मॉस्को (Moscow)। यूक्रेन में जारी युद्ध (Ukraine war) में रूस (Russia) ने नौकरी का लालच देकर भारतीय श्रमिकों (Indian workers) को जंग लड़ने के लिए मजबूर किया। हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इन भारतीयों (Indian) को रूसी कंपनियों (Russian companies) ने 2022 में ‘हेल्पर’ के तौर रखा था। इनमें से ज्यादातर लोग यूपी (UP), गुजरात (Gujarat), पंजाब (Punjab) व जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) के हैं। कुछ अपनी जान बचाकर भाग गए और बाकी फंसे हुए लोगों ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम तीन भारतीयों को रूस-यूक्रेन सीमा पर लड़ाई के लिए मजबूर किया गया। पीड़ितों के मुताबिक, भारत में एक एजेंट ने उन्हें धोखे से सेना में रसोई सहायक के तौर पर रूस भेजा और एक माह में उनके पासपोर्ट छीन लिए। रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2023 से 18 भारतीय नागरिक रूस-यूक्रेन सीमा पर फंसे हैं। युद्ध में एक भारतीय की मौत भी हो गई।
कमांडर ने बंदूक की नोंक पर धमकाया, गोली भी मारी
एक श्रमिक ने बताया, जैसे ही मौका मिला, मैंने हथियार फेंक दिए और भागने लगा। लेकिन बाद में पकड़ा गया। सेना के एक कमांडर ने मुझे बंदूक की नोंक पर धमकाया। उन्होंने मुझसे एक इमारत से दूसरी इमारत तक कुछ सामान पहुंचाने के लिए कहा। हमें गोलियों का सामना करना पड़ता। हमारे साथ जा रहा एक स्थानीय नागरिक भी मारा गया।
प्रति माह 1.95 लाख रुपये वेतन और बोनस का वादा
पीड़ित ने कहा, मॉस्को पहुंचने के बाद उसे और उसके साथियों से एक अनुबंध पर हस्ताक्षर कराए गए। इसके मुताबिक, हमें युद्ध में नहीं भेजा जाना था। प्रति माह 1.95 लाख रुपये वेतन और 50,000 अतिरिक्त बोनस का वादा भी किया गया था। लेकिन निर्धारित पैसा नहीं मिला।
फंसे हुए भारतीय नागरिकों में एक हैदराबाद का रहने वाला
पीड़ितों में से एक हैदराबाद के रहने वाले परिवार ने सांसद असदुद्दीन ओवैसी से भी संपर्क किया। इस बाबत ओवैसी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और मॉस्को में भारतीय दूतावास को पत्र लिखकर उसकी वापसी के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
12 नवंबर को पहुंचे अगले ही दिन श्रमिकों को थमाईं बंदूकें
रूस में फंसे यूपी के 20 वर्षीय एक श्रमिक ने बताया कि 12 नवंबर को रूस पहुंचने के बाद उन्हें दो भारतीय एजेंट अपने साथ ले गए। अगले ही दिन हमें एक कैंप में भर्ती कर मॉस्को से ढाई घंटे के सफर पर एक सुनसान जगह ले जाया गया। यहां हमें टेंट में रखा गया और हाथों में बंदूकें थमा दी गई। जबरन हथियार चलाने का प्रशिक्षण देकर 4 जनवरी को दोनेस्क में जंग के लिए भेजा गया।
22 जनवरी को मिला मौका
श्रमिक ने बताया, आखिरकार मैं 22 जनवरी को भागने में कामयाब रहा। मुझे गोली लगी थी और इलाज के लिए एक अस्पताल में भर्ती हुआ। मैं कई दिनों तक बगैर फोन के रहा। युद्ध के मैदान से भागने के बाद मैंने कई बार अपने घरवालों से बात करने की कोशिश की। मेरे पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं थे और न ही पैसे थे। उसने कहा, सरकार भी हमारी मदद नहीं कर रही है।
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