इंदौर। मेडिकल कॉलेज स्थित सरकारी लैब की क्षमता रोजाना दो हजार से अधिक आरटीपीसीआर टेस्ट करने की है, लेकिन बीते महीनों के रिकॉर्ड अगर देखे जाएं, तो किसी भी एक महीने में क्षमता के मुताबिक जांच नहीं की गई। यहां तक कि दिसम्बर के महीने में तो 20 फीसदी ही आरटीपीसीआर टेस्ट लैब में हुए, जबकि बाकी टेस्ट रैपिड करवाए गए, तो आधे से ज्यादा टेस्टिंग निजी लैब में होने लगी है। ऐसा लगता है कि निजी लैब को फायदा पहुंचाने के लिए ही सरकारी लैब में जांच की संख्या लगातार घटती रही है, जबकि शासन-प्रशासन लगातार यह दावे करता रहा है कि सरकारी लैब में पूरी क्षमता के साथ आरटीपीसीआर टेस्ट करवाए जाएंगे, जबकि आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें से आधी जांच भी नहीं हुई है।
पहले निजी लैब में साढ़े 4 हजार रुपए में जांच होती थी, जो अब एक हजार रुपए के अंदर होने लगी है। पिछले दिनों तेजी से कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ी, जिसमें आधे से ज्यादा जांच निजी लैब में करवाई गई। दरअसल समाज के मध्यम और उच्च तबके में कोरोना संक्रमण अधिक फैला, जिसके कारण निजी लैब में जांच करवाकर फटाफट परिणाम हासिल किए गए, क्योंकि सरकारी लैब में दो से तीन दिन में रिपोर्ट आती है। गत वर्ष अप्रैल से लेकर अभी दिसम्बर तक सरकारी मेडिकल कॉलेज की लैब में आरटीपीसीआर टेस्ट हो रहे हैं, जो कि उसकी क्षमता से कम ही रहे। अभी दिसम्बर में 27348 आरटीपीसीआर टेस्ट ही हुए, जो कि कुल करवाए गए टेस्ट का मात्र 20 फीसदी ही है। अन्य टेस्ट रैपिड एंटीजन के जरिए किए गए, तो 50 से 60 प्रतिशत टेस्ट निजी लैबों से करवाए गए। अप्रैल में जहां 561, तो मई में 9, जून में 215, जुलाई में 3032, अगस्त में 16796, सितम्बर में 20632, अक्टूबर में 26034, तो नवम्बर में 27200 और दिसम्बर में 27348 सेम्पलों की जांच की गई। वहीं दूसरी तरफ कोरोना मरीजों की संख्या लगातार घट रही है। आज सुबह क्षेत्रवार जारी सूची में सिर्फ 74 क्षेत्रों में ही 127 नए कोरोना मरीज मिले, जिनमें 5-5 सुदामा नगर और विजय नगर, तो 3-3 भंवरकुआ, चमेली विला मरीज मिले और अन्य स्थानों में भी 1 से 2 मरीज मिले हैं।
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