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    संस्कृत में विज्ञान की शिक्षा

  • August 31, 2020

    – प्रमोद भार्गव

    देश के शीर्ष अभियांत्रिकी संस्थानों में आमतौर पर गणित और विज्ञान की पढ़ाई अंग्रेजी में होती है लेकिन अब उस कक्षा की कल्पना कीजिए, जिसमें तकनीकी विषयों के प्राचीन पाठ संस्कृत में पढ़ाए जाएंगे। साथ ही शिक्षक और विद्यार्थी इसी भाषा में संवाद संप्रेषित करेंगे। यह सुखद एवं उल्लेखनीय पहल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर ने किया है। संस्थान ने देश के प्राचीन ग्रंथों में शताब्दियों पहले संजोए गए गणितीय और वैज्ञानिक ज्ञान से वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराने के लिए अपने किस्म का ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किया है, जिसमें प्रतिभागियों को संस्कृत में पढ़ाया जा रहा है। संस्थान के निदेशक प्रो. निलेश कुमार जैन ने बताया कि 62 घंटे का यह पाठ्यक्रम 2 अक्टूबर 2020 तक चलेगा। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले भाग में संस्कृत भारती संगठन के भाषाई विद्वानों की मदद से उन प्रतिभागियों में संस्कृत समझने को लेकर कौशल विकसित किया जाएगा, जो इस पुरातन भाषा से अच्छी तरह परिचित नहीं हैं। पाठ्यक्रम के दूसरे भाग में आईआईटी मुंबई के दो प्रोफेसर संस्कृत में गणित का शास्त्रीय पाठ पढ़ाएंगे। इस पाठ्यक्रम में 750 से अधिक प्रतिभागी भाग लेंगे। दरअसल संस्कृत में रचे गए भारत के प्राचीन ग्रंथों में गणित और विज्ञान के ज्ञान की समृद्ध विरासत है।

    अबतक माना जाता रहा है कि संस्कृत भाषा के ग्रंथों में गणित व विज्ञान नहीं है। इसमें दुनिया में हो रहे अनुसंधानों का भी उल्लेख नहीं है। हालांकि आजादी के बाद उम्मीद जगी थी कि संस्कृत के ग्रंथों में दर्ज ज्ञान पर अनुसंधान कर उन्हें मनुष्य के लिए उपयोगी बनाया जाएगा। पर तथाकथित वामपंथियों के धर्मनिरपेक्षतावादी इकतरफा विचारों के चलते संस्कृत के ग्रंथों को ही नहीं, भाषा को भी सांप्रदायिक मान लिया गया। देश की शैक्षिक संस्थाओं में वामपंथी विद्वानों का वर्चस्व इसमें बाधा बना रहा। पाश्चात्य मत से प्रभावित इस धारा के लोग बीते छह-सात दशक तक इसी पुरजोर कोशिश में लगे रहे कि भारत के पास गणित और विज्ञान के ज्ञान की कोई विरासत नहीं है और विदेशी आक्रांताओं ने भारत को ज्ञान और सभ्यता से परिचित कराया। दरअसल ये विद्वान निजी स्वार्थ और पदलोलुपता के चलते देश के जातीय एवं भाषाई स्वाभिमान को आघात पहुंचाने वाली मैकाले की शिक्षा पद्धति को ही सींचते रहे। जबकि मैकाले ने भारतीय ज्ञान की जड़ों में मट्ठा घोलने का काम किया था। अलबत्ता अनेक विदेशी विद्वानों ने संस्कृत को एकमात्र जीवित भाषा माना है। यदि यह भाषा जीवित न होती तो मैकाले इसे नष्ट करने के कानूनी उपाय नहीं करता? और जर्मन विद्वान मैक्समूलर करीब पौने दो सौ साल पहले संस्कृत के ग्रंथों की हजारों पांडुलिपियां अपने देश न ले गया होता? हालांकि मैक्समूलर द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवादों से पाश्चात्य विद्वानों ने इसकी वैज्ञानिक महिमा को जाना और महत्ता को स्वीकार किया। इसीलिए नासा के वैज्ञानिक आज संस्कृत को दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा मान रहे हैं और इसे वैज्ञानिकों के लिए अनिवार्य भाषा बनाए जाने की मांग कर रहे हैं।

