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    SC/ST: आरक्षण एक पीढ़ी को… ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों ने जानें क्या-क्या कहा?

  • August 02, 2024

    नई दिल्ली: अगर SC/ST वर्ग का लाभ कुछ लोग ही ले रहे हैं तो क्या सरकार हस्तक्षेप कर सकती है? क्या एससी/एसटी वर्ग में क्रीमीलेयर लागू होगी? क्या आरक्षण (Reservation) एक पीढ़ी तक ही मिलना चाहिए? ऐसे कई कई सवालों के जवाब अनुसूचित जाति और जनजाति के कोटे में कोटे को लेकर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 7 जजों (Judges) की पीठ ने दिए. फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, SC/ST कैटेगरी के अंदर नई कैटेगरी बनाकर इसमें अति पिछड़ों को अलग कोटा दिया जा सकता है. आसान भाषा में समझें तो अब राज्य सरकारों के पास यह अधिकार होगा कि वो आरक्षित कोटे में से पिछड़ेपन के आधार पर जातियों का कोटा तय करें.

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सवाल उठता है कि सरकार को कोटे के अंदर कोटा बनाने की छूट तो दे दी गई है, पर क्या वो राजनीतिक आकांक्षा के लिए इसका फायदा नहीं उठाएंगी? इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज ने अहम बातें कही. सीजेआई ने कहा, ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि अनुसूचित जातियां समरूप वर्ग नहीं हैं. यानी इनमें सभी वर्ग समान नहीं हैं.

    संविधान का आर्टिकल 14 जातियों के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है. वहीं आर्टिकल 15 व 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी राज्य को आरक्षित कोटे में उप-वर्गीकरण करने से रोकता हो. उप-वर्गीकरण के आधार के रूप में, राज्य सरकारों को पिछड़े समुदायों के आंकड़ों के माध्यम से यह दिखाना होगा कि जिस समुदाय के लिए वे कोटा बनाना चाहते हैं, उसका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. राज्य सरकार अपनी मर्जी या राजनीतिक महत्वाकांक्षा के अनुसार इस पर काम नहीं कर सकती. उसके निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. ऐसी व्यवस्था करने पर उसके लिए पर्याप्त आधार व रिसर्च डेटा का होना जरूरी है.

    आरक्षण आखिर कब तक मिलना चाहिए? इस पर जवाब जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा, आरक्षण एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए. अगर किसी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की पहली पीढ़ी आरक्षण का फायदा लेकर उच्च स्थिति तक पहुंच गई है तो दूसरी पीढ़ी को आरक्षण का हकदार नहीं माना जाना चाहिए. सरकार को यह भी देखना चाहिए कि आरक्षण के बाद दूसरी पीढ़ी सामान्य श्रेणी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हुई है या नहीं.


    जस्टिस बीआर गवई ने संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के एक भाषण का जिक्र करते हुए कहा, अधिक पिछड़े समुदायों को अधिक प्राथमिकता देना और उन्हें विकास के उचित मौके देना राज्य का कर्तव्य है. SC/ST वर्ग में कुछ ही लोग ही आरक्षण लेते हैं तो क्या सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती? इसका जवाब हां में है. सरकार कर सकती है.

    जस्टिस विक्रमनाथ ने कहा, ओबीसी पर लागू क्रीमीलेयर का सिद्धांत एससी/एसटी पर भी लागू होता है. उसे इससे बाहर नहीं किया जा सकता. एससी/एसटी समुदाय में क्रीमीलेयर की पहचान सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए. वर्तमान नियम कहता है, अगर किसी परिवार की सालाना आय 8 लाख रुपए से ज्यादा है तो उस फैमिली को क्रीमी लेयर में रखा जाता है, अगर आय इससे कम है तो नॉन-क्रीमी लेयर में रखा जाएगा और आरक्षण का फायदा दिया जाएगा.

    जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का कहना है, एससी/एसटी वर्ग में अत्यधिक पिछड़े समुदायों को प्रतिनिधित्व के समान अवसर प्रदान करने के लिए उनका उप-वर्गीकरण करना जरूरी है. यह संविधान की मूल भावना के अनुकूल है. सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि एससी व एसटी के बीच क्रीमीलेयर की पहचान की संवैधानिक अनिवार्यता बननी चाहिए

    गुरुवार को आया फैसला 6:1 के बहुमत का है. असहमति वाला 86 पेज का फैसला जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने लिखा है. उन्होंने अपने फैसले में कहा, जिस तरह से 3 जजों की बेंच ने बिना कोई कारण बताए इसे बड़ी बेंच के पास भेजा था, मैं उससे सहमत नहीं हूं. हमारी कानूनी प्रणाली का मूल मूल्य ही मिसाल का सिद्धांत है. इस मामले में बिना किसी कारण के चिन्नैया मामले पर पुनर्विचार का संदर्भ दिया गया और वह भी फैसले के 13 साल बाद. वह संदर्भ ही गलत था. उन्होंने कहा, संविधान में मौजूद हर शब्द का एक अर्थ है. इसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्राथमिक नियम को हमेशा ध्यान में रखना होगा. आर्टिकल 341 के मुताबिक, अधिसूचित एससी/ एसटी की सूची में राज्य सरकार द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता. उप-वर्गीकरण इस सूची से छेड़छाड़ करने जैसा होगा.

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