नई दिल्ली। यूक्रेन से जारी संघर्ष (conflict with Ukraine) के बीच रूस (Russia) ने लगातार तीखे तेवर दिखाए जिसकी वजह से अमेरिका (America) सहित कई यूरोपीय देशों (European countries) ने ताबड़तोड़ प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया था। इस बीच अब रूस कूटनीतिक तौर पर फिर से सक्रिय नजर आ रहा है। इसकी बानगी हाल ही में तब देखने को मिली है जब रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Foreign Minister Sergei Lavrov) लगातार कई देशों के संग बैठके कर रहे हैं। हालांकि इन मुलाकातों में एक दूसरे के हित जुड़े हुए हैं लेकिन इनको एक नए नजरिए से देखने और समझने की जरूरत है।
दरअसल, रूस पर भले ही अमेरिका और कई यूरोपीय देश तमाम प्रतिबंध लगा चुके हैं लेकिन ओपेक प्लस एक ऐसा समूह है जिसके जरिए रूस ने तेल की कूटनीति एक बार फिर से शुरू कर दी है और इसमें सऊदी अरब उनका साथ खुलकर दे रहा है। रूसी तेल पर यूरोपीय संघ भी जल्द ही पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने वाला है लेकिन इन सबके बाद भी सऊदी रूस से अपनी साझेदारी जारी रखेगा। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअजीज बिन सलमान ने कहा है कि सऊदी अरब ओपेक प्लस से एक समझौता करने वाला है।
इसी कड़ी में रियाद में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायेद अल नाहयान से भी मुलाकात की है। रूस के विदेश मंत्रालय ने इस मुलाकात पर कहा है कि दोनों नेता ओपेक प्लस देशों के समूह के बीच सहयोग के स्तर को लेकर खुश हैं। उधर रूस के विदेश की मंत्री बहरीन, सऊदी अरब और तुर्की की यात्रा इसी मुद्दे के एजेंडे को लेकर है।
ओपेक प्लस 24 तेल उत्पादक देशों का एक समूह है, जो 14 ओपेक सदस्यों और रूस सहित 10 गैर-ओपेक देशों से बना है। ओपेक प्लस को 2017 में तेल उत्पादन में बेहतर समन्वय और वैश्विक कीमतों को स्थिर करने के प्रयास में बनाया गया था। ओपेक प्लस के जरिए रूस अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश में है। यहां तक कि सऊदी अरब ने लगभग स्पष्ट कर दिया है कि वो रूस या उसके तेल निर्यात को अलग-थलग करने के पश्चिम के प्रयास में साथ नहीं देगा।
हालांकि इससे पहले अभी तक ओपेक के ही कुछ सदस्य रूस का बायकाट करने की योजना में थे लेकिन फिलहाल अब ऐसा नहीं लग रहा है क्योंकि इस मामले में रूस ने कूटनीति भी अपनाई और जरूरत पड़ने पर तल्ख तेवर भी दिखाए हैं। यहां तक कि हाल ही में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यह भी कह दिया था कि पश्चिमी देशों के अलावा रूस के पास अपने ऊर्जा संसाधनों के लिए पर्याप्त खरीदार हैं। हमारे पास अपने ऊर्जा संसाधनों के पर्याप्त खरीदार हैं और हम उनके साथ काम करेंगे।
एक तथ्य यह भी है कि तेल उत्पादन बढ़ाने को लेकर ओपेक पर पश्चिमी देशों के अनुरोध को इसलिए अनसुना नहीं किया जा रहा है कि इसके पीछे कोई कूटनीतिक अनिच्छा है, क्योंकि तेल और गैस उद्यमों में कम निवेश के चलते उच्च वृद्धि को लागू करने में इस समूह की वास्तविक अक्षमता है। इस समूह ने घटती अतिरिक्त क्षमता वाले ओपेक प्लस के सदस्य देशों (सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अपवाद के साथ) को उनके हाल पर छोड़ दिया है।
एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ओपेक प्लस देशों ने पश्चिमी देशों की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें तेल की बढ़ती कीमतों को कम करने के लिए तेजी से उत्पादन बढ़ाने की सलाह दी गई थी। तेल उत्पादन के मामले में ओपेक प्लस अपनी उस पुरानी योजना पर कायम है जिस पर पिछले साल दो जून को हुई बैठक में सहमति बनी थी। वियना में ओपेक प्लस देशों की बैठक होनी है जिसमें माना जा रहा है कि ये देश पिछले साल के समझौते पर कायम रहेंगे।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस की यह तैयारी अमेरिका के लिए एक झटका साबित हो सकती है क्योंकि अमेरिका लगातार पश्चिमी देशों पर रूसी प्रतिबंध के लिए दबाव बना रहा है। हालांकि कई प्रतिबंधों के कारण रूस की अधिक तेल उत्पादन की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन अब रूस इस मामले में योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved