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सुरक्षित है रूस की कोरोना वैक्सीन, टेस्ट में बनते नजर आए एंटीबॉडी

September 05, 2020

रूस की कोविड-19 वैक्सीन ‘स्पुतनिक V’ के कम संख्या में मानवों पर किए गए ट्रायल में कोई गंभीर नुकसान पहुंचाने वाला परिणाम सामने नहीं आया है. साथ ही जिन लोगों पर ट्रायल किया गया उन सभी लोगों में ‘एंटीबॉडी’ भी विकसित होती देखी गई हैं. ये दावा शुक्रवार को द लांसेट जर्नल प्रकाशित एक अध्ययन में किया गया है. रूस ने पिछले महीने ही इस वैक्सीन को मंजूरी दी थी.

सुरक्षा के लिहाज से अच्छी है वैक्सीन

वैक्सीन के शुरूआती चरण का यह ट्रायल कुल 76 लोगों पर किया गया था और 42 दिनों में वैक्सीन सुरक्षा के लिहाज से अच्छी नजर आई. इस दौरान ट्रायल में शामिल सभी लोगों में 21 दिनों के अंदर एंटीबॉडी भी विकसित हो गई थीं. अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक ट्रायल के दूसरे फेज के नतीजों से यह पता चलता है कि इस वैक्सीन ने शरीर में 28 दिनों के अंदर टी-सेल भी बनाए.

इस दो हिस्से वाली वैक्सीन में रीकोम्बीनेंट ह्यूमन एडेनोवायरस टाइप 26 (RAD26-S) और रीकोम्बीनेंट ह्यूमन एडेनोवायरस टाइप 5 (RAD5-S) शामिल हैं. अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि एडेनोवायरस के चलते आमतौर पर जुकाम होता है. वैक्सीन में इसे भी कमजोर कर दिया गया है ताकि वो मनुष्य को नुकसान न पहुंचा सकें.

वैक्सीन का मकसद एंटीबॉडी और टी-सेल पैदा करना

इस वैक्सीन का मकसद एंटीबॉडी और टी-सेल विकसित करना है, ताकि वे उस वक्त वायरस पर हमला कर सकें जब यह शरीर में घूम रहा हो और साथ ही SARS-COV-2 से संक्रमित हुए सेल पर भी हमला कर सके. रूस स्थित महामारी एवं सूक्ष्म जीवविज्ञान गामेलिया राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के वैज्ञाानिक और स्टडी के प्रमुख लेखक डेनिस लोगुनोव ने कहा, ‘जब एंटीवायरस वैक्सीन शरीर में जाती है तो वह SARS-COV-2 को खत्म करने वाले हमलावर प्रोटीन पैदा करती है.’

उन्होंने कहा, ‘इससे इम्यून सिस्टम को SARS-COV-2 की पहचान करने और उस पर हमला करने के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी. SARS-COV-2 के खिलाफ काफी मजबूत इम्यून सिस्टम विकसित करने के लिए यह जरूरी है कि वैक्सीन की अतिरिक्त खुराक मुहैया की जाए.’ ये ट्रायल रूस के दो अस्पतालों में किए गए. परीक्षणों में 18 से 60 साल की आयु के स्वस्थ व्यक्तियों को शामिल किया गया था.

नतीजे उत्साहजनक, लेकिन छोटे पैमाने पर

ट्रायल के नतीजों पर टिप्पणी करते हुए अमेरिका के जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के नोर बार-जीव ने कहा कि ट्रायल के नतीजे उत्साहजनक हैं लेकिन ये छोटे पैमाने पर किए गए हैं. स्टडी के लेखकों ने कहा है कि अलग-अलग आबादी के समूहों में वैक्सीन की कारगरता का पता लगाने के लिए और अधिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है.

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