इंदौर। जनता के पैसों की बर्बादी नगर निगम के साथ प्राधिकरण में भी कम नहीं होती है, जिसका उदाहरण रीजनल पार्क भी है, जिसे 55 करोड़ रुपए की राशि खर्च कर आज से 17 साल पहले प्राधिकरण ने सजाया-संवारा और फिर 2011 में इसे निगम के सुपुर्द किया और इसकी बर्बादी शुरू हो गई। वर्तमान में यह खूबसूरत और लगभग 40 एकड़ में फैला रीजनल पार्क चौपट पड़ा है और अब निगम 27 साल के ठेके पर देने के लिए प्रयासरत है और चौथी बार इसका टेंडर बुलाया है। मगर कोई भी ठेकेदार कम्पनी लेने को तैयार नहीं है। 10 एकड़ जमीन पर एम्यूजमेंट पार्क भी बनाया जाना है, उसके भी सपने सालों से दिखाए जा रहे हैं।
अरबों रुपए की जमीन पर योजना 54 में इंदौर विकास प्राधिकरण ने मेघदूत उपवन बनाया, जिसे नगर निगम को सौंपा और उस पर निगम ने भी करोड़ों रुपए खर्च कर दिए और इसके संचालन के ठेके का मामला लोकायुक्त में भी गया और महापौर परिषद् के दो सदस्यों को सजा तक हुई। इसी तरह रीजनल पार्क को भी नगर निगम ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया अन्यथा इंदौर के इस खूबसूरत पार्क पर प्राधिकरण ने 2007 में काम शुरू कर लगभग 55 करोड़ रुपए खर्च किए थे, जिसमें म्यूजिकल फव्वारे से लेकर बढिय़ा फूड कोर्ट भी बनाया और मिनी क्रूज चलाने सहित कई योजनाएं भी बनाई गई।
मगर फूड कोर्ट भी सालों बाद शुरू नहीं हो सका और धीरे-धीरे फव्वारे सहित अन्य जो सुविधाएं जुटाई थीं वह भी बर्बाद होने लगी। हालांकि नगर निगम 25 रुपए प्रति रुपए शुल्क प्रवेश की राशि वसूलता है और उसे ठेके पर देने के टेंडर भी बार-बार बुलवा रहा है। पहले जो टेंडर बुलवाए थे उसमें 1.33 करोड़ रुपए का रेट निगम को मिला, जिसे उसने नामंजूर कर दिया और तीसरी बार बुलाए टेंडर में भी कोई ठेकेदार नहीं आया। अब पिछले दिनों चौथी बार निगम ने इसके टेंडर जारी किए, जिसमें 10 एकड़ में एम्यूजमेंट पार्क बनाने और 11 एकड़ में अन्य गतिविधियों को संचालित करने के साथ ही 27 साल का ठेका देने का प्रस्ताव रखा है। 3 जनवरी को ये ऑनलाइन टेंडर खुलना है और इस बार निगम का दावा है कि कोई न कोई उपयुक्त ठेकेदार फर्म मिल जाएगी। अब देखना यह है कि चौथी बार में भी निगम ठेके पर देने में सफल होता है या नहीं।
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