती है। महिलाओं से न केवल उसके पति से बल्कि पति के रिश्तेदारों के अधीन रहने की उम्मीद की जाती है।

    शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी घरेलू हिंसा के एक मामले में ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ को व्याख्या करते हुए की है। शीर्ष अदालत ने वर्ष 2007 के आदेश को दरकिनार करते हुए कहा हैं कि ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ का तात्पर्य पति के किसी रिश्तेदार से है, जिसके साथ एक घरेलू संबंध में महिला रह चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के रिश्तेदारों के घर में भी रहने की मांग कर सकती है जहां वह अपने घरेलू संबंधों के कारण कुछ समय के लिए रह चुकी हो।

    शीर्ष अदालत ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-धारा 2 (एस) में दिए गए ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ की परिभाषा का मतलब सिर्फ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि संयुक्त परिवार है और पति एक सदस्य है या उस घर में महिला के पति की हिस्सेदारी है। वर्ष 2006 के फैसले में दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि पत्नी केवल एक ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ में निवास के अधिकार का दावा करने की हकदार है, जिसका अर्थ केवल पति द्वारा किराए पर लिया गया घर या संयुक्त परिवार से संबंधित घर होगा, जिनमें पति एक सदस्य है।

    क्या था मामला
    एक महिला अपने पति व सास-ससुर के साथ एक दिल्ली के एक पॉश कॉलोनी के एक घर में रहती थी। शादी के कुछ वर्षों के बाद पति-पत्नी में अनबन शुरू हो गई और मामला तलाक की अर्जी तक जा पहुंचा। महिला ने घरेलू हिंसा के तहत पति व सास-ससुर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। इसी दौरान ससुर ने बहू से अपना खरीदा घर खाली करने को कहा। महिला द्वारा घर से निकलने से इनकार करने के बाद ससुर ने ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ट्रायल कोर्ट ससुर के पक्ष में फैसला सुनाते हुए महिला को घर खाली करने के लिए आदेश दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए मामले को वापस भेजते हुए नए सिरे से विचार करने के लिए कहा। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया है।

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