वॉशिंगटन (Washington) । धरती (Earth) पर एक दिन 24 घंटे का होता है, ये कोई भी आसानी से बता सकता है लेकिन क्या हमेशा ये दिन की समयसीमा यही थी और आगे भी यही रहेगी। वैज्ञानिकों (Scientists) ने दावा किया गया है कि आने वाले समय में दिन की अवधि 24 घंटे से ज्यादा हो सकती है क्योंकि ये बीते हजारों साल से बढ़ रही थी। एक समय पर धरती का दिन 24 घंटे से कम होता था और अनुमान है कि यह समय के साथ बढ़ता रहेगा। ऐसा समय भी भविष्य में आ सकता है जब दिन का समय 24 नहीं 25 घंटे का होगा।
लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 24 घंटे में एक बार पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है, जो एक दिन को दिखाता है। धरती के धुरी पर घूमने की अवधि यानी एक दिन के हिसाब से ही इंसान अपने कामकाज और सोने के घंटे तय करता है। यानी एक तरह से धरती के घूमने का ये समय इंसान को एक संतुलित जिंदगी देता है लेकि हमेशा से दिन इसी तरह 24 घंटे का नहीं था। एमआईटी में भौतिकी की सहायक प्रोफेसर सारा मिलहोलैंड का कहना है कि बहुत समय पहले पृथ्वी का दिन बहुत छोटा था।
एक अरब साल पहले 19 घंटे का था दिन
मिलहोलैंड ने लाइव साइंस को बताय कि पृथ्वी ने ऐसे दिनों का अनुभव किया है जो अब की तुलना में छोटे थे। करीब एक अरब साल पहले दिन की लंबाई केवल लगभग 19 घंटे थी। धरती के बनने के समय पृथ्वी अपनी धुरी पर 10 घंटे से भी कम समय में घूमती थी। यानी एक दिन महज 10 घंटा का था। कैलटेक में ग्रह विज्ञान के प्रोफेसर कॉन्स्टेंटिन बैट्यगिन का कहना है कि पृथ्वी का तेज घूमना मंगल के आकार के प्रोटोप्लैनेट के साथ एक विशाल, चंद्रमा-निर्माण प्रभाव का परिणाम था। इसने चंद्रमा बनाने के लिए ग्रह की सतह के पर्याप्त हिस्से को तोड़ते हुए पृथ्वी की कोणीय गति को तेज कर दिया।
मिलहोलैंड का कहना है कि पृथ्वी का दिन 24 घंटे से भी अधिक लंबा हो जाएगा। ग्रह के पिघले हुए कोर, महासागरों या वायुमंडल में सूक्ष्म परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कुछ मिलीसेकेंड बढ़ गए हैं। मिलहोलैंड ने कहा कि पृथ्वी का घूमना वास्तव में इसके ग्रह की उत्पत्ति की कहानी का प्रमाण है। कोई ग्रह कितनी तेजी से घूमता है यह इस बात से निर्धारित होता है कि इसका निर्माण कैसे हुआ जब प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क में सूर्य की परिक्रमा करने वाली धूल, चट्टानें और गैस अंतरिक्ष में एक साथ आए।
पृथ्वी के दिन का समय अभी भी बदल रहा?
पृथ्वी के दिन की लंबाई हमें सुसंगत और एक समान लग सकती है लेकिन ऐसा नहीं है। बैट्यगिन और मिलहोलैंड ने कहा कि यह वास्तव में यह अभी भी बदल रहा है। दिन लगातार यह लंबा हो रहा है लेकिन बहुत धीरे-धीरे इसमे चेंज आ रहा है। एक शताब्दी में दिन का समय 1.7 मिलीसेकंड बढ़ रहा है। बैट्यगिन ने कहा, ‘पृथ्वी की स्पिन दर में परिवर्तन धीरे-धीरे हो रहा है ताकि विकासवादी प्रक्रियाएं समय के साथ परिवर्तनों के अनुकूल हो सकें। समय के साथ चंद्रमा धीरे-धीरे पृथ्वी से दूर होता जा रहा है। दरअसल, यह प्रक्रिया बेहद धीमी है और पृथ्वी पर दिन को 25 घंटे तक पहुंचने में 200 मिलियन वर्ष लग सकते हैं।
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