उज्जैन । मलवा का प्रसिद्ध संजा पर्व पर दशमी को जलेबी जोड़ बनाई जाती है। जलेबियां मिठास का प्रतिक होती है। बुजूर्ग महिलाएं कुंवारी कन्याओं को बताती है कि ससुराल में अपनी जीव्हा पर लगाम कसने पर कड़वाहट भी मिठास में बदल जाती है। सभी से प्यार,स्नेह के साथ रहना और सभी की मदद करना लड़की का गुण होता है। जिस प्रकार जलेबी घी में तपने के बाद शकर की चासनी की कड़ाई में डूबकर सारी मिठास अपने में समाहित कर लेती है। उसी प्रकार विवाह बाद कन्या को अपने ससुराल में अपने व्यवहार से सभी के मन में मिठास घोलना चाहिए, ताकि वहां सभी की चहेती बनकर सुखपूर्वक रह सके।
आज का गीत
संजा की सखियां खोड्या ब्राम्हण याने संझ्या के पति को कोसते हुए गीत गाती है-
खुड्-खुड् से म्हारा खोड्या ब्राम्हण
म्हारी संजा के लेवा आयो रे
म्हारी संजा को माथो छोटो सो ,टीको क्यों नी लायो रे
लायो थो बई लायो थो, पन बांटे भूली आयो रे।
म्हारी संजा का कान छोटा सा, सरन्या क्यों नी लायो रे
म्हारी संजा की नाक छोटी सी, नथनी क्यों नी लायो रे
म्हारी संजा को गलो छोटो सो, ठुस्सी क्यों नी लायो रे
म्हारी संजा का हाथ छोटा सा, गजरा क्यों नी लायो रे
म्हारी संजा का पैर छोटा सा, बिछुड़ा क्यों नी लायो रे
लायो थो बई लायो थो, पण बांटे भूली आयो रे। ।
* स्वाति अंकित जैन
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