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    सरदार वल्लभ भाई पटेलः प्रेरणा का विराट व्यक्तित्व

  • October 31, 2020

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर मजबूत और एकीकृत भारत के निर्माण में सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व राष्ट्र को सदैव प्रेरणा देता रहेगा। उन्होंने युवावस्था में ही राष्ट्र और समाज के लिए जीवन समर्पित करने का संकल्प लिया था। इस ध्येय पथ पर वह निःस्वार्थ भाव से लगे रहे। गीता में भगवान कृष्ण ने कर्मयोग को समझाया है। अर्थात् अपनी पूरी कुशलता और क्षमता के साथ दायित्व का निर्वाह करना चाहिए। सरदार पटेल ने आजीवन इसी आदर्श पर अमल किया।

    सरदार वल्लभ भाई पटेल जब वह वकील के दायित्व का निर्वाह कर रहे थे, तब उसमें भी उन्होंने मिसाल कायम की। इस संदर्भ में एक घटना उल्लेखनीय होगी कि एकबार वह जज के सामने जिरह कर रहे थे, तब उन्हें एक टेलीग्राम मिला। उन्होंने उसे देखा और चुपचाप जेब में रख लिया। जिरह जारी रही। जिरह पूरी होने के बाद उन्होंने घर जाने का फैसला लिया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस तार में उनकी धर्मपत्नी के निधन की सूचना थी। वस्तुतः यह उनके लौहपुरुष होने का भी उदाहरण है।

    देश की आजादी में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ ही कांग्रेस में एक बड़ा बदलाव आया था। इसकी गतिविधियों का विस्तार सुदूर गांव तक हुआ था। लेकिन इस विचार को व्यापकता के साथ आगे बढ़ाने का श्रेय सरदार पटेल को दिया जा सकता है। उन्हें भारतीय सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की भी गहरी समझ थी। वह जानते थे कि गांवों को शामिल किए बिना स्वतन्त्रता संग्राम को पर्याप्त मजबूती नहीं दी जा सकती। महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल वारदोली सत्याग्रह के माध्यम से पूरे देश को इसी बात का सन्देश दिया था। इसके बाद भारत के गांवों में भी अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी थी। देश में हुए इस जनजागरण में सरदार पटेल की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इस बात को महात्मा गांधी भी स्वीकार करते थे। सरदार पटेल के विचारों का बहुत सम्मान किया जाता था। स्वतन्त्रता के पहले ही उन्होंने भारत को शक्तिशाली बनाने की कल्पना कर ली थी।

    संविधान निर्माण में भी उनका बड़ा योगदान था। इस तथ्य को डॉ. आंबेडकर भी स्वीकार करते थे। सरदार पटेल मूलाधिकारों पर बनी समिति के अध्यक्ष थे। इसमें भी उनके व्यापक ज्ञान की झलक मिलती है। उन्होंने अधिकारों को दो भागों में रखने का सुझाव दिया था। एक मूलाधिकार और दूसरा नीति निदेशक तत्व। मूलाधिकार में मुख्यतः राजनीतिक, सामाजिक, नागरिक अधिकारों की व्यवस्था की गई। जबकि नीति निर्देशक तत्व में खासतौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया गया। इसमें कृषि, पशुपालन, पर्यावरण, जैसे विषय शामिल हैं। इन्हें आगे आने वाली सरकारों के मार्गदर्शक के रूप में शामिल किया गया। बाद में न्यायिक फैसलों में भी इसकी उपयोगिता स्वीकार की गई।

    दरअसल सरदार पटेल भारत की मूल परिस्थिति को गहराई से समझते थे। वह जानते थे कि जबतक अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण बना रहेगा, तब तक सन्तुलित विकास होता रहेगा। इसके अलावा गांव से शहरों की ओर पलायन नहीं होगा। गांव में ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।

    आजादी के बाद भारत को एकजुट रखना बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज जाते-जाते अपनी कुटिल चाल चल गए थे। साढ़े पांच सौ से ज्यादा देसी रियासतों को वह अपने भविष्य के निर्णय का अधिकार दे गए थे। उनका यह कुटिल आदेश एक षड्यंत्र जैसा था। वह दिखाना चाहते थे कि भारत अपने को एक नहीं रख सकेगा, देश के सामने आजाद होने के तत्काल बाद इतनी रियासतों को एक बनाए रखने की चुनौती थी।

    सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से इस एकीकरण का कार्य सम्पन्न कराया। इसमें भी उनका लौहपुरुष वाला व्यक्तित्व दिखाई देता है। उन्होंने देसी रियासतों की कई श्रेणी बनाई। सभी से बात की। अधिकांश को सहजता से शामिल किया। कुछ के साथ कठोरता दिखानी पड़ी। सेना का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हटे। मतलब देश की एकता को उन्होने सर्वोच्च माना और उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तत्पर दिखे।

    आजादी के बाद उन्हें केवल तीन वर्ष देश की सेवा का अवसर मिला। इस अवधि में ही उन्होने बेमिसाल कार्य किये। ईमानदारी और सादगी ऐसी कि निधन के बाद निजी सम्पत्ति के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था। लेकिन उनके प्रति देश की श्रद्धा और सम्मान का खजाना उतना ही समृद्धशाली था। यह उनकी महानता का प्रमाण है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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