नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के दूसरे प्रदूषित शहरों के बारे में भी जानकारी मांगी है. कोर्ट ने कहा है कि वह इस समस्या से निपटने के लिए उन शहरों में भी व्यवस्था बनाने की कोशिश करेगा. जस्टिस अभय एस ओका और मनमोहन की बेंच ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में है, इसका मतलब यह नहीं कि हमारी चिंता यहीं तक है.”
बेंच ने एमिकस क्यूरी के तौर पर मामले में अपनी सहायता कर रही वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह से देश के दूसरे हिस्सों में भी प्रदूषण की स्थिति को लेकर जानकारी मांगी. ध्यान रहे कि 1985 में दाखिल ‘एम सी मेहता बनाम भारत सरकार’ मामले में विशेष रूप से दिल्ली के वायु प्रदूषण पर सुनवाई होती रही है. इस मामले को सुनते हुए पिछले 4 दशक में सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक प्रदूषण, ठोस कचरे के निपटारे की समस्या, गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण से लेकर पटाखों पर रोक जैसे कई पहलुओं पर अहम आदेश दिए हैं.
2021 में सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख को देखते केंद्र सरकार ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) बनाया था. CAQM को प्रदूषण की स्थिति का आकलन कर ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) पाबंदियां लगाने का जिम्मा दिया गया है. उसे तमाम सरकारी और निजी संस्थानों के लिए निर्देश जारी करने का भी अधिकार दिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था दूसरे शहरों के लिए भी बनाने का संकेत दिया है.
सोमवार, 16 दिसंबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ठोस कचरे के निपटारे को लेकर दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने कहा कि 11 नवंबर को इस बारे में जानकारी मांगी गई थी. 1 महीना बीत जाने के बावजूद यह बुनियादी जानकारी भी नहीं दी गई है. यह दिल्ली सरकार की गंभीरता को दिखाता है. कोर्ट ने 19 दिसंबर को सुनवाई की अगली तारीख तय करते हुए दिल्ली के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा. कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि वह दिल्ली सरकार के अधिकारियों पर अवमानना का केस चलाने पर विचार करेगा.
ठोस कचरे से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को भी फटकार लगाई. एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को बताया कि 2016 के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स का कहीं भी पालन नहीं हो रहा है. बिना उचित निपटारे के पड़े कचरे में अक्सर आग लग जाती है. यह प्रदूषण को और बढ़ाता है. कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को 31 जनवरी तक जवाब देने को कहा. बेंच ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से कहा कि वह ग्रेटर नोएडा के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर सुनवाई न करें क्योंकि सुप्रीम कोर्ट यह मसला देख रहा है.
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