नई दिल्ली: इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के विरोध प्रदर्शनों से डरी पाकिस्तानी सरकार और फौज ने एक दूसरी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक के सामने सरेंडर कर दिया है. जिसके बाद इस पार्टी ने ‘पाकिस्तान बचाओ’ मार्च बंद कर दिया है. इस सरेंडर के लिए पाकिस्तान के आंतरिक गृह मंत्री ने वो तमाम शर्तें मान ली हैं जो संभवत: वह किसी और राजनीतिक पार्टी द्वारा पेश किए जाने पर नहीं मानते. यहां तक कि उन्हें यह लिखकर भी देना होगा कि यह पार्टी एक राजनीतिक पार्टी है आतंकवादी दल नहीं.
तहरीक- ए- लब्बैक पाकिस्तान नाम के इस राजनीतिक दल ने पाकिस्तान बचाओ मार्च शुरू किया था और यह मार्च अब इस्लामाबाद पहुंचना था. पिछले कई दिनों से चल रहे इस मार्च में उमड़ रही भारी भीड़ को देखते हुए पाकिस्तानी प्रशासन और फौज को यह डर सताने लगा था कि कहीं एक बार फिर 9 मई जैसी घटनाएं घटित ना हो जाएं. शुरुआती दौर में पाकिस्तानी फौज ने इस पार्टी पर भी दमन चक्र चलाया लेकिन इस मार्च में लोगों की भारी भीड़ को देखते हुए अंततः पाकिस्तानी फौज और प्रशासन ने इस पार्टी के मुखिया साद रिजवी से बात करने का फैसला किया.
पिछले सप्ताह के अंतिम दिनों में इस पार्टी से पाकिस्तानी फौज और प्रशासन ने लंबी वार्ता की. पार्टी के मुखिया ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इमरान खान के समय में जब उनकी सरकार थी तो इस पार्टी पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई थी. इस तरह से उसकी छवि सरकार द्वारा ऐसी पेश की गई जैसे वह राजनीतिक दल नहीं बल्कि कोई आतंकवादी संगठन है. लिहाजा सबसे पहले पाकिस्तान के गृहमंत्री सनाउल्लाह राणा को यह लिखकर देना होगा कि तहरीक लब्बैक राजनीतिक दल है कोई आतंकवादी संगठन नहीं है.
हाफिज साद हुसैन की इस पार्टी ने पाकिस्तानी सरकार से स्पष्ट तौर पर कहा कि इस बाबत जो भी फैसले होंगे उन्हें पाकिस्तानी सरकार को लिखकर देना होगा. उस पर बाकायदा पाकिस्तान के आंतरिक गृहमंत्री सनाउल्लाह को अपने हस्ताक्षर भी करने होंगे. बेबस पाकिस्तानी फौज और सरकार ने उसके बाद आंतरिक मंत्री सनाउल्लाह को निर्देश लिए कि वे पार्टी द्वारा बताई जा रही तमाम शर्तों को लिखित तौर पर दें और उस पर बाकायदा अपने हस्ताक्षर भी करें. दिलचस्प यह भी है कि इन शर्तों में पाकिस्तान में लगातार बढ़ रही पेट्रोलियम कीमतों में क्रमिक कमी करने की बाबत भी शर्त रखी गई है.
बताया जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और फौज के आला अधिकारियों ने सरकार को सलाह दी कि इस पार्टी के पास भी बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन है. क्योंकि इमरान खान की सरकार के समय में इस पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई थी. ऐसे में यदि इस पार्टी की उल्टी सीधी शर्तों को मान भी लिया जाए तो यह पार्टी आने वाले चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी के फेवर में आ सकती है. पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी की सलाह के आधार पर सत्तारूढ़ पाकिस्तानी सरकार ने इमरान खान को किसी भी सूरत में हराने के लिए इस पार्टी की शर्तों को मान तो लिया है. लेकिन देखना यह होगा कि वह आने वाले दिनों में इन शब्दों को पूरा कर पाती है या नहीं. कहीं ऐसा ना हो कि यह शर्ते ही उसके गले में हड्डी की तरह ना अटक जाएं.
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