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    सूर्य की चमक को कम करने की कोशिश करने जा रहे हैं वैज्ञानिक, ताकि धरती को ठंडा रखा जा सके

  • February 11, 2022

    नई दिल्ली: कभी खुशी कभी ग़म फिल्म में शाहरुख खान ने जब अपने हाथों को फैलाकर गाना गाया ‘सूरज हुआ मद्धम’ तो शायद उन्हें और इस गीत को रचने वाले अनिल पांडे को इस बात का इल्म भी नहीं होगा कि वैज्ञानिक उनकी बातों को गंभीरता से लेकर सूरज को मद्धम करने की कोशिश में लग जाएंगे. दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पिछले दो दशकों से पूरी दुनिया में लगातार चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि धरती को तुरंत ठंडा करने की जरूरत हैं, इसके लिए तमाम तरह के उपाय भी खोजे जा रहे हैं. जिसमें फॉसिल फ्यूल को जलाना बंद करना और वैकल्पिक उर्जा पर ध्यान देने की बात की जा रही है. लेकिन इसे तुरंत अमल में लाना बेहद मुश्किल हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों ने धरती को ठंडा करने के लिए सूरज को मद्धम करने पर विचार करना शुरू किया है. जिसे वैज्ञानिक भाषा में जियो-इंजीनियरिंग कहा जाता है.

    क्या होती है जियो-इंजीनियरिंग
    ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनिया की जलवायु प्रणाली का यांत्रिकी तरीका जियो-इंजीनियरिंग कहलाता है. जियो-इंजीनियरिंग की प्रक्रिया में एक तकनीक होती है. जिसे स्ट्रेटोस्फेरिक एयरोसोल इन्जेक्शन (SAI) कहा जाता है. इस प्रक्रिया में हवाई जहाज का एक बेड़ा होता है, जो एयरोसोल के कणों को छोड़ते हैं. जिससे सूरज की किरणें परावर्तित होकर बाहरी अंतरिक्ष में चली जाती हैं और इस तरह से धरती ठंडी रहती है.


    वैज्ञानिक क्यों हैं चिंतित
    SAI की वजह से आसमान हल्का सफेद हो सकता है, हालांकि वैज्ञानिकों की चिंता का कारण यह नहीं है. बल्कि अगर धरती ठंडी होती है तो इसका मतलब यह है कि धरती की सतह से कम मात्रा में वाष्पीकरण होगा और बारिश के तरीके में बदलाव होगा. इसकी वजह से दुनिया भर के पारिस्थितिकी तंत्र में रिपल इफेक्ट ( ऐसी घटना या असर जो एक बार होकर रुकता नहीं है, बल्कि होता जाता है, और एक घटना से जुड़ दूसरी घटनाओं की श्रंखला बनाता है) उत्पन्न हो सकता है. लेकिन इसका असर की प्रकृति इस बात पर निर्भर करता है कि SAI का इस्तेमाल किस तरह किया गया है.

    पारिस्थितिकी तंत्र क्या असर डाल सकता है
    अगर एयरोसोल को छोड़ने में सामंजस्य स्थापित नहीं होता है तो कहीं अत्यधिक बारिश तो कहीं सूखा की स्थिति पैदा हो सकती है. साथ ही बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा. यही नहीं SAI की वजह से प्राकृतिक आपदाओं में भी बढ़ोतरी हो सकती है. अगर ऐसा होता है तो फैलाए गए SAI को तुरंत समायोजित करना होगा. जिससे चरम मौसम की गतिविधियों पर रोक लगाए जा सके. इसके अलावा इससे ओजोन परत को भी नुकसान हो सकता है. साथ ही सूरज की किरण कमजोर होने से फोटोसिंथेसिस यानी प्रकाश संश्लेषण नहीं होगा. जिससे पौधे नहीं पनपेंगे और जंगलों के साथ साथ कृषि को भी नुकसान होगा. इस पर रोक लगाने के लिए 60 विशेषज्ञों के समूह ने एक खुला पत्र लिखा है. जिसमें कहा गया है कि यह तकनीक वैसी ही खतरनाक है, जैसी इंसानों की क्लोनिंग और रासायनिक हथियार, जिसकी जरूरत नहीं है.

    विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऐसा कर दिया गया तो इसे सुधारने में कई दशक लग जाएंगे. इसका मतलब प्रकृति के साथ भयानक तरीके की छेड़छाड़ करना है. जिसके दुष्परिणाम बहुत ही भयानक होंगे और कहीं इसे अचानक ही बंद कर दिया जाता है तो धरती को ठंडा रखने के लिए जो एयरोसोल का सुरक्षा कवच बना है. वह वायुमंडल में इकट्ठा हुई ग्रीनहाउस गैस एक झटके मे धरती से टकराएगी. इससे धरती का तापमान वर्तमान स्थिति की तुलना में अचानक 4 से 6 गुना बढ़ जाएगा. इसलिए विशेषज्ञों के मुताबिक सूरज का मद्धम होना गाने में तो अच्छा है, लेकिन प्रायोगिक तौर पर इसके दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं.

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