उज्जैन। यह बात संजा लोकपर्व से हटकर है, लेकिन महत्वपूर्ण है, इसलिए पाठकों के समक्ष में है। तानाशाह हिटलर ने पूरे विश्व में गदर मचा दिया था। उस समय की महाशक्तियों को पानी पिला दिया था। हिटलर ने जब उंचाईयां छूना शुरू की तब तक सबकुछ ठीक रहा। जैसे ही उसने उल्टे स्वस्तिक को अपना राज चिंह बनाया, सबकुछ उल्टा होने लगा। हालात यह रहे कि विश्व विजेता की स्थिति में बढऩे वाला हिटलर न केवल दिमागी तौर पर बीमार हुआ बल्कि उसे लगातार पराजय मिली और अंत में उसने आत्महत्या कर ली। यह सब उल्टे स्वस्तिक का नतीजा है। यह भी सही है कि उसे पता ही नहीं था कि भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक का क्या महत्व है।
आज बनेगा शुभ का प्रतिक स्वस्तिक
सप्तमी को सातिया (स्वस्तिक) बनाया जाएगा। यह शुभ का प्रतीक है। इसकी बनावट से लेकर घुमावों तक में यदि कोई चूक हो जाती है तो उसका घर-परिवार पर उल्टा असर गिरता है। इसीलिए स्वस्तिक बनाते समय बहुत सावधानी रखी जाती है। लड़कियों को सिखाया जाता है कि स्वस्तिक कैसे बनाया जाए? विवाह बाद बहू बनकर अपने ससुराल में भावी पीढ़ी की कामना हेतु हर मांगलिक कार्य करते समय इसे बनाना होता है।
यहां तक कि स्वस्तिक को लेकर बुजूर्गो में यह मान्यता है कि यदि यह ठीक बनता है तो घर में सबकुछ ठीक रहता है। पूजा के पूर्व भगवान का आव्हान करना हो या कलश बैठाना हो, स्वस्तिक बनाया जाता है। लाल कुमकुम से बने स्वस्तिक की सारी भुजाएं अमूमन बराबर रखी जाती है। ताकि हर तरफ संतुलन रहे। महिलाएं गोबर से संजा माण्डती लड़कियों को सिखाती है कि कैसे बनाया जाए। साथ ही स्वस्तिक बनाने के बाद उसे कुमकुम, हल्दी, अक्षत लगाकर पूजा जाता है। विवाह बाद लड़की जब ससुराल की दहलीज पर आती है तो उसके हाथों के छापे घर की दिवार पर बनवाए जाते हैं। इन छापों के समीप स्वस्तिक बनवाया जाता है। सास, दादी सास लेकर अन्य ससुराल की बुजूर्ग महिलाएं स्वस्तिक की आकृति देखकर मन ही मन समझ जाती है कि धर्म, संस्कृति तथा रीति-रिवाजों को लेकर बहू की माता ने कितना सिखाया है।
आज का गीत
संजा बई का लाड़ा जी, लुगड़ो लाया जाड़ा जी
ऐसी कई लातो दारी को, लातो गोट किनारी को
संजा बई तो ओल मोल, लुगड़ो लाया झोल मोल।
-स्वाति अंकित जैन
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