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    समलैंगिक विवाह 32 देशों में लीगल, क्या भारत में भी मिलेगी मान्यता? SC में आज सुनवाई

  • January 06, 2023

    नई दिल्ली (New Delhi)। समलैंगिक विवाह (same gender marriage) पर आज यानी 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में सुनवाई होनी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) और जस्टिस पीए एस नरसिम्हा (Justice PA S Narasimha) की दो सदस्यीय पीठ इस मामले में केंद्र से जवाब मांग चुकी है। इसका समर्थन करने वाले लोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि भारत (India) में इसे मान्य किया जाए। हाल ही में सदन में इस मामले पर जवाब देते हुए भाजपा सांसद सुशील मोदी (BJP MP Sushil Modi) ने कहा था कि भारतीय समाज समलैंगिक विवाह के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि इससे पूर्ण विनाश हो जाएगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट 2018 में सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर चुकी है, पर शादी की मान्यता अभी नहीं मिली है। दुनिया के 32 देशों में इसे मान्यता मिल चुकी है।


    सुप्रीम कोर्ट 6 जनवरी को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिनमें समान-लिंग विवाहों को मान्यता देने के लिए उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की दो सदस्यीय पीठ इस पर सुनवाई करेगी।

    शीर्ष अदालत ने पिछले साल 14 दिसंबर को केंद्र से दो याचिकाओं पर जवाब मांगा था जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी ताकि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश दिए जा सके। पिछले साल 25 नवंबर को भी शीर्ष अदालत ने दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा शादी के अपने अधिकार को लागू करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी को पंजीकृत करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग वाली अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

    क्या सोचती है सरकार
    बीते 29 दिसंबर को सदन की कार्यवाही के दौरान भाजपा सांसद सुशील मोदी ने समलैंगिक विवाह पर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि भारतीय समाज समलैंगिक विवाह को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। दो जज मिलकर 180 करोड़ लोगों की आस्था पर फैसला नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर ऐसा कानून बना तो इससे पूर्ण विनाश हो जाएगा।

    यौन अपराध की श्रेणी से बाहर किया
    बता दें कि इससे पहले CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ, जो उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थी, जिसने 2018 में सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, ने पिछले साल नवंबर में केंद्र को नोटिस जारी किया था और याचिकाओं से निपटने में भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी। शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 सितंबर, 2018 को दिए गए एक सर्वसम्मत फैसले में, ब्रिटिश युग के दंड कानून के एक हिस्से को खत्म करते हुए वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच निजी स्थान पर सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है। जिसने इसे इस आधार पर अपराध घोषित किया कि यह समानता और सम्मान के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

    क्या कहती है याचिका
    जिन याचिकाओं पर शीर्ष अदालत ने पिछले साल नवंबर में नोटिस जारी किया था, उनमें अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) लोगों को उनकी पसंद के हिस्से के रूप में मौलिक अधिकार देने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिकाओं में से एक ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की लिंग-तटस्थ तरीके से व्याख्या करने की मांग की है, जहां किसी व्यक्ति के साथ उनके यौन रुझान के कारण भेदभाव नहीं किया जाता है।

    32 देशों में लीगल, 22 साल पहले बना था पहला कानून
    बता दें कि समलैंगिक विवाह अमेरिका समेत दुनिया के 32 देशों में लीगल है। जिसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, नीदरलैंड और अमेरिका समेत कुल 32 देश शामिल है। सबसे पहला कानून साल 2001 में नीदरलैंड की तत्कालीन सरकार ने लागू किया था।

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