उज्जैन। आज भारत के हजारों, लाखों विज्ञान के विद्यार्थियों अथवा पढ़ा रहे वैज्ञानिकों को यह विश्वास नहीं है कि भारत में कुछ अच्छा भी हुआ है। उनके मन में यह धारणा बैठा दी गई है कि जो भी अच्छा है वह पश्चिम से आया है। इस माइंडसेट को बदलने की आवश्यकता है।
इंजीनियरिंग महाविद्यालय के सभाकक्ष में यह बात प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय पदाधिकारी और एनआइटी भोपाल के इलेक्ट्रॉनिक्स के सेवानिवृत प्रोफेसर डॉ. सदानंद सप्रे ने कही। भारत में विज्ञान का गौरवमयी इतिहास विषय पर वक्तव्य देते हुए 300 से अधिक प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए डॉ. सप्रे ने कहा आज भी जब चंद्रयान, आदित्य मिशन और मंगलयान जैसे बड़े अंतरिक्ष कार्यक्रम सफल होते हैं तो भारत के ही वैज्ञानिकों को सहसा विश्वास नहीं होता। उन्हें वर्षों से यह सिखाया गया है कि गुरुत्वाकर्षण की खोज आइजक न्यूटन ने की, गणित के पाइथागोरस प्रमेय की खोज पश्चिम के गणितज्ञ पाइथागोरस ने की, जबकि उनसे 2000 वर्ष पूर्व भारतीय वैज्ञानिक भास्कराचार्य और आर्यभट्ट इन सब खोज और नियमों को प्रतिपादित कर चुके थे। राइट ब्रदर्स से सैकड़ों वर्षों पहले भारत में विमान शास्त्र पर पुस्तक लिखी जा चुकी थी और शोध हो चुका था। पश्चिम के वैज्ञानिकों ने भारतीय विज्ञान अनुसंधान को खुले मन से स्वीकार है लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात हमें जो पढऩे के लिए नीति बनाई गई उसमें हीनता का भाव दिखता है। अनेक पुस्तकों के लेखक डॉ. सप्रे ने यह आह्वान किया कि आज इंटरनेट का युग है, यदि शिक्षक और विद्यार्थी विज्ञान से जुड़े हुए भारतीय अनुसंधानों को पढ़ें और सही लगने पर उन्हें प्रचारित प्रसारित करें तो यह माइंडसेट बदला जा सकता है कि भारत के भूतकाल में गौरव जैसा कुछ नहीं था। जबकि सत्य यह है कि भारत का भूतकाल भी गौरवशाली था और वर्तमान भी है । कार्यक्रम का संचालन डॉ संजय वर्मा ने किया।
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