नई दिल्ली (New Delhi)। संसद (Parliament) या विधानसभा (Assembly) में खास तरह का भाषण (Special speech) देने या वोट डालने के बदले (casting vote) में अगर सांसद या विधायक (MP or MLA) रिश्वत (bribe) लें तो क्या उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सात जजों की सांविधानिक पीठ इस प्रश्न पर निर्णय देगी। 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव (Former Prime Minister PV Narasimha Rao) मामले में आए एक आदेश पर फिर विचार करते हुए यह निर्णय दिया जाएगा।
सांविधानिक पीठ निर्णय लेगी कि मामले में अभियोजन से छूट दी जा सकती है या नहीं? पिछले वर्ष 5 अक्तूबर को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में सात सदस्यों की सांविधानिक पीठ ने सुनवाई पूरी करने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
राजनीतिक सदाचार से जुड़े हैं मसले
इससे पहले पांच सदस्यीय पीठ ने केस से जुड़े मसलों को व्यापक जनहित से जुड़ा मानते हुए इसे विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ को सौंप दिया था। उस वक्त कहा गया था कि यह मसले राजनीतिक सदाचार से जुड़े हैं। यह भी कहा था कि अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) में संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को छूट का प्रावधान इसलिए दिया गया है, ताकि वे मुक्त वातावरण और बिना किसी परिणाम के डर के अपने दायित्व निभा सकें।
सीता सोरेन के कारण फिर उठा मामला
सात जजों की पीठ झामुमो के सांसदों के रिश्वत कांड पर आए आदेश पर विचार कर रही है। आरोप था कि सांसदों ने 1993 में नरसिंह राव सरकार को समर्थन देने के लिए वोट दिए थे। 1998 में पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया था, अब 25 साल बाद फिर से इस पर फैसला सुनाया जाएगा। यह मामला फिर तब उठा जब राजनेता सीता सोरेन ने अपने खिलाफ जारी आपराधिक कार्रवाई को अनुच्छेद 194(2) के तहत रद करने की याचिका दायर की। उनका कहना था कि संविधान ने उन्हें अभियोजन से छूट दी है। सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने 2012 में झारखंड में राज्यसभा चुनाव के समय एक खास प्रत्याशी के समर्थन में वोट करने के लिए रिश्वत ली थी।
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