    अच्छी बात है कि विज्ञान के नए शोध भारतीय एवं पश्चिमी विधियों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। देश के पहले सुपर कंप्यूटर परम् के निर्माता एवं देश में सुपर कंप्यूटिंग की शुरूआत से जुड़े सी-डेक के संस्थापक डॉ. विजय भटकर का कहना है कि ‘सत्य को जानने के लिए कभी पश्चिमी शोधकर्ता स्मृति, शरीर और दिमाग पर निर्भर रहते थे, लेकिन विज्ञान की नवीनतम ज्ञान-धारा क्वांटम यांत्रिकी अर्थात अति सूक्ष्मता का विज्ञान आने के बाद उन्होंने चेतना पर भी बात शुरू कर दी है। दरअसल अब उन्होंने अनुभव कर लिया कि भारतीय भाववादी सिद्धांत को समझे बिना चेतना का आकलन संभव नहीं है। जबकि अबतक पश्चिमी विज्ञान का पूरा ध्यान प्रकृति बनाम पदार्थ पर ही केंद्रित रहा है। इसीलिए अब कंप्यूटर की भाषा को और बारीकी से समझने के लिए नासा जैसा विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्थान पाणिनी व्याकरण की अष्टाध्यायी का अध्ययन कर रहा है।’

    दरअसल क्वांटम सिद्धांत के अंतर्गत अतिसूक्ष्म विज्ञान अणु और परमाणु के स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के बीच संबंध को विस्तृत रूप में परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है। यह विज्ञान की अपेक्षाकृत नवीन एवं ऐसी शाखा है, जिसकी मान्यताएं भारतीय विज्ञान और दर्शन से मिलती हैं। भारतीय मनीषियों ने सत्य को भौतिक, जैविक, मनोवैज्ञानिक, परिस्थितिकी और ब्रह्माणडीय स्तर पर देखा-परखा था। कालांतर में ऋषियों ने इसे ही पंच-तत्वों से जोड़ा। सृष्टि और जीव-जगत के विकास का यही बीज-मंत्र है और यही हमारे विज्ञान सम्मत दार्शनिक चिंतन का मूलाधार है। अतएव अब माना जा रहा है कि भविष्य के सुपर कंप्यूटर की संरचना संस्कृत भाषा पर आधारित होगी।

    कण-यांत्रिकी को कल के कंप्यूटर का भविष्य माना जा रहा है। पारंपरिक कंप्यूटर बिट (अंश) पर काम करते हैं, वहीं क्वांटम कंप्यूटर में प्राथमिक ईकाई क्यूबिट यानी कणांश होती है। पारंपरिक कंप्यूटर में प्रत्येक बिट का मूलाधार या मूल्य शून्य (0) और एक (एक) होता है। कंप्यूटर इसी शून्य और एक की भाषा में ही कुंजी-पटल (की-बोर्ड) से दिए निर्देश को ग्रहण करके समझता है और परिणाम को अंजाम देता है। वहीं क्वांटम की विलक्षणता यह होगी कि वह एक साथ ही शून्य और एक दोनों को ग्रहण कर लेगा। यह क्षमता क्यूबिट की वजह से विकसित होगी। परिणामस्वरूप यह दो क्यूबिट में एक साथ चार मूल्य या परिणाम देने में सक्षम हो जाएगा। एक साथ चार परिणाम स्क्रीन पर प्रगट होने की इस अद्वीतीय क्षमता के कारण इसकी गति पारंपरिक कंप्यूटर से कहीं बहुत ज्यादा होगी। इस कारण यह पारंपरिक कंप्यूटरों में जो कूट-रचना या गूढ़-लेखन कर दिया जाता है, उससे कहीं अधिक मात्रा में यह कंप्यूटर डाटा ग्रहण व सुरक्षित रखने में समर्थ होगा। हालांकि क्वांटम कंप्यूटर अभी अवधारणा के स्तर पर ही है, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुपर कंप्यूटरों की अवधारणा के कहीं बहुत आगे होंगे?

