रियाद। इजरायल की एटॉमिक एनर्जी कमीशन के एक टॉप अधिकारी की तरफ से सऊदी अरब को लेकर चेतावनी दी गई है। इस अधिकारी की मानें तो सऊदी अरब की तरफ से परमाणु प्लांट की मांग को मंजूरी दिए जाना इस क्षेत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। सऊदी अरब इजरायल के साथ एक सामान्य समझौते के तहत इस प्लांट के तहत मंजूरी मांगी गई है। इस अधिकारी की मानें तो सऊदी अरब की यह मांग अंतरराष्ट्रीय शांति को जोखिम में डाल सकती है। साथ ही मीडिल ईस्ट में परमाणु रेस के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
एरियल लेविटे साल 2002 से 2007 तक इजरायल के एटॉमिक एनर्जी कमीशन के डिप्टी डायरेक्टर रहे हैं। वह इस समय सऊदी अरब की परमाणु महत्वाकांक्षा को लेकर थोड़े आशंकित है। उनका कहना है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की तरफ से कितनी गारंटी दी जाती हैं। उन्होंने यह बात टाइम्स ऑफ इजरायल की हिब्रू भाषा की वेबसाइट जमन इजरायल को दिए इंटरव्यू में कही है। सऊदी अरब ने तीन शर्तें रखी हैं जिसके बाद ही वह इजरायल के साथ सामान्यीकरण समझौता साइन करेगा।
जो शर्तें सऊदी अरब के तहत रखी गई हैं उसमें पहली है, अमेरिका की एडवांस्ड डिफेंस टेक्नोलॉजी जैसे कि थाड मिसाइल सिस्टम तक पहुंच हासिल होना, अमेरिका के साथ एक रक्षा गठबंधन की स्थापना और असैन्य मकसद से एक परमाणु प्लांट की मंजूरी। परमाणु प्लांट में यूरेनियम को संवर्द्धित किया जाता है और इससे ही परमाणु बम बनता है। इसलिए सऊदी अरब की मांग थोड़ा आशंकित करने वाली है। सऊदी अरब की आखिरी शर्त पर इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) तजाची हानेग्बी ने सोमवार को कहा है कि परमाणु प्लांट के लिए इजरायल की मंजूरी जरूरी नहीं है।
उन्होंने कान पब्लिक ब्रॉडकास्टर से कहा, ‘दर्जन भर देश असैन्य परमाणु कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं। इसकी वजह से इजरायल या फिर उसके पड़ोसी खतरे में नहीं आएंगे।’ उनका कहना है कि यह मुद्दा पूरी तरह से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच होगा। वहीं लेविटे की मानें तो एनर्जी प्रोडक्शन के लिए परमाणु रिएक्टर्स में तब तक कोई समस्या नहीं आती है जब तक कि उनका उचित रखरखाव किया जाता है। हालांकि उन्होंने आगाह भी किया, कि अगर किसी तरह से सुरक्षा विफल होती है तो फिर पर्यावरण पर भारी असर पड़ सकता है। उन्होंने चेरनोबिल और फुकुशिमा का उदाहरण दिया है।
उनका कहना था कि अगर सऊदी अरब एक रिएक्टर बनाता है तो वह सिर्फ इसे लाल सागर के करीब ही निर्मित करेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि एक रिएक्टर को ठंडा करने के लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। लेकिन अगर वहां कोई आपदा या आतंकवादी हमला होता है तो यह कोई साधारण बात नहीं होगी। इसका असर इजरायल समेत पूरे मीडिल ईस्ट पर पड़ेगा। लेविटे ने कहा कि इजरायल एक नागरिक रिएक्टर को मिलिट्री मकसद के लिए परिवर्तित किए जाने की आशंका को लेकर भी चिंतित है।
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