वॉशिंगटन। कोरोना (Corona) के बीच साल 2020 में वैज्ञानिकों(scientists) ने पाया था कि पृथ्वी (Earth) की अपने अक्ष पर घूमने की रफ्तार सामान्य से ज्यादा तेज हो गई है। पृथ्वी (earth) के तेज गति से घूमने की रफ्तार इस साल के पहले 6 महीने तक जारी रही। हालांकि अब धरती की रफ्तार में एक बार फिर से बदलाव आ गया है। अब पृथ्वी अपने अक्ष पर सामान्य से धीमा घूम रही है। पृथ्वी के इस रफ्तार परिवर्तन से दुनियाभर के वैज्ञानिक (Scientists) हैरान हैं। वैज्ञानिकों ने बतया की पृथ्वी अपनी धुरी पर अपना एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे या फिर 86,400 सेकंड लेती है। व्यवहार में हर चक्कर में लगने वाले समय में कुछ अंतर रहता है। समय के साथ यह अंतर कुछ सेकंड में बदल जाता है। वर्तमान समय में वैज्ञानिक परमाणु घड़ी की मदद से समय पर पूरी नजर रखते हैं जो वैश्विक स्तर पर समय को निर्धारित करने में मदद करती है। परमाणु घड़ी से पृथ्वी की रफ्तार में आने वाले बदलाव का भी पता चल जाता है। इसके बाद वैज्ञानिक (Scientists) अंतर को बराबर करने के लिए लीप सेकंड जोड़ते हैं या घटाते हैं। इससे पहले कभी ‘निगेटिव लीप सेकंड’ (‘Negative leap second’) को समय में जोड़ा नहीं गया है लेकिन 1970 से अब तक 27 बार एक सेकंड को बढ़ाया जरूर गया है जब धरती ने 24 घंटे से ज्यादा का वक्त एक चक्कर पूरा करने में लगाया हो। हालांकि, पिछले साल में उसे कम वक्त लग रहा है। 1960 के बाद से अटॉमिक घड़ियां दिन की लंबाई का सटीक रेकॉर्ड रखती आई हैं। इस तरह से प्रत्येक 18 महीने में एक लीप सेकंड को जोड़ा गया। इनके मुताबिक 50 साल में धरती ने अपने ऐक्सिस पर घूमने में 24 घंटे से कम 86,400 सेकंड का वक्त लगाया है। हालांकि, 2020 के बीच में यह पलट गया और एक दिन पूरा होने में 86,400 सेकंड से कम का वक्त लगा। जुलाई 2020 में दिन 24 घंटे से 1.4602 मिलीसेकंड छोटा था जो अब तक का सबसे छोटा दिन था। जो वर्ष 2020 में औसतन हर दिन 0.5 सेकंड पहले खत्म हो गया। धरती पर समय में हो रहे इस बदलाव के बड़े स्तर पर कई असर हो सकते हैं। सैटलाइट और संपर्क उपकरण सोलर टाइम के हिसाब से काम करते हैं जो तारों, चांद और सूरज की स्थिति पर निर्भर होता है। इसे बरकरार रखने के लिए पेरिस की इंटरनैशनल अर्थ रोटेशन सर्विस पहले लीप सेकंड जोड़ती रहती थी। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती के घूमने की रफ्तार कम होने से बड़े भूकंप आ सकते हैं।
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के सोलर सिस्टम के एम्बेस्डर मैथ्यू फुन्के के मुताबिक चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी पर एक ज्वारीय उभार बनाता है। यह उभार भी धरती की घूर्णन गति से घूमने का प्रयास करता है। नतीजतन धरती की अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि धरती की घूर्णन गति या अपनी धुरी पर घूमने की गति सुस्त पड़ने से भूकंपीय घटनाएं बढ़ जाती है। हालांकि, ऐसा क्यों होता है, वैज्ञानिक अभी उन वजहों का खुलासा नहीं कर पाए हैं। अमेरिका की पेन यूनिवर्सिटी में एस्ट्रॉनमी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर केविन लुमैन कहते हैं कि नवजात तारे अपने चारों ओर धूल और गैसों की एक चक्री (डस्ट डिस्क) बना लेते हैं। तारे की गुरुत्वीय कक्षा की वजह से यह डिस्क उसके चारों ओर घूमने लगती है। इस डिस्क के बीच अगर किसी पिंड का निर्माण होता है, तो जाहिर है वह भी डिस्क के साथ ही घूमेगा। डिस्क में विस्फोट या पिंड के छिटककर अलग होने के बाद भी पिंड का रोटेशन बरकरार रहता है। यही नहीं, कंजरवेशन ऑफ एंगुलर मोमेंटम की वजह से उसकी गति और तेज हो जाती है। चूंकि ग्रैविटी चारों तरफ से समान बल से उसे अपनी ओर खींचती है, यह पिंड आखिरकार एक ठोस ग्रह का रूप ले लेता है। यह तब तक उसी गति से घूमता है, जब तक कोई बाहरी बाधा न आए। हर ग्रह के चक्कर काटने की स्पीड अलग-अलग होती है। मसलन सूर्य के सबसे नजदीकी ग्रह बुध की गति काफी धीमी होती है। ग्रहों की रोटेशनल स्पीड इस बात पर भी निर्भर करती है कि किस ग्रह का निर्माण कितनी तेजी से हुआ। वह डस्ट डिस्क से जितनी तेजी से अलग हुआ होगा, उसकी गति उतनी ही तेज होगी। एक अन्य कारण है, ग्रह से उल्कापिंडों की टक्कर। जो ग्रह उल्कापिंडों से जितना ज्यादा टकराया होगा, उसकी गति कम होती गई होगी। लुमैन के मुताबिक पृथ्वी की गति पर चंद्रमा के टाइडल खिंचाव का भी असर पड़ता है।
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