नई दिल्ली। अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) ने ऐसी दहशत फैला दी है कि लोग खौफजदा हैं और इंसानियत लगातार शर्मसार हो रही है. हिंसक कार्रवाई (violent action) कर रहा तालिबान (Taliban) अफगानिस्तान (Afghanistan) के कई इलाकों पर अपना कब्जा जमा चुका है. अफगान आर्मी (afghan army) कई मोर्चों पर फेल हो रही है और सरकार भी ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही है. लेकिन इस बीच एक महिला ने तालिबान (Taliban) को सीधी टक्कर दी है. उसने अपने दम पर तालिबानियों के मन में भी दहशत पैदा कर दी है.
अफगानिस्तान की इस क्रांतिकारी महिला का नाम सलीमा मज़ारी (Salima Mazari) है जो चारकिंट ज़िले की लेडी गर्वनर हैं. जिस समय अफगानिस्तान में महिलाओं के हक को लेकर लड़ाई चल रही है, तब सलीमा अपने दम पर अपने इलाके के लोगों की ढाल बन गई हैं. उन्होंने अपनी खुद की एक ऐसी फौज खड़ी कर ली है कि तालिबान भी उन पर हमला करने से पहले हजार बार सोच रहा है.
सलीमा ने अपनी फौज में 600 लोगों को शामिल कर लिया है. घूम-घूम कर अपने इलाक़े में लोगों से अपनी फ़ौज में शामिल होने की अपील करने वाली सलीमा सभी को वास्ता देती हैं कि आतंक राज से खुद को और अपने मुल्क को बचाना जरूरी है. उनकी ये अपील ऐसी रहती है कि लोग सबकुछ छोड़कर उनके पीछे लग जाते हैं और सब साथ मिलकर तालिबान और उसकी हिंसक सोच से मिलकर लड़ते हैं.
कौन हैं सलीमा मजारी?
बता दें कि अफ़गान मूल की सलीमा का जन्म 1980 में एक रिफ्यूजी के तौर पर ईरान में हुआ. वो ईरान में ही पली बढ़ीं और तेहरान की यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की. अपने पति और बच्चों के साथ सलीमा ईरान में ही सेट्ल हो सकती थीं, लेकिन सलीमा ने ग़ैर मुल्क में अपनी आगे की ज़िंदगी गुज़ारने की जगह अफ़गानिस्तान में आकर काम करने का फ़ैसला किया. वो यहां बल्ख सूबे के चारकिंट की गवर्नर भी चुनी गईं.
अब सलीमा लंबे समय से तालिबान के खिलाड़ लड़ रही हैं लेकिन उनकी असल जंग अब शुरु हुई है. जब से अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना का जाना शुरु हुआ है, सलीमा को इस बात का अहसास है कि तालिबान फिर मजबूत हो रहा है. ऐसे में उन्होंने घुटने टेकने के बजाय लड़ने का फैसला कर लिया है.
तालिबान क्यों मानता है सलीमा को दुश्मन?
यहां पर ये भी जानना जरूरी है कि सलीमा के खिलाफ तालिबान का गुस्सा सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने उसके खिलाफ जंग छेड़ दी है, बल्कि ये विवाद तो काफी पुराना है. दरअसल सलीमा हजारा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और इस समुदाय के ज्यादातर लोग शिया बिरादरी से आते हैं, ऐसे में तालिबानियों का इनके साथ हमेशा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. अब क्योंकि शियाओं के बहुत से रीति रिवाज तालिबान आतंकियों से मेल नहीं खाते. ऐसे में तालिबान शियाओं को भी विधर्मियों के तौर पर देखता है. यही वजह है कि ये जंग लगातार बढ़ती जा रही है और सलीमा मजारी को भी अपने वजूद का खतरा है.
सलीमा ने छेड़ी आर-पार की जंग
अभी पिछले साल ही सलीमा ने करीब सौ तालिबानी आतंकियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था. ऐसे में उनके हौंसले तो बुलंद है लेकिन अब तालिबान भी मजबूत होकर वापसी कर रहा है. मतलब ये जंग जोरदार होने वाली है जहां पर एक तरफ अगर अफगान के हक के लिए एक महिला जान की बाजी लगाने को तैयार है तो वहीं दूसरी तरफ तालिबान भी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए फिर सत्ता में आने का रास्ता खोज रहा है.
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