उज्जैन। शहर में जितने ऑटो के परमिट परिवहन विभाग से जारी हुए उससे दोगुनी संख्या में ऑटो शहर में चल रहे थे। हाईकोर्ट के निर्देश पर जब आरटीओ ने सड़क पर उतर कर कार्रवाई शुरू की तो मात्र 10 दिनों में ही 375 ऑटो अवैध रूप से चलते मिले। ऐसे में शहर में ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है। शहर का यातायात दुरुस्त करने के लिए ट्रैफिक पुलिस की जिम्मेदारी होती है लेकिन उज्जैन शहर की ट्रैफिक पुलिस इस जिम्मेदारी को ठीक ढंग से नहीं निभा पा रही। शहर में लाइसेंस धारी ऑटो की संख्या मात्र दो से ढाई हजार के बीच है, लेकिन पिछले कई वर्षों से शहर में 6000 से अधिक ऑटो चल रही थी और इतना ही नहीं कई ऑटो केरोसिन और डीजल से चल रही थी, जिन पर पूर्व से ही प्रतिबंध लग चुका है।
जब शहर की आबोहवा खराब हुई और प्रदूषण बड़ा तो हाईकोर्ट ने इसमें दखलंदाजी की और परिवहन आयुक्त को उज्जैन तथा अन्य शहरों में अवैध रूप से चल रही ऑटो को बंद करने के निर्देश दिए। इसके बाद आरटीओ संतोष मालवीय सड़कों पर उतरे और उन्होंने 10 दिन में 375 ऑटो पर कार्रवाई की और इनमें से अभी भी करीब साढ़े 300 से अधिक ऑटो शहर के विभिन्न थानों में खड़े हैं। आज इनमें कोर्ट चालानी की कार्रवाई के बाद इन्हें छोड़ा जाएगा। इतनी बड़ी कार्रवाई होने के बाद बड़ा प्रश्न यह है कि 3000 ऑटो शहर में चल रही थी और ट्राफिक पुलिस जो शहर के हर पॉइंट पर तैनात रहती है उन्हें पता नहीं चला ऐसा हो नहीं सकता। बताया जाता है कि ट्राफिक पुलिस कर्मियों की मिलीभगत से ही अवैध रूप से ऑटो संचालित की जा रही थी। इतना ही नहीं शहर में जो टाटा मैजिक चलती है इनमें करीब 25 से 30 ट्राफिक पुलिस में कार्यरत पुलिसकर्मी और अधिकारियों की है। जिस प्रकार ऑटो पर कार्रवाई की गई उसी प्रकार शहर की टाटा मैजिक की भी चालानी कार्रवाई करना चाहिए।
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