- षड्दर्शन साधु समाज ने कहा मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी केवल अधिकारी भोपाल से आकर लीपापोती कर रहे
उज्जैन। शिप्रा नदी की लगातार हो रही अनदेखी और पूर्व में बनी करोड़ों की कान्ह डायवर्शन योजना फेल होने तथा इसके कारण शिप्रा में लगातार प्रदूषण बढऩे से संत नाराज हैं। उनका कहना है कि नई योजना के जरिये कान्ह नदी के पानी को शिप्रा से पूरी तरह डायवर्ट किया जाए ताकि अगले सिंहस्थ में श्रद्धालु शिप्रा के शुद्ध जल से स्नान कर सकें।
शिप्रा नदी की दुर्दशा और मध्यप्रदेश शासन के अधिकारियों के रवैये को लेकर उज्जैन के साधु-संतो में गहरा रोष है। संतो की ओर से प्रदेश सरकार से मांग की गई है कि शिप्रा नदी के जल को शुद्ध व आचमन योग्य करने की दिशा में शीघ्रता से कार्य आरंभ किया जाए। सिंहस्थ से पूर्व संपूर्ण धार्मिक क्षेत्र में सभी घाटों पर शिप्रा नदी में स्नान व आचमन योग्य जल हो, इस मतंव्य को राज्य शासन को गंभीरता से लेना होगा। रामादल अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत डा. रामेश्वरदास महाराज ने बताया कि शिप्रा नदी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए उज्जैन के षड्दर्शन साधु समाज में गहरा रोष है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अधिकारियों को निर्देशित कर चुके हैं कि वे शिप्रा नदी के जल की स्थिति बदलने और शिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने, नदी में दूषित जल के विलय को रोकने के लिए जो भी कार्ययोजना बनाए, उससे पूर्व स्थानीय साधु-संतों से रायशुमारी जरूर करे। इसके ठीक विपरीत भोपाल से अधिकारियों का दल आता है, शिप्रा नदी को लेकर कागजी कार्ययोजनाएं बनती है और बिना साधु-संतों की राय लिए ही अधिकारी वापस भोपाल लौट जाते हैं, यह रवैया ठीक नहीं है। आपने बताया कि देवास में नागदमन नदी के जरिए शिप्रा नदी में देवास की फैक्ट्रियों का दूषित जल अनवरत मिल रहा है। ठीक इसी तरह करोड़ो रूपए खर्च करने के बावजूद आज तक इंदौर से कान्ह नदी के जरिए आने वाले दूषित जल को शिप्रा नदी में मिलने से रोका नहीं जा सका है। अब अधिकारी नई बात कह रहे है। कहा जा रहा है कि इंदौर से आने वाले दूषित जल को ट्रीटमेंट कर नदी में छोड़ा जाएगा। महंत डा. रामेश्वरदास जी ने बताया कि उज्जैन के समस्त संतो की राय है कि मल-मूत्र युक्त जल को यदि ट्रीटमेंट भी कर लिया जाता है तब भी क्या उससे आचमन किया जा सकता है। मध्यप्रदेश सरकार और मध्यप्रदेश शासन के अधिकारियों को चाहिए कि वे शिप्रा नदी को लेकर ऐसी कार्ययोजना तैयार करें, जिससे कि शिप्रा का जल स्नान व आचमन योग्य हो सके।