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    सनातन धर्म और उसकी राह की चुनौतियां

  • December 15, 2021

    – डॉ. हिमांशु शर्मा

    ‘सर्वें भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुख भाग्भवेत।।’
    (यह शांति पाठ भारत वर्ष के सनातन धर्म का आधार है।)

    हिंदू धर्म को सनातन धर्म से अभिहित किया जाता है क्योंकि इसका प्रारंभ मानव सभ्यता के विकास के साथ हुआ। अति प्राचीन सभ्यताओं में सनातन धर्म के अस्तित्व के प्रमाण मौजूद हैं। सनातन धर्म की अनंत विशेषताओं ने विश्व को प्रभावित किया है। कई महापुरुषों ने अपने विचार और व्यक्तित्व से विश्व में अपना डंका बजाया। अद्भुत क्षमताओं और उज्ज्वल इतिहास का समागम सनातन धर्म में निहित है। जब संसार शिक्षा का अर्थ ठीक से समझ भी नहीं पाया, उस समय वेद वेदांग, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण जैसे महान ग्रंथों का प्रणयन सनातन धर्म में हो चुका था। भगवद् गीता जैसा वैज्ञानिक और व्यावहारिक ग्रंथ विश्व भर में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर चुका है।

    ऐसे महान सनातन धर्म पर समय-समय पर अनेक विपदाएं आईं, परंतु स्वर्ण के समान निखरता अभ्युदय ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता रही। वर्तमान में सनातन धर्म को षड्यंत्रपूर्वक कलंकित करने का कुत्सित सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है।

    गत 28 नवम्बर 2021 को राजस्थान के समाचार पत्रों में छपी खबर ने आत्मा पर गहरी चोट की। भदेसर क्षेत्र के अंतर्गत मण्डफिया थानांतर्गत भाटोली गुजरात गांव में एक दलित युवक की बिंदोली में कतिपय लोगों द्वारा अवरोध उत्पन्न किया गया। ऐसी शर्मनाक घटना सनातन धर्म को खंडित करने का प्रयास भर है। ऐसे कतिपय लोगों का पुरजोर विरोध होना चाहिए।

    हिंदू धर्म में जातिगत विद्वेष कभी नहीं था। सनातन धर्म के विरोधियों ने ऐसा प्रचारित किया कि समाज के उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग पर अत्याचार करते रहे हैं। ब्राह्मण वर्ग को इसके लिए विशेष रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। ऐसी घटनाएं केवल धर्म, धर्माचरण को खंडित और कमजोर करने का प्रयास हैं जो विदेशी अत्याचारी आक्रांताओं द्वारा इतिहास में हुए। उन्हें हमेशा से इसका भान था कि संगठित हिन्दू धर्म पर अधिकार नहीं रखा जा सकता है, इसलिए सनातन धर्म को जातिगत विद्वेष में उलझा दिया।

    आज बाबा साहब अंबेडकर को कौन नहीं जानता। उन्हें दलितों का मसीहा माना जाता है। भारतवर्ष की जनता यह भी जानती है कि एक ब्राह्मण ने उन्हें अंबेडकर उपनाम दिया। बड़ौदा के महाराजा सायाजी राव गायकवाड़ ने अंबेडकर को तीन साल तक आर्थिक सहायता दी जिससे उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई पूरी की। अगर भेदभाव और घृणा का भाव इतना गहरा था तो एक ब्राह्मण ने प्रारंभिक अवस्था में कैसे भीमराव का साथ दिया। कुछ उद्दंडों के कृत्य को विराट हिंदू धर्म पर थोपना सही नहीं है।

    वर्तमान समय में आवश्यकता है धर्म को मजबूत बनाने की, जिम्मेदार संगठनों और सक्षम नेतृत्व को इस ओर ईमानदारी से कार्य करना चाहिए। हिंदू धर्म में जातिगत विद्वेष के लिए कोई स्थान नहीं है। ये कड़ी भी टूटी तो धर्म में बिखराव की स्थिति हमेशा बनी रहेगी। जाति से कई गुना बड़ा है धर्म, हमें इसे समझने की आवश्यकता है। किसी दलित पर अत्याचार होता है तो यह हमारे लिए शर्मनाक है।

    शौचालय शब्द शौच और आलय इन दो शब्दों से बना है। शौच शब्द शुचि में अ प्रत्यय लगने से बना, शुचि का अर्थ है पवित्र और आलय का अर्थ स्थान है। मनुष्य अपना मल त्याग कर शरीर को पवित्र करता है इसलिए शौचालय शब्द से तात्पर्य पवित्र होने का स्थान। इसी प्रकार समाज के कई वर्ग समाज को पवित्र करने का काम करते हैं।

    समाज को अपवित्र करने वालों से बड़ा मान-सम्मान उन जनों का होना चाहिए जिनमें इस समाज को पवित्र करने की शक्ति है जो अपने-आप में अद्भुत है। पूरा समाज वर्षों से इन देव पुरुषों का ऋणी है। सनातन धर्म को जागरूक होकर यह समझने की आवश्यकता है कि यदि आज यह बिखराव शांत न हुआ तो भविष्य में इसके धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे। हमें समाज के इन पवित्र जनों का आदर करना चाहिए।

    सनातन धर्म के प्रति सजग व संवेदनशील व्यक्तियों, संगठनों को इस बात को समझना होगा हिंदू धर्म में दलितों को उनका सम्मान यदि न लौटाया गया तो इसके विनाशकारी परिणाम देखने को मिलेंगे। बार-बार ऐसी घटनाएं सनातन धर्म को शर्मसार कर रही है। भदेसर क्षेत्र की घटना के अगले ही दिन 29 नवम्बर 2021 को मावली (उदयपुर) क्षेत्र के सालेरा खुर्द गांव में भी ऐसी ही घटना ने व्यथित कर दिया। हालांकि, इन घटनाओं में देश का कानून अपना काम कर रहा है, लेकिन ऐसी घटनाएं समाज पर कोढ़़ हैं, इन्हें तुरंत निस्तारित करने की आवश्यकता है।

    जागरूकता अभियान सामाजिक स्तर पर चलाया जाए, सामाजिक सम्मेलन किए जाएं और एक-दूसरे को सम्मान व स्नेह देने की परंपरा का विकास किया जाएगा तो ही सनातन धर्म सशक्त किया जा सकेगा। सामाजिक समरसता के लिए समर्पित रूप से कार्य कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व ऐसे ही अन्य संगठनों को इस ओर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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