न्यूयार्क। कोरोना वायरस (Corona Virus) को लेकर अब एक नई सनसनीखेज जानकारी (Sensational Information) वैज्ञानिकों (Scientists) के सामने आई है। जिसने उन्हें भी चौंकने के लिए मजबूर कर दिया । दरअसल, इस बारे में एक अध्ययन (Research) से पता चला है कि कोरोना के मरीजों में दिन और रात के हिसाब से जांच का नतीजा बदल जाता है। अमेरिका (America) के वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (Vanderbilt University Medical Center) के अध्ययन में कहा गया है कि वायरस समय और व्यक्ति के बाडी क्लाक के हिसाब से अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है।
अध्ययन में कहा गया है कि रात की तुलना में यदि किसी ने सैंपल दोपहर में दिया हो तो संक्रमित होने की सटीक जानकारी मिलने की उम्मीद दोगुना रहती है यानी दोपहर के समय जांच से फाल्स निगेटिव की आशंका कम हो जाती है। फाल्स निगेटिव उस स्थिति को कहते हैं, जिसमें संक्रमित होने पर भी जांच रिपोर्ट में निगेटिव आ जाता है। पाया गया है कि फाल्स निगेटिव मरीज और उसके आसपास के लोगों के लिए खतरनाक होता है क्योंकि संक्रमित नहीं पाए जाने पर व्यक्ति जरूरी सतर्कता नहीं बरतता है और अन्य लोगों में संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ जाती है। पहले भी कुछ अध्ययनों में देखा गया है कि बहुत से वायरस एवं बैक्टीरिया व्यक्ति के बाडी क्लाक (सोने-जागने का स्वाभाविक चक्र) के हिसाब से काम करते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि दिन के समय बाडी क्लाक के कारण व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ज्यादा सक्रियता से काम कर रहा होता है। इस वक्त में संक्रमित कोशिकाओं द्वारा खून और लार में वायरस के पार्टिकल छोड़ने की गति तेज रहती है। इस प्रक्रिया को वायरस शेडिंग कहा जाता है। शेडिंग तेज होने से जांच में सही नतीजा मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है। इसके बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें कोरोना वायरस की जांच और इलाज का नया तरीका अपनाने का प्रयास करना होगा। दोपहर के समय वायरस शेडिंग ज्यादा होने से यह समय वायरस के प्रसार के लिहाज से भी ज्यादा संवेदनशील होता है। इसलिए जरूरी है कि जांच का नया तरीका अपनाते समय सुरक्षा का भी अतिरिक्त ध्यान रखा जाए।
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