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    रूस अपनी कोरोना वायरस रोकने की तकनीक को अन्‍य देशों की बीच बांटेगा

  • July 19, 2020


    मास्को । पश्चिमी देशों की तुलना में ज्यादा असरदार कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा करने वाली रूस की गेमालेया इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी ने अपनी तकनीक साझा करने की पेशकश की है। इस बयान को ब्रिटेन के आरोपों के संदर्भ में देखा जा रहा है। गुरुवार को यूके नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर ने कहा था कि रूसी हैकर्स ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा की लैब से कोरोना वैक्सीन की तकनीक चुराने की कोशिश कर रहे हैं। रूस ने इसे बकवास बताया था।

    गेमालेया के प्रमुख एलेक्जेंडर जिंसबर्ग ने कहा, ‘रूसी तकनीक दुर्लभ है। इसका पेटेंट कराया गया है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह पश्चिमी देशों की तुलना में ज्यादा प्रभावी है। दुनिया हमारी इम्यूनाइजेशन स्कीम की कद्र करेगी, हमसे उधार लेगी।’ उन्होंने यह भी कहा कि वे वैक्सीन संबंधी डाटा को पश्चिम के साथियों के साथ साझा करने के इच्छुक हैं। यह वह तकनीक है, जिसे रूस 25 साल से कई कोरोना वायरस के लिए डेवलप कर रहा है। बता दें कि गेमालेया वैक्सीन का रूस के दो संस्थानों में पहले से ही क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गामालिया के अलावा दुनिया की 22 अन्य संस्थाओं को अपनी निगरानी सूची में रखा है, जिन्हें क्लीनिकल ट्रायल के सभी तीन चरण पूरा करने के बाद बड़े पैमाने पर उत्पादन की अनुमति दी जा सकती है। इस बीच रूसी दवा कंपनी आर फार्म ने ब्रिटिश कोरोना वैक्‍सीन बनाने का सौदा किया है। सौदे के मुताबिक, ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्‍सीन रूस में आर-फार्म बनाएगी। कंपनी ने आस्‍ट्राजेनेका से इसका करार किया है। यह डील ऐसे वक्‍त में हुई है जब ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा ने रूसी हैकर्स पर वैक्‍सीन ट्रायल का डेटा चुराने का आरोप लगाया है।

    इस बीच लंदन के इंपीरियल कॉलेज की वैक्‍सीन भी इंसानों पर ट्रायल के दूसरे दौर में पहुंच गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले चरण में वैक्सीन ने अच्छा प्रभाव दिखाया है। यही नहीं अभी तक कोई साइड इफेक्‍ट भी देखने को नहीं मिला है। ट्रायल के दूसरे फेज में 105 लोगों को वैक्सीन की खुराक दी जाएगी। वहीं यूएई में कोरोना की इनऐक्टिवेटेड वैक्‍सीन का फेज-3 ट्रायल शुरू हो गया है। चीनी कंपनी का दावा है कि 28 दिन के अंदर दो बार इस वैक्‍सीन की डोज देने पर 100 फीसदी लोगों में ऐंटीबॉडीज विकसित हुए।

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