उज्जैन (Ujjain)। संस्कृत में श्रवण (shravana in sanskrit)का अर्थ है— ‘सुनना।’ यह हमारे जीवन में ज्ञान(wisdom in life) को एकीकृत (Integrated)करने का पहला कदम है। हम सुनते हैं (श्रवण), फिर हम बार-बार उसे याद करते हैं (मनन) और फिर ज्ञान हमारे जीवन में एक संपदा के रूप में एकीकृत (निदिध्यासन) हो जाता है।
यह महीना अपने बड़ों की बात सुनने, ज्ञान की बातें सुनने और ज्ञान में रहने का समय है। इस महीने में पार्वती ने शिव की पूजा की थी। शिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या की थी। यह महीना अपने भीतर जाने और अपने भीतर शिव तत्त्व (शिव सिद्धांत) से मिलने का समय है।
पार्वती शक्ति की अभिव्यक्ति हैं। शक्ति का अर्थ है— ताकत और ऊर्जा। शक्ति समस्त सृष्टि का गर्भ है और इसलिए इसे ईश्वर के मातृ रूप में व्यक्त किया जाता है। शक्ति सभी प्रकार की गतिशीलता, चमक, सुंदरता, समता, शांति और पोषण का बीज है। शक्ति वास्तव में जीवन शक्ति है।
शक्ति गतिशीलता की अभिव्यक्ति है। शिव तत्त्व अवर्णनीय है। आप हवा को बहते हुए, पेड़ों को झूमते हुए देख सकते हैं, लेकिन आप स्थिरता को नहीं देख सकते, जो सभी गतिविधियों के लिए संदर्भ बिंदु है। स्थिरता और शांति शिव हैं। दोनों आवश्यक हैं। जब गतिशील अभिव्यक्ति को भीतर की स्थिरता के साथ जोड़ा जाता है, तो रचनात्मकता, सकारात्मकता होती है और सत्व उत्पन्न होता है।
एक समय था, जब शक्ति भी तप में थीं। तीर चलाने के लिए पहले उसे पीछे की ओर खींचना पड़ता है। श्रावण मास वह निवृत्ति काल है, जब शक्ति भी भीतर की ओर जाती है। इस तप से आत्मा की बेचैनी शांत होती है।
जीवन में हर जगह विरोधाभास है, विपरीत चीजें एक साथ मौजूद हैं। गर्मी और सर्दी, पहाड़ और घाटी— ऐसे कई उदाहरण हैं। यही विरोधाभास जीवन में रस भरता है।
शिव और पार्वती स्वयं प्रकाशवान हैं और दूसरों के लिए मार्गदर्शक प्रकाश हैं। पार्वती प्रेम, सादगी, देखभाल और सबको साथ लेकर चलने की प्रतिमूर्ति हैं। वे एक आदर्श बेटी, पत्नी और मां हैं। वे दाम्पत्य जीवन के लिए मील का पत्थर हैं।
पर्व का अर्थ है— उत्सव; सत्व से उत्पन्न उत्सवमय पहलू। जब तमोगुण हावी होता है तो सिर्फ जड़ता रहती है, उत्सव नहीं। रजोगुण से उत्पन्न कोई भी उत्सव टिक नहीं सकता। केवल सत्व में ही हम निरंतर उत्सव मना सकते हैं। शिव मन, विचार, वाणी और कर्म की शुद्धता के साथ उत्सव के आदिपति हैं। शाश्वत उत्सव पार्वती का प्रतिनिधित्व है। शाश्वत शांति शिव है। वे कई जीवन का मार्गदर्शन करने वाले एक अनुकरणीय युगल हैं। उन्हें युगल भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे वास्तव में एक हैं। ‘जगत: पितरौ वंदे पार्वतीपरमेश्वरौ।’ उन्हें इस सृष्टि के माता-पिता के रूप में पूजा जाता है। ‘पा’ मूल शब्द है— जो परब्रह्म, परमात्मा को संदर्भित करता है। ‘पा’ पार्वती और परमेश्वर के लिए मूल है।
जब आप अपने भीतर जाते हैं, जब आप अपने आप में स्थापित होते हैं, तो आपके चारों ओर उत्सव होता है। श्रावण अपने भीतर जाकर उत्सव मनाने का महीना है। यह महीना त्योहारों से भरा है। उत्साह के बिना प्रेम और आनंद भी निष्क्रिय है। उत्साह पार्वती हैं। शिव शांत स्थिरता हैं। जब उत्सव का पहलू प्रेम, आनंद और ज्ञान के साथ जुड़ता है तो वह जीवन का चरम होता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved