• img-fluid

    मुलायम सिंह के मायने

  • October 11, 2022

    – प्रभात झा

    निर्माण और निर्माता की भूमिका अलग रहती है। भारत ने सदैव उसे सम्मान दिया है जिसने किसी भी कार्य के निर्माण में अपनी देह गलाई है । डॉ. राम मनोहर लोहिया और नेताजी राजनारायण के बाद समाजवादियों में यदि किसी को नेताजी कहा गया है तो उनका नाम मुलायम सिंह यादव है । लोकतंत्र में भाग्य, भविष्य और भगवान जिसके साथ होता है, उसे कर्म की प्रेरणा और मेहनत करने की शक्ति स्वतः मिल जाती है। मुलायम सिंह यादव भले ही डॉ. लोहिया द्वारा निर्मित किये गए हों लेकिन उत्तर प्रदेश का जर्रा-जर्रा गवाह है कि उत्तर प्रदेश में ही नहीं, भारतीय राजनीति में उन्होंने अपना एक अलग मुकाम बनाया है। उन्होंने अपनी पहचान मिटने नहीं दी। समाजवाद की चादर को छोड़ा नहीं । कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से मुक्त करने की शुरुआत जिसने की, उस सख्सियत का नाम है मुलायम सिंह यादव। वे अखंड प्रवासी थे। जब तक उनका स्वास्थ्य खराब नहीं हुआ वे सहज, सरल, सुलभ रहे। वे कार्यकर्ताओं के कार्यकर्ता थे।

    जब लोग आज की राजनीति में ‘मसल्स, मनी और मैन पावर’ की की बात करते हैं, ऐसे में उन्होंने साइकिल से घूम-घूम कर, पहलवानी कर शिक्षा ग्रहण की। गरीबी की यह हालत थी की जब उन्हें नदी पार करके स्कूल जाना पड़ता था तो वे एक प्लास्टिक के थैले में धोती-कुर्ता रखकर तैरकर नदी के उस पार जाते थे और कपड़ा पहनते थे। आज यह बात सत्य है कि गरीबों के लिए राजनीति में काम करना कठिन है, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने समय में सिद्ध किया कि गरीबी अभिशाप नहीं, वरदान भी होती है। वे जुनूनी थे। जिस काम को ठानते थे, पूरा करते थे। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव इसी से आंका जा सकता है कि बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन और अमीरों में अमीर अनिल अंबानी भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर समाजवादी पार्टी के नजदीक आए।

    मैं ‘स्वदेश’ समाचार में था। उस समय राम जन्मभूमि आंदोलन की रिपोर्टिंग करने अक्सर अयोध्या जाया करता था। जब उन्होंने बयान दिया था कि ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता’ और वहां कार सेवकों की ह्त्या भी हुई थी और लोग ढांचे पर चढ़ गए थे। तब ग्वालियर लौटते समय लखनऊ में उनका साक्षात्कार किया था और मैंने उनसे यही सवाल किया था, ”आपने कहा था परिंदा पर नहीं मार सकता, फिर यह सब क्या हुआ?” उन्होंने तपाक से उत्तर दिया, ”मुख्यमंत्री रहते मेरा यही कहना जायज था।” एक दूसरी घटना है- मैं जब राज्य सभा में था तो प्रखर समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र भी राज्य सभा में थे। वे एक ग्रामीण परिवेश की हिंदी और प्रांजलि हिंदी में बहुत अच्छा बोलते थे। मुझे भी इसीलिए मानते थे कि मैं छोटी उम्र में राज्य सभा में पहुंचा था और जब मैं सदन में विषयों पर बोलता था तो वे मुझे शाबाशी देते थे।

    अचानक जनेश्वर मिश्रा का निधन हुआ। दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। उस समय भारतीय जनता पार्टी की महामंत्री सुषमा स्वराज, जो राज्य सभा में हमारी नेता भी थीं, उनको श्रद्धांजलि सभा में जाना था। लेकिन उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय सचिव होने के नाते मुझे कहा कि पार्टी की ओर से तुम चले जाओ। मैं गया और जब श्रद्धांजलि सभा में दस मिनट जनेश्वर मिश्र के बारे में श्रद्धांजलि दी तो मुलायम सिंह ने कुर्सी के पीछे मुझे बुलाया और पूछा कि ‘तुम बिहार के हो’ तो मैंने कहा कि ‘बिहार का हूं लेकिन वर्षों से मध्य प्रदेश में रहता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘तुमने बहुत अच्छी श्रद्धांजलि दी है। तुम मेरे घर आकर मिलो।’ मैं अचंभित था। इतने बड़े नेता का आग्रह मैं टाल नहीं सकता था। मैं समय लेकर मिला। उन्होंने देखते कहा ‘आओ प्रभात बैठो।’ फिर उन्होंने मेरे जीवन के बारे में पूछा -जन्म, पढ़ाई, मध्य प्रदेश। मैंने सारी जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने जो कहा, उसने मुझे चौंका दिया। उन्होंने कहा, ‘समाजवादी विचारधारा का अध्ययन किया है।’ तो मैंने उनसे कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया की आत्मकथा पढ़ी है। उनकी दो किताबें पढ़ीं हैं। इस पर उन्होंने कहा कि ‘तुम समाजवाद से प्रभावित नहीं हुए।’ इसपर मैंने उनसे कहा कि ‘मैं संघ का बाल स्वयंसेवक हूं। विचारधारा धर्म की तरह धारण की जाती है, कपड़े की तरह बदली नहीं जाती।’ उन्होंने पीठ ठोकी और कहा, ‘जहां भी रहो, मेहनत से काम करो। मेहनत सबसे बड़ी पूंजी है।’ दूसरी लाइन उनकी थी ‘अमीरों से दूर रहना, गरीबों के करीब रहना।’ उनके इस वाक्य में मेरी मूल धारणा को और मजबूती प्रदान की।

    मुलायम सिंह कार्यकर्ताओं से घिरे थे, एक-एक को नाम लेकर पुकारते थे। कौन किस जनपद से आया है यहां तक जानते थे। वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे और एक बार देश के रक्षा मंत्री रहे, उसके बाद भी उनकी सारी योजनाएं गरीबों के लिए बनती रहीं। उनके संबंध किसी से खराब नहीं थे। वे सच में यानी सभी समाज के थे। लखनऊ से जब अटल बिहारी वाजपेयी सांसद थे, तो मुलायम सिंह उनसे मिलने ललखनऊ सर्किट हाउस आते थे। वे सभी को सम्मान देते थे। उनकी मित्रता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विचारधारा से उनके घोर विरोधी रहे कल्याण सिंह भी एक समय समाजवादी पार्टी में उनके सहयोगी हो गए थे। एक बार संसद के सेंट्रल हॉल में उनके पास बैठा उनसे चर्चा कर रहा था। वहां रामगोपाल यादव सहित अनेक नेता बैठे थे। मैंने कहा मैं अब पत्रकार नहीं फिर भी मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है, उन्होंने कहा, पूछो, पूछो। मैंने पूछा, ‘भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक सबसे अच्छे नेता कौन लगे।” उन्होंने सबके सामने कहा ‘नानाजी देशमुख।’ उसके आगे उन्होंने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश में सरस्वती शिशु मंदिर और बाद में जनसंघ के दिए को अगर किसी ने अखंड प्रवास से प्रज्वलित किया तो वे नानाजी देशमुख थे।’

    मुलायम सिंह जी ने एक रोचक घटना बताई। उन्होंने कहा, ‘मेरा संबंध इतना निकट का था कि चित्रकूट में उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान बनाया था। समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी थी। मैंने निःसंकोच उन्हें फोन लगाया और कहा कि मैं दीनदयाल शोध संस्थान परिसर में आपके सहयोग से समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी करना चाहता हूं।’ नानाजी राजनीति से संन्यास ले चुके थे। उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘मुलायम सिंह जी,आप आइये। आपका सहर्ष स्वागत है, मेरे आप मेहमान रहेंगे।’ उन्होंने दूसरी घटना बताई कि नानाजी देशमुख ऐसे व्यक्तित्व थे, जो लाल बहादुर शास्त्री जब देश के प्रधानमंत्री थे, तब उनसे कोई सीधे जाकर मुलाकात कर सकता था तो उस व्यक्ति का नाम नानाजी देशमुख था।

    ये रोचक घटनाएं इसलिए लिख रहा हूं कि इन घटनाओं से मुलायम सिंह की राजनीतिक और सामाजिक उदारता के साथ-साथ सभी दलों में उनके कितने अच्छे संबंध थे, यह उजागर करता है। उनकी बेबाकी, स्पष्टता और दूरदर्शिता का अनुपम उदाहरण संसद में उस समय मिला, जब वे यह बात कहने में नहीं चूके कि ‘2019 में फिर से मोदी आएंगे।’ अपने विरोधी के बारे में यह कहने का उनमें अदम्य साहस था।

    मुलायम सिंह को इटावा से लगाव था। इटावा के सैफई में उनकी जान बसती थी। आज उसी सैफई में उनका अंतिम संस्कार हुआ है। उनका पार्थिव शरीर जरूर अग्नि को समर्पित हुआ है, लकिन आज वे यहां सीख देकर गए हैं कि संवेदनशीलता, सहनशीलता, संवेदना और संवाद से दूर रहकर और कार्यकर्ताओं को भूलकर राजनीति नहीं की जा सकती।

    (लेखक पूर्व सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

    Share:

    रूस ने जुकरबर्ग की कंपनी Meta को घोषित किया आतंकी संगठन

    Tue Oct 11 , 2022
    नई दिल्ली: रूस (Russia) ने यूएस की टेक दिग्गज और मार्क जुकरबर्ग की कंपनी मेटा (US company Meta) के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए इसे आतंकवादी और चरमपंथी संगठन (terrorist and extremist organizations) की सूची में शामिल किया है. मेटा, फेसबुक की पैरेंट कंपनी (Facebook’s parent company) है. फेडरल सर्विस फॉर फाइनेंशियल मॉनिटरिंग (रोसफिनमोनिटरिंग) के […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    गुरुवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved