उज्जैन। मालवा का प्रमुख त्योहार संजा पर्व मनाया जा रहा है। संजा के माण्डने जहां बहुत कुछ बताते, सिखाते हैं वहीं ये माण्डने लोक मान्यताओं का वर्णन भी करते है, जो तात्कालिक समय हुआ करती थी। संजा पर्व के माध्यम से कुंवारी लड़कियों को बताया जाता है कि सद्मार्ग पर चलने के लिए धर्म के प्रति झुकाव, ईश्वर के प्रति आस्था होना चाहिए।
यह मिलती है नियमित दिनचर्या के साथ-साथ पूजा पाठ करने से। लड़कियों को बचपन से ही पूजा करना, दीपक लगाना, सांध्य आरती करना सिखाया जाता था। पर्व, त्योहार पर धार्मिक रस्म किस प्रकार निभाई जाती है, यह बताया जाता था। साथ ही पूर्णिमा, चतुर्थी पर व्रत रखना, एकासना और उपवास रखना, एकादशी पर व्रत रखना और इनके पिछे के कारणों को बताया जाता था। लड़कियां व्रत रखने के चलते जहां भोग विलास से मुक्त रहती थी, वहीं मौका आने पर किसी संकट की स्थिति में भूखा रहकर भी संतुलित और संयमित रहा जा सकता है, सीखती थी।
यदि प्राचीन काल में ससुराल शब्द को लेकर व्याख्या करें तो पुरानी पीढ़ी महिलाएं बताती है कि ससुराल के मायने होते थे कोई कैद हो गई हो? उस समय लड़की ससुराल के नाम से कांपती थी। पति के घर जाना तो पसंद रहता था लेकिन सास-ससुर का व्यवहार, ननद, जेठ-जेठानी का व्यवहार कैसा होगा, यही सोचकर लड़कियां भय खाती थी। ऐसे में संजा के माण्डने उसे लोकाचार खीखाते थे। यही लोकाचार उसे ससुराल में हिम्मत देते थे। यही लोकाचार उसे ससुराल में धीर-गंभीर बनना सिखाते थे और एक दिन बहू घर में सभी की प्रिय हो जाती थी। समय निकलता जाता था और बहू की पदवी सासु मां बनने तक पहुंच जाती थी। जीवन चक्र इसीप्रकार चलता रहता था। आज भी चल रहा है, लेकिन भौतिकवाद को ओढ़कर, जिसमें न तो संवेदना है, न ही भावनाएं। केवल और केवल दिखावा ?
बनेगी ग्यारस की केल
संजा पर्व में ग्यारस को केल बनाई जाएगी। केल का पूजन शिव-पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह मान्यता है कि केल का पूजन यदि कुंवारी कन्या करती है तो उसे अपनी पसंद का वर मिलता है। वहीं यह मान्यता भी है कि यदि केल के दूध का सेवन लगातार मनुष्य को करवाया जाए तो उसकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है। बुजूर्गो के अनुसार ब्रम्हचर्य के दौरान अपना कौमार्य सुरक्षित रखने के लिए खास करके लड़कियों को केल की पूजा की प्रेरणा महिलाएं दिया करती थी।
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