नई दिल्ली। यूक्रेन पर हमले (Attack on Ukraine) के बाद पश्चिमी देशों के राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रूस (Russia) ने अब अपनी स्ट्रेटजी में बदलावा किया है। तालिबानी (Taliban) राजनयिक साख को स्वीकार करने वाला रूस पहला शक्तिशाली राष्ट्र बन गया है। रूस(Russia) का यह कदम अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) का शासन लागू होने से पहले बेआबरू होकर निकले अमेरिका के लिए जवाब के तौर पर देखा जा रहा है।
रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने गुरुवार को कहा कि मास्को ने तालिबान की ओर से नियुक्त किए गए पहले राजनयिक को मान्यता दे दी है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई ने कहा है कि तालिबान के द्विपक्षीय राजनीतिक संबंध को मास्को ने स्वीकार लिया है। हम आगे अफगानिस्ता के साथ डिप्लोमेटिक संबंध रखने के लिए तैयार हैं। अफगानिस्तान की मीडिया एजेंसी खामा प्रेस के हवाले कहा गया है कि मास्को ने हमारे साथ द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की बात कही है।
अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को रूस ने मान्यता देने बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील भी की। रूस ने कहा कि काबुल की मौजूदा सरकार को सक्रिय सहयोग देने की आवश्यकता है। रूस की सरकारी समाचार एजेंसी इतरतास के अनुसार रूस पहला ऐसा देश बन गया है जिसने अफगानिस्तान को मान्यता दी है। वहीं रूस के विदेश मंत्रालय की ओर जारी बयान में कहा गया है कि पिछले माह मास्को में तैनात हुए तालिबानी सरकार के पहले राजदूत को रूस की सरकार की ओर मान्यता दी गई है। रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने यह जानकारी अपने सहयोगी देशों चीन, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्केमेनिस्तान के साथ साझा की है। समाचार एजेंसी स्पूतनिक ने अपनी रिपोर्ट बताया कि रूसी विदेश मंत्री ने कहा है ‘हम मध्य एशिया में अमेरिका और नाटो के किसी भी तरह की सैन्य तैनाती को स्वीकार नहीं करते हैं। अमेरिका अफगानिस्तान के नागरिकों और शरणार्थियों के भविष्य की जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका का आईएमफ और विश्व बैंक जैसे संस्थानों में प्रभाव है, और इसी प्रभाव के माध्यम से वह अफगानिस्तान में हो रहे सामाजिक कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न करने की कोशिश कर रहा है।’