बीजिंग (Beijing) । हमारे शरीर में कई बदलाव जीन (Gene) के कारण होते हैं। बूढ़ा होना भी इनमें से ही एक है। वैज्ञानिक अब एक टेस्ट करने की योजना बना रहे हैं, जिससे यह पता किया जा सके कि क्या म्यूटेशन अल्जाइमर रोग (mutation alzheimer disease) से सुरक्षा प्रदान करता है? चीन (China) के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हे जियानकुई ने बुढ़ापे (old age) को रोकने के लिए मानव भ्रूण में जीन संशोधन का प्रस्ताव रखा है। उनका मानना है कि इससे चीन की बढ़ती बूढ़ी आबादी की समस्या से निपटा जा सकता है। हे जियानकुई अपने जीन म्यूटेशन से जुड़े कामों के कारण विवादों में रहे हैं।
साल 2018 में दुनिया के पहले जीन म्यूटेशन वाले बच्चे बनाने के कारण उनकी दुनिया भर में आलोचना हुई थी। मानव भ्रूण में बदलाव को गैर कानूनी मेडिकल प्रैक्टिस मानते हुए चीन ने उन्हें 2019 में तीन साल की सजा सुनाई थी। लेकिन वह पिछले साल एक बार फिर तब चर्चा में आ गए जब उन्होंने घोषणा की कि वह एक नई रिसर्च लैब बीजिंग में शुरू करने वाले हैं। सोशल मीडिया पर उन्होंने चूहों और इंसानी भ्रूण में जेनेटिक बदलाव की योजना वाला शोध प्रस्ताव पोस्ट किया।
अल्जाइमर से लड़ने में मिलेगी मदद
इसमें उन्होंने कहा कि असामान्य निशेचित अंडा कोशिकाओं का इस्तेमाल होगा, जो प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त नहीं हैं। जियानकुई अल्जाइमर रोग से लड़ने के लिए भी जीन म्यूटेशन की बात कहते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘बूढ़ी आबादी का गंभीर प्रभाव सामाजिक-आर्थिक और चिकित्सा प्रणाली पर पड़ता है। वर्तमान में अल्जाइमर की कोई प्रभावी दवा नहीं है।’ जेल जा चुके वैज्ञानिक फिर से सलाखों के पीछे नहीं जाना चाहते। इसलिए वह आगे कहते हैं, ‘किसी भी प्रयोग के लिए पहले सरकारी अनुमति की जरूरत होगी।’
नई जांच की मांग
यह देखना बाकी है कि क्या उनके प्रस्ताव को मंजूरी मिलेगी या नहीं। क्योंकि 2018 की घटना के बाद चीन ने इंसानी जीन में बदलाव से जुड़े नियमों और नैतिक मानकों को कड़ा कर दिया है। इस साल मार्च में 200 से ज्यादा चीनी विद्वानों ने हे जियानकुई के रवैये और जीन एडिटिंग के नियमों और नैतिकता के उल्लंघन से जुड़े कामों पर विचार करने से इनकार करने वाला बयान जारी किया था। इन विद्वानों ने उनके खिलाफ एक नई जांच शुरू करने का आह्वान किया था।
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