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जीवन बचाना सर्वोच्च वरीयता

May 21, 2021
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
महामारी के दौरान लोगों का जीवन बचाना सर्वोच्च वरीयता है। इससे सीधे जुड़े कई अन्य मसले भी होते हैं, जिनका क्रम जीवन रक्षा के बाद आता है। ये सभी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आते हैं। जीवन से बढ़कर कुछ नहीं होता। महामारी में स्वास्थ्य सेवाएं कसौटी पर होती हैं। फिर भी मानवीय क्षमता की एक सीमा होती है। प्रकृति को पराजित नहीं किया जा सकता। बचाव के यथासंभव प्रयास अवश्य किये जा सकते हैं। ऐसा करना किसी भी सरकार का दायित्व होता है।
अक्सर दैवीय आपदाएं अनुमान से बहुत अधिक असर डालती हैं। ये तबाही लाती है। बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित होते हैं। बहुत लोगों को जीवन गंवाना पड़ता है। अनेक बच्चे अनाथ हो जाते है। दिहाड़ी पर जीवन यापन करने वालों के समक्ष भरण पोषण की समस्या आ जाती है। इनकी पहचान आसानी से हो जाती है। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी होते है जो छोटे पक्के मकानों में रहते हैं। लेकिन कोरोना जैसी आपदा में उनकी नौकरी चली जाती है या वेतन मिलना बंद हो जाता है। इसमें छोटे दुकानदार आदि भी शामिल हैं। इन सबकी व्यथा समझने के लिए समाज व सरकार दोनों का सजग रहना आवश्यक है। सरकार से तात्कालिक रूप में सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं लागू करने की अपेक्षा रहती है। समाज के आर्थिक रूप से समर्थ लोगों व सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं की भी जिम्मेदारी होती है।
समाज में संकट के समय सिर्फ कालाबाजारी करने वाले निकृष्ट लोग ही नहीं होते। बल्कि भारत में सामाजिक सरोकार रखने वालों की संख्या अधिक होती है। बड़ी संख्या में संस्थाएं व व्यक्तिगत स्तर पर लोग जरूरतमन्दों की सहायता करते हैं। कोरोना की पहली लहर में भी यह प्रमाणित हुआ। सरकार ने अस्सी करोड़ लोगों को राशन देने की व्यवस्था की थी। यह क्रम छह माह तक चला था। इसबार भी सरकार गरीबों को राशन दे रही है। इसके अलावा सामाजिक संस्थाएं भी सेवा कार्यों में लगी हैं। केंद्र सरकार ने डीएपी पर मिलने वाली सब्सिडी को प्रति बोरी पांच सौ रुपये से बढ़ाकर बारह रुपये कर दिया है। अर्थात सब्सिडी को बढ़ाकर एक सौ चालीस प्रतिशत कर दिया है। इससे किसानों को चौबीस सौ रुपये प्रति बोरी की जगह बारह सौ रुपये में मिलेगी।
जाहिर है कि कोरोना आपदा ने समाज के समक्ष बड़ी कठिनाइयां पैदा की है। ऐसे में जरूरतमन्दों को राहत के प्रयास अपरिहार्य हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना आपदा प्रबंधन प्रयासों के बीच ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय भी ले रहे हैं। यह तय किया गया कि कोरोना में जिन बच्चों के माता-पिता नहीं रहे, उनका पालन-पोषण सरकार के द्वारा किया जाएगा, गरीबों को तीन महीने तक राशन प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा प्रदेश के युवाओं को टैबलेट प्रदान की जाएगी।

कोरोना आपदा ने समाज को बहुत प्रभावित किया है। अनेक बच्चों के सिर से माता-पिता संरक्षण समाप्त हो गया। सामाजिक सुरक्षा की भावना के अनुरूप इनका पालन-पोषण करना सरकार का दायित्व है। इसमें समाज के समर्थ लोग भी अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। सरकार ने आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी स्वीकार की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोविड के कारण जिन बच्चों के माता-पिता का देहान्त हो गया, ऐसे अनाथ एवं निराश्रित बच्चों के भरण-पोषण और समुचित देखभाल के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाए। किसी भी शिक्षण संस्थान द्वारा यदि विद्यार्थियों से शुल्क लिया गया है तो शिक्षकों के वेतन से कटौती न की जाए। आपदा के समय में किसी के वेतन से कटौती उचित नहीं है। वेतन का भुगतान समय पर किया जाए। शिक्षा से सम्बन्धित सभी विभागों द्वारा अपने अन्तर्गत संचालित शिक्षण संस्थानों में इस व्यवस्था का अनुपालन कराया जाए। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना फेज तीन के अन्तर्गत प्रदेश में अन्त्योदय तथा पात्र गृहस्थी लाभार्थियों को निःशुल्क खाद्यान्न वितरण इस महीने से प्रारम्भ होगा। राशनकार्ड धारकों को पोर्टेबिलिटी के अन्तर्गत खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा मिलेगी।
वन नेशन वन कार्ड योजना के अन्तर्गत पात्र लाभार्थियों व प्रवासी मजदूरों को पोर्टेबिलिटी के अन्तर्गत प्रदेश की किसी भी उचित दर की दुकान से अपना खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध रहेगी। चौदह करोड़ इकहत्तर लाख यूनिटों पर इस माह में पांच किग्रा गेहूं व दो किग्रा चावल खाद्यान्न का निःशुल्क वितरण किया जाएगा। इसके अलावा युवाओं को टेबलेट देने का निर्णय भी महत्वपूर्ण है। डिजिटल इंडिया अभियान से देश को परोक्ष अपरोक्ष अनेक लाभ हुए है। व्यवस्था में पारदर्शिता आई है। इसमें बिचौलिए नहीं है। हजारों करोड़ रुपये के लीकेज बन्द हुए। शत-प्रतिशत धनराशि संबंधित लोगों तक पहुंचना सँभव हुआ है। शिक्षा व चिकित्सकीय परामर्श का चलन भी बढ़ा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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