नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सैन्य अथॉरिटी (military authority) से कहा कि 2013 में कथित तौर पर जाली रिलेशनशिप सर्टिफिकेट (fake relationship certificate) पेश करने के आरोप में सेवा से बर्खास्त चार कर्मियों (Four personnel dismissed from service) को बहाल किया जाए। क्योंकि उन्होंने इन जाली प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल भर्ती प्रक्रिया में किसी तरह की रियायत हासिल करने के लिए नहीं किया था।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने कहा कि भर्ती के तीन साल बाद अपीलकर्ताओं को सेवा से बर्खास्त करना उनके विशिष्ट मामले पर विचार न किए जाने के कारण गलत है।
कोर्ट ने कहा, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने इस महत्वपूर्ण बिंदु को भी नजरअंदाज कर दिया कि अपीलकर्ताओं ने सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन किया है न कि सैनिकों/पूर्व सैनिकों के रिश्तेदारों के रूप में।
पीठ ने कहा, इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि क्या यह पता लगाने के लिए कोई जांच की गई थी कि अपीलकर्ताओं ने सेना में भर्ती के लिए रिलेशनशिप सर्टिफिकेट पेश किया था। एएफटी ने मुख्य मुद्दे को संबोधित किए बिना बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा।
रिकॉर्ड पेश नहीं कर सके
अदालत ने पाया कि केंद्र सरकार और सेना अथॉरिटी कोई रिकॉर्ड पेश नहीं कर सके कि मराठा लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंटल सेंटर में दिसंबर, 2009 की भर्ती सामान्य वर्ग के लिए खुली नहीं थी। इसके विपरीत अपीलकर्ताओं ने अपने फॉर्म की फोटो कॉपी प्रस्तुत की, जिससे पता चला कि उन्होंने भर्ती के लिए सैनिकों या पूर्व सैनिकों के साथ किसी भी संबंध का दावा नहीं किया था। इसके साथ कोर्ट ने 9 मई 2013 के बर्खास्तगी आदेश और 18 नवंबर 2015 के ट्रिब्यूनल के आदेश को रद्द कर दिया।
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