    संस्कृत को कंप्यूटर की कृत्रिम बुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि नासा के वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि संस्कृत विश्व की सबसे अधिक स्पष्ट भाषा है। इसमें जैसा बोला जाता है, हुबहू वैसा ही लिखा जाता है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि इसका शब्दकोष बहुत विशाल है। इसमें 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द हैं। नासा के पास ताड़-पत्रों पर लिखी संस्कृत की साठ हजार पांडुलिपियां उपलब्ध हैं। इनपर व्यापक शोध चल रहा है। संस्कृत ही ऐसी भाषा है, जिसमें कम से कम शब्दों में वाक्य पूरे हो जाते हैं। एलियन से संवाद स्थापित करने के लिए भी नासा और अन्य खगोलीय संस्थानों ने संस्कृत के वाक्य अंतरिक्ष में भेजे हैं। हालांकि एलियन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला है। एक समय नासा के वैज्ञानिकों के द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों को भेजे गए संदेश पलट जाते थे, इस कारण उनका अर्थ भी बदल जाता था। इसका समाधान अब संस्कृत और इसे लिखी जाने वाली देवनागरी लिपि में खोज लिया गया है।

    दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक ‘ऋग्वेद’ संस्कृत में लिखी है। ज्यामिति, बीज गणित और ज्योतिष व खगोल विद्या पर सबसे प्राचीन किताबें संस्कृत में ही हैं। अमेरिकन हिंदू विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार संस्कृत में बात करने से मनुष्य शरीर का तंत्रिका-तंत्र सक्रिय रहता है। इसका सकारात्मक प्रभाव रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करता है। गायत्री मंत्र के 24 अक्षर शरीर की 24 ग्रंथियों को प्रभावित कर मानव की एकाग्रता बढ़ाती हैं और बोली को स्पष्ट करती हैं। ऋषि कणाद ने भौतिकी में प्रकाश व उष्मा को एक ही तत्व के विभिन्न रूप हजारों साल पहले बता दिया है। नागार्जुन ने रसायनशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ रस-रत्नात्कर संस्कृत में लिखा है। संस्कृत के रस-हृदयतंत्र रसेन्द्र- चूड़ामणि, रसप्रभा-सुधाकर, रसार्णव, रससार आदि प्राचीन संस्कृत-ग्रंथ रसायनशास्त्र की अमूल्य धरोहर हैं। आर्यभट्ट ने अपने खगोलीय व बीजगणितीय सि़द्धांतों के आधार पर ईसा की छठी शताब्दी में ही तय कर दिया था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। आर्यभट्ट ने पृथ्वी का जो व्यास निर्धारित किया था, वह आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा तय किए गए व्यास के लगभग बराबर हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र को आज भी दुनिया में मान्यता प्राप्त है।

    संस्कृत ग्रंथों की वैज्ञानिकता को व्यावहारिक रूप में समझने की दृष्टि से अमेरिका के सेंटो हॉल विश्वविद्यालय ने गीता को प्रत्येक विद्यार्थी अनिवार्य रूप से पढ़े, इस हेतु नीति बनाई है। यहां गीता का अंग्रेजी अनुवाद प्रोफेसर स्टीफन मिचैल ने किया है। कुछ साल पहले राजस्थान विवि ने जैन, बौद्ध और हिंदू धर्म ग्रंथों को प्रबंधन के पाठ्यक्रम में शामिल किया है। बहरहाल आईआईटी इंदौर द्वारा संस्कृत में गणित एवं विज्ञान का ऑनलाइन अध्यापन संस्कृत भाषा के लिए ही नहीं देश के लिए भी गौरव की बात है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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