कांग्रेस की शीर्ष नेत्री प्रियंका गांधी अपने कामयाब कार्यक्रम के बाद जबलपुर से प्रस्थान कर गयीं, लेकिन, उन्हें सुनने आयी भीड बहस के घेरे में आ गयी। भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने हैं। भाजपा ने आरोप उछाला है कि प्रियंका जी की सभा में नगर निगम के सफाई कर्मचारियों को बतौर श्रोता जबर्दस्ती ले जाया गया। सोचने वाली बात है कि जिन कर्मचारियों को दबाव देकर उनके खुद के काम पर नहीं ले जाया जा सकता,उन्हें सभा में ले जाना मुश्किल है। पता नहीं शायद भाजपा ये सोच रही है कि प्रियंका जी जैसे ओजस्वी-तेजस्वी वक्ता को सुनने के लिए सफाई कर्मचारी नहीं जा सकते। भाजपा ऐसे कैसे सोच सकती है।
मुमकिन है ये सभी कर्मचारी सभा में जाने की जिद पर अड़ गए हों और कांग्रेस ने केवल वाहन वगैरह का इंतजाम कर दिया हो। सभा के कारण एक दिन और सफाई नहीं हुई तो क्या, इस वर्ग के लोगों की राजनीतिक चेतना तो जाग उठी। भारत में राजनीतिक जागरुकता कब,कहां आ जाये कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता। भाजपा के इस हमले का जवाब कांग्रेस ने हमले से दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि 10 जून को मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में भाजपा महिलाओं को ये बोलकर लायी थी कि लाड़ली बहना योजना के एक हजार नकद दिए जायेंगे। इस आरोप में जरा भी दम नहीं है भाजपा ने थोड़ा सा ही तो झूठ बोला है, रकम तो बंटी है,नकद नहीं मिला। पॉलिटिक्स में इतनी सी बात को झूठ कहना, झूठ की बेइज्जती ही है। ऐसे तो एक मिनट गुजारा नहीं होगा राजनीति में।
भाजपाइयों को इतने में ही सुकून नहीं मिला। उन्होंने प्रियंका जी के नर्मदा आरती करने के तरीके पर भी आपत्ति प्रकट की है। अब कोई अपनी संस्कृति की ओर लौटने का प्रयास करे तो भी भाजपाइयों को गवारा नहीं है। बेचारी प्रियंका गांधी आरती करना सीख तो रही हैं,क्या ये कम नहीं है। हमें गर्व होना चाहिए। प्रोत्साहित करने के बजाए ये ताने कसना जरा भी अच्छा नहीं है। प्रियंका जी ही क्या,बल्कि पूरी कांग्रेस अब भली प्रकार जान चुकी है कि उन्हें क्या सीखना है और क्यों सीखना है और यह भी कि अब ये सीखे बिना दाल नहीं गलेगी। कुछ घुटे हुए कांग्रेसी तो पूर्ण रूपेण ट्रेंड भी हो चुके हैं। भाजपाइयों को तो खुश होना चाहिए,किंतु उल्टे ये टीका-टिप्पणी कर रहे हैं।
सफाई कर्मियों का पीछा करने के बजाय भाजपा को उन सर्वे रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए, जो भाजपा को बार-बार चेतावनी दे रही हैं कि जमीन खिसक रही है। प्रत्याशी चयन में वो न हो, जो पिछली दफा हुआ था। हर बार सिंधिया जी मदद नहीं करेंगे। उधर, कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती है, पहले अपने विधायकों को जिताना है और फिर उन्हें बिकने से भी बचाना है। बहुत भोले होते हैं विधायक(खासकर कांग्रेसी) इसलिए उनकी अंगुली थामनी होगी, भटकने न पाएं।
विवेक उपाध्याय
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