नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के विधायक अब्बास अंसारी (MLA Abbas Ansari) द्वारा लखनऊ में विवादित जमीन से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में मामलों को निपटाने और उसे सूचीबद्ध करने की व्यवस्था को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट में कामकाजी स्थिति चिंताजनक (Working conditions are worrying) है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इसको लेकर ऐतराज जताया। आपको बता दें कि अब्बास अंसारी की याचिका में राज्य सरकार द्वारा “रिफ्यूजी” बताई गई जमीन पर निर्माण कार्य पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2024 में तत्काल सुनवाई की हिदायत के बावजूद अब तक एक बार भी नहीं सुनी गई है।
सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की उनमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे। पीठ ने आदेश दिया कि विवादित जमीन पर फिलहाल जस की तस स्थिति रखी जाए। कोर्ट को बताया गया कि 21 अक्टूबर की सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाईकोर्ट को इस मामले की जल्द सुनवाई के लिए निर्देश देने के बाद से यह मामला आठ बार सूचीबद्ध हुआ है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है।
पीठ ने कहा, “हम कुछ टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन फाइलिंग और लिस्टिंग की प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। कोई नहीं जानता कि कब मामला सुनवाई के लिए आएगा।” जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों और रजिस्ट्रार से इन समस्याओं पर चर्चा की थी।
कपिल सिब्बल अब्बास अंसारी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने अदालत में कहा, “यह सबसे बड़ा हाईकोर्ट है, जहां ऐसा हो रहा है।” उन्होंने बताया कि 21 अक्टूबर के बाद से यह मामला आठ बार लिस्ट किया गया है, लेकिन प्रभावी सुनवाई नहीं हुई है।
अब्बास का दावा, दादा ने खरीदी जमीन
मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास ने कहा है कि उनके दादा ने जियामऊ में एक प्लॉट में हिस्सा खरीदा था और 9 मार्च 2004 को डीड पंजीकृत कराई गई थी। याचिका में कहा गया है कि उन्होंने उक्त संपत्ति को कथित तौर पर अपनी पत्नी राबिया बेगम को उपहार में दिया था, जिन्होंने 28 जून, 2017 को पंजीकृत वसीयत के माध्यम से इसे याचिकाकर्ता और उनके भाई को दे दिया था। यह भी कहा गया है कि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, डालीबाग, लखनऊ ने कथित तौर पर 14 अगस्त, 2020 को (याचिकाकर्ताओं की अनुपस्थिति में) एक पक्षीय आदेश पारित कर भूखंड को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया।
इसके बाद याचिकाकर्ता और उसके भाई को अगस्त 2023 में बेदखल कर दिया गया। इसके बाद अब्बास ने 2023 में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में याचिका दायर की। यह भी कहा गया है कि प्राधिकारियों ने भूखंड पर कब्जा लेने के बाद, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उस स्थान पर कुछ आवासीय इकाइयों का निर्माण शुरू कर दिया है।
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