नई दिल्ली । भारत (India) के चंद्रयान मिशन (Chandrayaan Mission) ने चांद (Moon) पर पानी की खोज (Discovery of water) कर दुनिया को चौंका दिया था और अब वैज्ञानिकों ने आखिरकार यह भी पता लगा लिया है कि यह पानी आया कहां से? NASA के नेतृत्व में हुए एक नए शोध में यह पुष्टि हुई है कि सूरज की सोलर विंड (सौर वायु) चंद्रमा पर पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
1960 के दशक से वैज्ञानिक यह मानते आ रहे थे कि सूर्य से निकलने वाले आवेशित कण चंद्रमा की सतह पर रासायनिक प्रतिक्रियाएं शुरू करके पानी के अणु बना सकते हैं। अब ताजा रिसर्च में सटीक प्रयोगशाला जांच के बाद इस सिद्धांत को प्रमाणिकता मिल गई है।
NASA वैज्ञानिक ली हिसिया यो और जेसन मैकलेन ने इसके लिए एक विशेष प्रयोग कक्ष तैयार किया, जिसमें चंद्रमा जैसा निर्वात वातावरण तैयार किया गया। इस प्रयोग में अपोलो 17 मिशन से लाए गए चंद्रमा की मिट्टी के नमूनों पर कृत्रिम सौर वायु डाली गई। इससे पहले उन्होंने इन नमूनों को गर्म कर धरती की नमी पूरी तरह हटाई, ताकि परिणाम शुद्ध रहें।
सिर्फ कुछ दिनों में, उन्होंने यह दिखाया कि यह सोलर विंड लगभग 80000 वर्षों के बराबर प्रभाव छोड़ सकती है। परीक्षण के बाद 3 माइक्रॉन के पास एक इंफ्रारेड सिग्नेचर पाया गया—जो हाइड्रॉक्सिल (OH) और पानी (H₂O) के बनने का प्रमाण है।
NASA के इस शोध का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह उनके आर्टेमिस कार्यक्रम को गति दे सकता है, जिसके तहत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इंसानी मौजूदगी कायम करने की योजना है। माना जाता है कि चंद्रमा के इसी हिस्से में स्थायी छाया वाले गड्ढों में जमी हुई बर्फ के रूप में पानी मौजूद है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि चंद्रमा पर पानी कोई पुरानी विरासत नहीं, बल्कि सौर वायु के जरिए लगातार बनता और रीसायकल होता रहने वाला तत्व हो सकता है। यह खोज भविष्य में चंद्रमा पर जीवन और ईंधन उत्पादन की संभावनाओं को बड़ा आधार दे सकती है। वैज्ञानिक यो ने कहा, “यह जानना रोमांचक है कि सिर्फ चंद्र मिट्टी और सूरज से निकलने वाले हाइड्रोजन की मदद से पानी बनाया जा सकता है।”
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