रामेश्वर धाकड़, भोपाल
महिला हिंसा के खिलाफ एक बार फिर देश की जनता में सरकारी तंत्र के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश है। दुष्कर्म की घटनाओं के विरोध एवं दुष्कर्मियों को तत्काल फांसी की सजा देने की मांग को लेकर महिलाएं सड़क पर हैं। इस बीच यह तथ्य सामने आया है कि मप्र में महिलाओं अधिकारों का हनन रोकने एवं पीडि़ताओं को न्याय दिलाने लिए गठित संवैधानिक संस्थाएं खुद ही पीडि़त हैं। मप्र में महिला आयोग सिर्फ नाम का है, आयोग की सरकारी तंत्र में कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। पुलिस मुख्यालय की महिला विंग बेहद कमजोर है। हर थाने में महिला डेस्क की व्यवस्था सिर्फ कागजों में है। थाने से लेकर, कोर्ट-कचहरी महिला आयोग तक महिलाओं की चीखें फाइलों में कैद हैं। महिलाओं से दुष्कर्म की घटनाओं के मामलों में मप्र देश में सबसे आगे है। दुष्कर्मियों को फांसी की सजा देने का कानूनी भी मप्र में सबसे पहले बना था। लेकिन अभी तक एक भी दुष्कर्मी को मप्र में फांसी पर नहीं टांगा गया है। सरकार किसी भी दल की हो, विपक्ष हमेशा महिला अपराधों पर सिर्फ सियासत तक सीमित रहा है। सरकार कोई ठोस कार्रवाई करने की वजाए सिर्फ तर्कों से विपक्ष के आरोपों का जवाब तक सीमित रहती है। यही वजह है कि प्रदेश में महिला अपराधों पर अंकुश नहीं लग रहा है।
महिला आयोग न्याय के लिए खुद कोर्ट में
प्रदेश में महिला आयोग में अध्यक्ष, सदस्य नियुक्त हैं, लेकिन महिला अपराध से जुड़ी अनुशंसाओं की सरकारी तंत्र में सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। पिछली सरकार ने आखिरी दिनों में राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति की थी। भाजपा सरकार ने आते ही कांग्रेस सरकार द्वारा आनन-फानन में की गईं आयोगों की सभी नियुक्तियों को रद््रद कर दिया था। युवा, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक एवं महिला आयोग के पदाधिकारी सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में न्याय के लिए गए हैं। हाईकोर्ट की रोक की वजह से ही इन आयोगों में पदाधिकारी तैनात हैं। खास बात यह है कि महिला आयोग न तो बैंच लगा पा रहा है। इस वजह से न तो अधिकारी पेशी पर जा रहे हैं और न हीं महिला अपराध से जुड़ें मामलों की सुनवाई हो रही है।
पीएचक्यू की महिला विंग बेहद कमजोर
पीएचक्यू की महिला विंग बेहद कमजोरपुलिस मुख्यालय में भी महिला अपराधों को डील करने के लिए अलग से महिला विंग है। इसकी मुखिया भी आमतौर महिला अधिकारी होती है। लेकिन पीएचक्यु की यह विंग भी बेहद कमजोर है। महिला से जुड़े अपराधों को लेकर पीएचक्यू भी सिर्फ खानापूर्ति तक सीमित हैं। महिला अपराध हर जिले में हो रहे हैं, ऐसे अपराधों में पुलिस की लापरवाही भी सामने आती हैं, लेकिन पीएचक्यू कोई कसावट नहीं कर पा रहा है। दिसंबर 2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद मप्र में महिला अपराधों में कमी लाने और पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए पीएचक्यू की महिला विंग को ताकतवर बनाने की कोशिश की गई थी। अब तो महिलाओं की शिकायत तक नहीं सुनी जाती हैं। जिलों में महिला थानों की स्थिति सुधरने की वजाए कमजोर होती चली गई है।
महिला पुलिस कर्मी भी पीडि़त
पुलिस महकमे में भी महिला प्रताडऩा की घटनाएं सामने आती रहती हैं। शिकायतों के बाद भी महिला पुलिस कर्मचारी एवं अधिकारियों की सुनवाई नहीं होती है। पुलिस महकमे में महिला पुलिस कर्मियों से जुड़े ऐसे दो दर्जन से ज्यादा केस हैं, जो फाइलों में कैद हैं।
मुख्यालयों में पदस्थ हैं महिलाएं
महिला अपराधों को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बेहद संवेदनशील हैं। पुलिस मुख्यालय की मनाही के बाद भी उन्होंने पुलिस भर्ती में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिलाया था। महिलाओं ने पुलिस भर्ती में आरक्षण का लाभ लिया, लेकिन नौकरी में भर्ती होने के बाद ज्यादातर महिला पुलिस कर्मचारी एवं अधिकारी पुलिस थानों में पदस्थ होने की वजाए एसपी कार्यालय, आईजी कार्यालय, पुलिस मुख्यालय समेत पुलिस के अन्य कार्यालय में पदस्थ हैं। जबकि सरकार ने हर थाने में महिला पुलिस कर्मचारी की पदस्थापना की मंशा से पुलिस में महिलाओं का आरक्षण 33 फीसदी किया था।
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