मुंबई। हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) में बहुत से ऐसे कलाकार(Artist) मौजूद हैं जो कभी हीरो(Hero) बनने का सपना लेकर इंडस्ट्री(Industry) में आए थे जिनमें किसी का सपना पूरा हुआ तो कोई साइड हीरो या निर्देशक-खलनायक बन गए। हालांकि क्या आप मान सकते हैं कि इसी फिल्म जगत में कभी एक ऐसा कलाकार भी था जो अभिनेता बनना चाहता था, लेकिन उसने भगवान से मांगा की उसे हीरो नहीं बनाना बल्कि कैरेक्टर आर्टिस्ट(Character Artist) बनाना? इसकी वजह ये थी कि हीरो के हिस्से में सिर्फ रोमांस(Romance) आता है और कलाकार के हिस्से में अभिनय(Acting)। ऐसे विचारों वालों हिंदी सिनेमा के दमदार अभिनेता थे सत्येन कप्पू(Satyen Kappu) जिन्होंने फिल्मों में अपने हुनर का जौहर दिखाया था।
6 फरवरी 1931 को मुंबई में सत्येन कप्पू(Satyen Kappu) का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम था बुद्ध सिंह शर्मा और माता का नाम था गंगा देवी। उनके एक बड़े भाई थे जिनका नाम राधे श्याम शर्मा था। वहीं सत्येन कप्पू का असली नाम था सत्येंद्र शर्मा, लेकिन बचपन में सब उन्हें प्यार से कप्पू-कप्पू बुलाते थे इसलिए उन्होंने अपना नाम सत्येन कप्पू कर लिया था। सत्येन कप्पू (Satyen Kappu) में बेहद छुटपन में ही गंभीरता आ गई थी और इसकी वजह ये थी कि जब वो और उनके भाई छोटे तभी उनके माता पिता का निधन हो गया था। बचपन में ही माता पिता के गुजर जाने से उनके ऊपर खुद की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई थी। उनके कुछ रिश्तेदारों ने सत्येन कप्पू (Satyen Kappu) को गुरुकुल छोड़ दिया था जहां उनकी पढ़ाई लिखाई हुई। हालांकि वो बचपन से ही फिल्मों में काम करने का शौक रखते थे। जब वो 16-17 साल के हुए तो उनके बड़े भाई उन्हें मुंबई ले आए और वहां वो थिएटर में काम करने लगे। सत्येन कपूर (Satyen Kappu) हिंदी सिनेमा के बेहतरीन अभिनेता अशोक कुमार के जबरदस्त फैन थे और उनकी ही तरह एक वर्सटाइल अभिनेता बनना चाहते थे। सत्येन कप्पू(Satyen Kappu) को फिल्म में उनका पहला ब्रेक 1961 में निर्माता-निर्देशक-लेखक बिमल रॉय ने दिया था और फिल्म का नाम था ‘काबुलीवाला’। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में अलग अलग तरह के रोल किए। उन्हें सबसे ज्यादा खुशी इस बात की थी वो फिल्मों में अलग अलग किरदार निभा रहे थे। उन्होंने अपने करियर में करीब 400 फिल्में में काम किया था जिसमें ‘डॉन’, ‘कटी पतंग’, ‘दीवार’, ‘खोटे सिक्के’ और ‘शोले’ जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल है। सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि उन्होंने कई रीजनल फिल्मों में भी अपने हुनर का परचम लहराया। सत्येन कपूर बेहद संजीदा और जमीन से जु़ड़े व्यक्ति थे। वो अक्सर कहा करते थे कि मैं ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं हूं लेकिन जिंदगी ने मुझे तो अनुभव दिया उसने मुझे लायक बना दिया। 1951 में सत्येन कप्पू ने 8 दिसंबर को कैलाशवती से अरेंज मैरिज कर ली। उनकी शादी से उन्हें चार बेटियां हुईं। उमा, विनिता, दृप्ति और तृप्ति। तृप्ति बहुत अच्छी लेखिका हैं और वो कई सीरियल के लिए कहानी लिखती हैं। अपने जीवन के आखिरी पलों में भी सत्येन कप्पू सक्रिय रहे और फिल्मों में काम करते रहे। सन 2006 में रिलीज हुई फिल्म ‘सरहद पार’ उनकी आखिरी फिल्म थी। 27 अक्टूबर 2007 में सत्येन कप्पू ये दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन अपने पीछे एक मीठी याद और गहरी सीख छोड़ गए जो आने वाली पीढ़ी के लिए हमेशा काम आएंगी।